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Thursday, September 19, 2024
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…और इस तरह से झारखंड में सरकार गिराने और बनाने के खेल का चैप्टर क्लोज हो गया, जेल जाने से पूर्व हेमंत सोरेन ने ऑपरेशन लोटस को नाकाम कर दिया

झारखंड में ऑपरेशन लोटस के शुरुआती दौर यानी ढाई साल के पूर्व सत्ता हड़पने के लिए भाजपा ने सबसे पहले कांग्रेस को तोड़ने की कोशिश की. कांग्रेस के करीब एक दर्जन विधायक पाला बदलने की फिराक में थे. इस खबर को मैंने ही पहली बार ब्रेक किया था. तब लोगों को शायद यकीन नहीं हुआ था. 6 जुलाई 2021 को हमने झारखंड में सियासी भूकंप की आहट…!’ शीर्षक रिपोर्ट में यह बताने की कोशिश की थी कि कैसे सरकार गिराने का खेल शुरू किया गया. खबर प्रकाशित होने के मात्र 8 दिनों बाद यानी 15 जुलाई 21 को सरकार गिराने की साजिश का पर्दाफाश हो गया. उस समय भी करीब-करीब वही कांग्रेसी विधायक थे, जिनकी हरकतों से सत्ता के गलियारों में सनसनी फैल गई थी. इसके बाद सरकार गिराने का खेल शुरू हुआ. आखिरकार 31 जनवरी की उस मनहूस रात ने झारखंड की लालिमा को कालिख में बदलने का काम किया. फिलहाल, सरकार गिराने और बनाने के खेल का चैप्टर क्लोज हो गया है.      

 

नारायण विश्वकर्मा

रांची : ऑपरेशन लोटस के आगे कई बड़े राजनीतिक दिग्गजों ने हुक्काम के फरमान के आगे सरेंडर कर दिया. ये और बात है कि झारखंड में हुक्काम की चौधराहट नहीं चली. हेमंत सोरेन ने सत्ता की सौदेबाजी ठुकरा कर जेल जाना मंजूर किया और झामुमो के तीर-कमान को मजबूती से संभाले रखा. कल तक हेमंत सोरेन एक अपरिपक्व राजनेता माने जाते थे, पर अब उन्होंने देश ही नहीं, विश्व में भी अपना लोहा मनवाया. उन्होंने दिल्ली दरबार की चालों और चालाकियों का डटकर मुकाबला किया. उन्होंने अपने फौलादी इरादों से विपक्षी खेमे में अपनी पकड़ मजबूत की. वहीं नीतीश कुमार जैसे धुरंधर राजनेता को सबक लेने को मजबूर किया है. इतना ही नहीं 5 फरवरी को विधानसभा में विश्वासमत हासिल करने के दौरान पूर्व सीएम हेमंत सोरेन ने ईडी और दिल्ली दरबार को भी चुनौती दी है. जिस तरह से विधानसभा में हेमंत सोरेन ने ईडी और भाजपा को लैंड स्कैम पर ललकारा है, इससे उनके मजबूत इरादे का पता चलता है. इसका उन्हें जबर्दस्त पॉलिटिकल माइलेज भी मिला है.

दिल्ली दरबार के ऑफर को हेमंत ने बार-बार ठुकराया

दरअसल, 2021 के जून-जुलाई महीने से ऑपरेशन लोटस की शुरुआत हो गई थी. सरकार गिराने की ढाई साल चली कवायद में दिल्ली दरबार के ऑफर को उन्होंने बार-बार ठेंगा दिखाया. लेकिन 20 जनवरी के बाद सियासत की टेढ़ी-मेढ़ी चालों और लैंड स्कैम ने उन्हें जेल का रास्ता अवश्य दिखा दिया, पर इस बीच उन्होंने ऑपरेशन लोटस की हवा जरूर निकाल दी. दिल्ली दरबार ने आखिरी क्षण तक राष्ट्रपति शासन लगाने की कोशिश की, पर उसके मंसूबे पर भी पानी फिर गया. लेकिन मजे की बात यह रही कि एक तरफ ईडी का इंट्रोगेशन हो रहा था तो दूसरी ओर ऑफर भी दिया जा रहा था. इसलिए एक रणनीति के तहत लैंड स्कैम मामले में जेल में बंद भानु प्रताप प्रसाद को सरकारी गवाह बना कर हेमंत सोरेन की घेराबंदी की गई. जिस तरह से मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को सरकारी मुजरिमों को सरकारी गवाह बनाकर इडी ने शिकार किया, उसी तर्ज पर हेमंत सोरेन ईडी ने अपनी गिरफ्त में ले लिया. हालांकि दिल्ली दरबार को इस बात का इल्म नहीं था कि पिछले ढाई साल से उसके ऑफर को बार-बार ठुकराने की उन्होंने (हेमंत सोरेन) हिमाकत करेगा.

