शशांक शेखर
बोकारो : देश के अधिकतर उद्योगपति सरकारी जमीन को अपने राजनीतिक रसूख से हासिल करने में अक्सर सफल हो जाते हैं, क्योंकि केंद्र हो या राज्य सरकार, दोनों सरकारों में इनकी गहरी पैठ होती है. यही कारण है कि बोकारो में स्थितवेदांता-इलेक्ट्रोस्टील कंपनी द्वारा सैकड़ों एकड़ वन भूमि को अपनी जागीर बनाने की हिमाकत कर रहा है. यही कारण है कि कंपनी के अधिकारियों ने बोकारो के डीसी कुलदीप चौधरी के नोटिस को भी दरकिनार कर दिया है, बल्कि उसपर कड़ा ऐतराज जता दिया है. यहां तक कि डीसी के स्तर से होनेवाली कड़ी कार्रवाई के बारे में कंपनी के एक वरीय अधिकारी ने कंपनी के खिलाफ भेजे गए नोटिस को ही सिरे से खारिज कर दिया है.
जांच के घेरे में हैं कई अधिकारी
हालांकि जिले के सियालजोरी और भागाबांध सहित आसपास के इलाके में सैकड़ों एकड़ सरकारी वन भूमि को हड़पने के बाद में उसे हर कीमत पर अपने नाम कराने की कोशिश को बोकारो डीसी ने नाकाम करने के लिए ठोस कदम उठाया है. अगर राज्य सरकार ने गंभीरता दिखाई तो कंपनी को मुंह की खानी पड़ सकती है. वैसे डीसी की ओर से मामले को झारखंड सरकार के राजस्व सचिव के पास रेफर कर दिया गया है. कहा गया है कि उनके स्तर से समीक्षा और फैसला लिए जाने के बाद ही कंपनी कोई जुर्माना दे सकेगी. डीसी ने अपने स्तर से अपने काम को बखूबी अंजाम दिया है. अब गेंद राज्य सरकार के पाले में है. आश्चर्य की बात तो यह है कि डीसी के अधीनस्थ मामले की जांच में लगे प्रशासन के ही एक वरिष्ठ अधिकारी ने कम्पनी की इस धोखाधड़ी को छुपाने की जी तोड़ कोशिश की है. डीसी ने वन भूमि की जमीन के मूल्यांकन के क्रम में कंपनी की तरफदारी करनेवाले अधिकारियों को भी जांच के घेरे में ला दिया है.
कंपनी ने ‘इंडस्ट्री’ को ‘हाउसिंग’ का मामला बताया
दरअसल, कंपनी की ओर से अवैध रूप से दखल की गई वन भूमि को ‘आवासीय’ बताया गया था. जबकि, कम्पनी ने बिल्कुल ही नाजायज रूप से अतिक्रमण कर धारित उस जमीन पर इस्पात कारखाना स्थापित कर वहां व्यवसाय का संचालन शुरू किया और वह आज भी चल ही रहा है। सेटिंग देखिए, कंपनी ने ‘इंडस्ट्री’ को ‘हाउसिंग’ का मामला बताया और मामले की जांच कर रहे संबंधित अधिकारी ने इसे मान भी लिया. उन्होंने जुर्माना लगाने की औपचारिकता पूरी तो की, परंतु ‘हाउसिंग’ के हिसाब से ही. उन्होंने पहले कंपनी पर 20 करोड़ का जुर्माना लगाया. बाद में जब बात ‘इंडस्ट्री’ की समझ में आई, तो 20 करोड़ को बदलकर 35 करोड़ के जुर्माने का खाका तैयार किया. उन्होंने अपनी यह रिपोर्ट जब डीसी को सुपुर्द की, तो उन्होंने गहनता से इसकी जांच की. इसी क्रम में डीसी ने कंपनी की चालाकी पकड़ी. उन्होंने संबंधित अधिकारी को बताया कि इस जमीन के ‘आवासीय’ होने का तो सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि जमीन ‘इंडस्ट्री’ के नाम दखल है और उसका बाकायदा व्यावसायिक उपयोग भी किया जा रहा है. ऐसे में जुर्माना उसी हिसाब से लगेगा. इसके तहत डीसी ने कंपनी को 55 करोड़ रुपए के जुर्माने का नोटिस भेज दिया है.
