पटना : आदिवासियों ने 2011 की जनगणना में सरना धर्म के नाम से अन्य कॉलम में अपनी धार्मिक पहचान लिखा था। अतः सरना धर्म कोड अर्थात प्रकृति पूजा धर्म कोड के नाम से भारत सरकार हम आदिवासियों को अविलंब मान्यता प्रदान कर मर्यादा के साथ जनगणना में शामिल करने की मांग आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने की है. उनका कहना है कि आदिवासियों का सरना धर्म कोड रक्षा और प्रकृति-पर्यावरण की रक्षा मानवता की रक्षा है। हम किसी व्यक्ति केंद्रित ईश्वर, मूर्ति पूजा या स्वर्ग-नरक की परिकल्पना भी नहीं करते हैं। अतः प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए भिन्न एक धार्मिक पहचान अनिवार्य है। इस संबंध में 25 नवम्बर को पटना के गांधी मैदान में 5 प्रदेशों के हजारों आदिवासी प्रतिनिधि सरना धर्म कोड की मान्यता प्रदान करने की मांग को लेकर जनसभा में शामिल होंगे। यह जनसभा दिन के 12:00 बजे से 3:00 बजे तक चलेगी। इसके बाद बिहार के राज्यपाल को प्रदान किया जाएगा।
आदिवासी जन संगठन देश भर में सक्रिय
उन्होंने कहा कि सरना धर्म कोड मान्यता आंदोलन को व्यापक और प्रभावी बनाने के लिए अनेक आदिवासी जन संगठन देश में सक्रिय हैं। मगर आदिवासी सेंगेल (सशक्तिकरण) अभियान (ASA) सर्वाधिक गंभीर और सक्रिय है। 2022 वर्ष में दिल्ली के जंतर-मंतर में 30 जून 2022 को विशाल धरना प्रदर्शन का आयोजन किया गया। तत्पश्चात 20 सितंबर को भुवनेश्वर में, 30 सितंबर को बंगाल की राजधानी कोलकाता में,18 अक्टूबर को झारखंड की राजधानी रांची में और 4 नवंबर को असम की राजधानी गुवाहाटी में आंदोलन किया गया। श्री मुर्मू ने कहा कि प्रकृति-पूजक आदिवासियों को अब तक संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार अनुच्छेद- 25 के तहत धार्मिक मान्यता का न्याय और अधिकार नहीं मिल सका है। अंततः हम आदिवासी धार्मिक मामले पर नरसंहार या जेनोसाइड के शिकार हैं। उन्होंने कहा कि आज धर्म परिवर्तन पर सुप्रीम कोर्ट और अनेक संस्थानों ने चिंता व्यक्त की है, इसपर रोकथाम के लिए कानून भी बन रहे हैं। हिंदू मैरेज एक्ट-1955 के तहत सिख, जैन और बौद्ध को मान्यता प्राप्त है पर हमें यूं ही छोड़ दिया गया है.
30 नवंबर को 5 राज्यों में रेल-रोड चक्का जाम की घोषणा
उन्होंने सरना धर्म कोड की मान्यता, सर्वाधिक बड़ी आदिवासी भाषा, जो आठवीं अनुसूची में भी शामिल है-संताली भाषा को झारखंड प्रदेश की प्रथम राजभाषा बनाने, आदिवासी स्वशासन व्यवस्था अर्थात ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम में सुधार लाने, झारखंड को बिरसा मुंडा-सिदो मुर्मू के सपनों का झारखंड बनाने आदि मुद्दों के लिए भारत सरकार को 20 नवंबर 2022 तक का अल्टीमेटम दिया गया था। कहा गया है कि 30 नवंबर 2022 को 5 प्रदेशों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में रेलरोड चक्का जाम की घोषणा की गई है। परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से पूर्व सांसद सालखन मुर्मू को इन आदिवासी मुद्दों पर वार्तालाप की पेशकश से एएसए इस पर पुनर्विचार करेगी और 25 नवंबर के पटना गांधी मैदान से अगली रणनीति की घोषणा करेगा।