हेमंत से विधायकों ने कहा-ऑफर ठुकराइये…चाहे जो भी अंजाम हो…हम सब आपके साथ हैं…!

कुछ माह पूर्व इंडिया गठबंधन की गतिविधियां जब तेज हुई, तब से हेमंत सोरेन पर दबाव बनाने का एक बार फिर सिलसिला चला. सूत्र बताते हैं कि कुछ दिन पूर्व रांची में हेमंत सोरेन से एक दिग्गज भाजपा नेता की मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात में उन्होंने सीधे मेसैज दिया कि इंडिया गठबंधन से झामुमो बाहर हो जाए या एनडीए के साथ आ जाएं तो, ईडी की फाइल बंद हो जाएगी, जैसे अजीत पवार की हो गई है. 20 जनवरी को भी सुबह-सुबह ऑफर दिया जा रहा था कि अभी भी वक्त है, जांच रूक सकती है. कहा जाता है कि 20 जनवरी से पूर्व हेमंत सोरेन ने एक मीटिंग बुलाई, जिसमें सारे विधायक शामिल हुए. मीटिंग में हेमंत सोरेन ने दिल्ली दरबार के प्रेशर पॉलिटिक्स की जानकारी दी. कहा कि अगर हमने उनकी बातें नहीं मानी तो, हमें जेल भेजने की  उनकी मंशा है. उन्होंने विधायकों से कहा कि हमें यह कहा गया है कि ये आपके लिए गोल्डेन ऑफऱ है. हम अगर इडिया गठबंधन से पल्ला झाड़ लें, कांग्रेस को छोड़ दें हैं और एनडीए के साथ लोकसभा का चुनाव लड़ें तो, जांच रोक दी जाएगी. इसपर महागठबंधन के विधायकों ने एक स्वर में कहा कि आप (हेमंत सोरेन) ऑफर ठुकराइये और आगे बढ़िए…चाहे जो भी अंजाम हो…हम सब आपके साथ हैं. सूत्र बताते हैं कि 20 जनवरी को ही ईडी हेमंत सोरेन की घेराबंदी की फिराक में थी, लेकिन 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा थी.

शिवसेना-एनसीपी को तोड़ने की तर्ज पर झामुमो-कांग्रेस को तोड़ने की कोशिश हुई

सूत्र की मानें तो, जब बाबूलाल मरांडी की भाजपा में इंट्री हुई तो, फिर हेमंत सोरेन को ऑफर मिला कि छह माह बाबूलाल मरांडी और छह माह हेमंत सोरेन सरकार चलाएं और कांग्रेस को तिलांजलि दे दिया जाए. हेमंत सोरेन ने इस ऑफर को ठुकरा दिया. इसके बाद भाजपा ने शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने की तर्ज पर झामुमो को तोड़ने की कोशिश की. इसके लिए दुमका के विधायक बसंत सोरेन को ऑफर दिया गया. इसी रणनीति पर तोड़-फोड़ की राजनीति शुरू हुई. अंतत: जब झामुमो नहीं बिखरा तो, फिर कांग्रेस को फांसने की कोशिश शुरू हुई. 1 अगस्त 2022 को एक फोन ने कोलकाता में पैसे पकड़वाए. ये ऑपरेशन गुआहाटी से शुरू हुई तो जरूर पर कोलकाता में इसकी पोल-पट्टी खुल गई. कांग्रेस के तीन एमएलए पैसे के साथ पकड़े गए. इसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने भी एक्शन लिया. इस तरह झामुमो-कांग्रेस टूटने से बच गई. कहा जाता है कि दुश्मन की हर चाल से हेमंत सोरेन वाकिफ थे. इंटेलीजेंस ब्यूरो ने भी अपनी सक्रियता से ऑपरेशन लोटस को नाकाम कर दिया.

अब सबकी निगाह ईडी बनाम हेमंत पर टिकी

हालांकि हेमंत सोरेन ने लैंड स्कैम मामले में विधानसभा में अपनी बेगुनाही की पुरजोर ढंग से वकालत की है. बड़गाई अंचल के सीआई भानु प्रताप प्रसाद ने अप्रैल 2023 में हुई पूछताछ में ईडी के समक्ष यह बयान दिया था कि उसे तत्कालीन अंचल अधिकारी मनोज कुमार ने जमीन की मापी और विवरण तैयार करने के लिए कहा था. हालांकि उन्होंने ईडी को दिए गए बयान में कहा है कि वह जमीन हेमंत सोरेन की है. उन्हें इस जमीन के वेरिफिकेशन के लिए सीएम के प्रेस सलाहकार रहे अभिषेक प्रसाद पिंटू के पीपीएस उदय शंकर ने कहा था. इसके बावजूद ईडी की पूछताछ में वह किस तरह से अपना बचाव कर पाते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा. अब सबकी निगाह ईडी बनाम हेमंत सोरेन पर टिकी है.   

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