कमलनयन
(वरिष्ठ पत्रकार)
गिरिडीह : झारखंड मुक्ति मोर्चा जिला कमेटी के तत्वावधान में मंगलवार को टावर चौक पर पार्टी द्वारा महाधरना कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सरना धर्म कोड की मांग को लेकर राज्य में सतारूढ़ झामुमो ने स्पष्ट किया है कि जबतक केन्द्र सरकार आदिवासियों की भावनाओं से जुड़ा सरना धर्म कोड को मान्यता नहीं देती, तबतक राज्य में जनगणना नहीं होगी. इसके लिए पार्टी ने चरणबद्ध आंदोलन की तैयारी की है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्य के नगर विकास मंत्री सुदिव्य कुमार ने कहा कि झारखंड आंदोलन के दौरान पार्टी के संघर्षों और बलिदानों की लंबी फेहरिस्त रही है। उन्होंने कहा कि सरना धर्म कोड को लेकर जारी आंदोलन नया इतिहास गढ़ेगा. मंत्री ने कहा कि 1972 में भी जब झारखंड आंदोलन की शुरुआत हुई तो लोग कटाक्ष करते थे लेकिन वर्ष 2000 में पार्टी ने बिहार के नक्शे पर झारखंड का निर्माण कराकर इतिहास रचा।
मंत्री ने कहा-भाजपा के आदिवासी नेता नाटक करना बंद करें
मंत्री ने कहा कि सरना धर्म कोड की मांग देश भर के 12 करोड़ आदिवासियों की अस्मिता से जुड़ी मांग है. दिल्ली से चलकर भाजपा के नेता झारखंड में आदिवासी नेता बिरसा मुंडा के चरणों में शीश नवाते हैं पर उनकी संतानों की जायज मांगों पर चुप्पी साधे रहते हैं। भाजपा के आदिवासी नेता नाटक करना बंद करें। उन्होंने कहा कि इस लड़ाई का आगाज हो चुका है. उन्होंने पार्टी समथकों का आह्वान किया कि संघर्ष की शुरुआत गिरिडीह से हो तो बेहतर होगा। सड़क पर उतरने की स्थिति में गिरिडीह का चक्का जाम रहेगा। महाधरना तो केवल एक बानगी है।
झामुमो के सैकड़ों कार्यकर्ता शामिल हुए
कार्यक्रम को पार्टी नेता पूर्व विधायक केदार हाजरा, शाहनवाज अंसारी, अजीत कुमार पप्पू रॉकी सिंह, प्रधान मुर्मू, दिलीप रजक, महताब मिर्जा, पप्पू रजक, प्रदोष कुमार, भरत यादव, अशोक राम, नूर अहमद, दिलीप रजक, टुन्ना सिंह, रामजी यादव, मुकेश कुमार सन्नी, रेन प्रमिला मेहरा आदि ने भी संबोधित किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता पार्टी नेता महालाल सोरेन ने की. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में कार्यकर्ता मौजूद थे।
5 साल बाद भी केंद्र का अबतक निर्णय नहीं लिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण
उल्लेखनीय है कि विगत 11 नवम्बर 2020 में ही झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र में सर्वसम्मति से सरना धर्म कोड विधेयक पारित किया था और इसे राज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार को अनुमोदन के लिए भेजा गया था। लेकिन लगभग पांच वर्षों के बाद भी केंद्र सरकार ने इस पर अबतक कोई निर्णय नहीं लिया है, जिससे आदिवासी समुदाय में असंतोष स्वाभाविक है।
मान्यता है कि सरना धर्म को “पवित्र वन का धर्म” भी कहा जाता है, आदिवासी समुदायों द्वारा प्रकृति पूजा पर आधारित एक धार्मिक आस्था और विश्वास है, जो झारखंड, ओडिशा, प. बंगाल, बिहार और छत्तीसगढ़ में प्रचलित है। इस धर्म के अनुयायी जल, जंगल और जमीन की पूजा करते हैं और इसे अपनी पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।