एक अधिकारी ने खुलकर कंपनी का साथ दिया
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार एक दूरदर्शी सोच के तहत नोटिस का मामला उपायुक्त से ऊपर राजस्व सचिव के स्तर पर पहुंचाया गया है. इधर, अंदरूनी सूत्रों से खबर है कि राजस्व सचिव बहुत जल्द केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जानेवाले हैं. जाहिर है, अगर उनकी प्रतिनियुक्ति पर जाने से पहले मामले की समीक्षा नहीं हुई, तो यकीनन यह मामला एक बार फिर ठंडे बस्ते में चला जाएगा. इसके साथ ही, धांधली पर नकेल कसने की उपायुक्त की कोशिश भी कहीं न कहीं व्यर्थ चली जाएगी. सूत्र यह भी बताते हैं कि चास के सीओ और फिर बाद में बोकारो जिले के अपर समाहर्ता पर आरोप है कि वन भूमि हड़पने में उन्होंने कंपनी का भरपूर साथ दिया है. अगर उन्होंने साथ नहीं दिया होता तो कंपनी इतनी आसानी से वन भूमि की जमीन को अपने नाम नहीं करा सकता था.
सरकारी निर्देश के आलोक में किया गया मूल्यांकन
इस मामले में डीसी कुलदीप चौधरी ने इस संवाददाता को बताया कि वेदांता-इलेक्ट्रोस्टील की ओर से वन भूमि हड़पने के साथ-साथ जमीन पर कारखाना चलाने और व्यावसायिक उपयोग की बात जमीन संबंधी रिकॉर्ड में छिपाई गई है. ‘हाउसिंग’ के नाम पर रिकॉर्ड बनवाया गया. वैसे सरकारी निर्देश के आलोक में मूल्यांकन किया गया है. डीसी ने स्वीकारा है कि संबंधित अधिकारी की जांच रिपोर्ट की समीक्षा में यह गड़बड़ी सामने आयी है. उपायुक्त, बोकारो के पत्रांक-3206/रा., 21.12.2022 के प्रसंग में राज्य सरकार के राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग के पत्रांक-5/स.भू. बोकारो (ईएसएल)-80/16 237 (5)/रा./, 20 जनवरी, 2023 के द्वारा विभागीय पत्रांक-4321/रा., 07.12.2022 तथा वर्ष 2018 में विभागीय संकल्प सं.- 48/रा., दिनांक- 03.01.2017 के आलोक में बोकारो के डीसी को इलेक्ट्रोस्टील लिमिटेड द्वारा अवैध रूप से धारित भूमि की लीज बंदोबस्ती के लिए अद्यतन बाजार दर पर उक्त जमीन का मूल्यांकन करवाने का निर्देश दिया गया है. इसी आलोक में समीक्षा के दौरान ‘हाउसिंग’ और ‘इंडस्ट्री’ का गड़बड़झाला सामने आया है.
वन विभाग की जमीन लीज पर नहीं दी जा सकती
इस संबंध में वन विभाग की ओर से जमीन के मालिकाना हक को लेकर स्थानीय न्यायालय में केस की पैरवी कर रहे एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने सरकार की ओर से उक्त जमीन की लीज बंदोबस्ती संबंधी आदेश पर आश्चर्य प्रकट किया. उन्होंने कहा कि वन विभाग की जमीन किसी को लीज पर नहीं दी जा सकती. वन भूमि की प्रकृति को बदलना बिल्कुल ही गैर-कानूनी है. वैसे भी वेदांता-इलेक्ट्रोस्टील का कारखाना वन विभाग की जिस जमीन पर खड़ा किया गया है, उसके मालिकाना हक को लेकर न्यायालय में मामला लंबित है. फिर इसी बीच सरकार द्वारा उक्त जमीन की लीज बंदोबस्ती का आदेश दिया जाना गैर-कानूनी है.