डकरा, 24 सितम्बर : भारत देश के त्यौहार यहां की संस्कृति की विशेषता है। भारत की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के कारण यह दुनिया के लिए आकर्षण का केन्द्र है और इसी वजह से इसे आध्यात्मिक गुरू या विश्व गुरू का दर्जा दिया गया है, जिसने दुनिया की सोच को एक नई दिशा दी है। हर त्यौहार के पीछे जीवन के गहरे सिद्धांत छिपे हैं, परन्तु समय के साथ लोग इनके आध्यात्मिक रहस्य को भूल गए और वह मात्र परम्पराएं बनकर रह गईं। उक्त बातें डकरा सुभाष नगर ब्रह्माकुमारी गीता पाठशाला की नियमित बीके प्रीति बहन ने कही। बीके गीता पाठशाला केंद्र पर गणेश चतुर्थी महोत्सव के उपलक्ष्य में रविवार को गणेश भगवान के चैतन्य झांकी का विशेष आयोजन किया गया था। वही इस महोत्सव में मौजूद कमल भाई ने भगवान गणेश के आध्यात्मिक रहस्यों को बताते हुए कहा कि गणेशजी भव्य मस्तक बुद्धि की विशालता और विवेकशीलता का, बड़े कान उनके श्रवण का अर्थात् कम बोलने व अधिक सुनने का, छोटी आंख एकाग्रता का, एकदन्त बुराईयों को मिटाने व अच्छाइयों को धारण करने का, सूण्ड कार्यकुशलता व स्वयं को ढालने एवं परिवर्तित करने का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि जैसे हाथी को कुछ भी मिलता है तो वह महावत को समर्पित कर देता है उसी प्रकार हमें भी अपने जीवन के मान-सम्मान, सभी प्राप्तियों को परमात्मा को समर्पित कर मान की इच्छा से परे निर्मान भाव के साथ रहना चाहिए। बड़ा पेट समाने की शक्ति की प्रेरणा देता है कि हम परिवार में एक-दूसरे की बातों को सहन करें व समा लें। चूहे की सवारी अर्थात् विकारों पर विजय प्राप्त करने, कुल्हाड़ी का तात्पर्य सभी बंधनों को काटने से है अर्थात् आध्यात्मिकता को अपनाने में जो भी देह, पदार्थ, व्यक्ति, वैभव के विघ्न आते हैं उस पर जीत प्राप्त करना। रस्सी अनुशासन में रहने, लड्डू व मोदक मुदित भाव में रहने की प्रेरणा देता है। वही अनिता बहन ने भी भगवान गणेश की विशेषताओं को बताया। इस अवसर पर भूमि बहन, परि बहन व कुछ भाइयों ने नृत्य प्रस्तुत किया। बीके बहनों ने मोदक बनाकर गणपति को भोग लगाया। अंत में माधुरी बहन, टिंकी बहन, कौशल्या बहन, मैना बहन, सरिता बहन ने श्री गणेशा की आरती की। कार्यक्रम में बीके बहन-भाइयों सहित अन्य लोगों ने चैतन्य झांकी की सराहना की।