नारायण विश्वकर्मा
आखिरकार भाजपा के स्टार प्रचारकों ने गुजरात चुनाव में हिंदू-मुस्लिम का कार्ड चल ही दिया. सच कहा जाए तो सत्तारूढ़ भाजपा ने पूरी तरह से कट्टर हिंदुत्व कार्ड से सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की जद्दोजहद कर रही है. वही पुराने और जंग लगे हथियारों के सहारे चुनावी माहौल को गरम कर वोट बटोरने की रणनीति पर काम कर रही है. गुजरात चुनाव के पहले चरण के मतदान में मात्र दो दिन शेष हैं. कई सीटों पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव लगी हुई है. क्योंकि उनके सामने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों से चुनौती मिल रही है. स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाकर पुराने मुद्दे को उछाल रहे हैं. पीएम मोदी ने रैली के दौरान 2008 मुंबई आतंकी हमला, बाटला हाउस एनकाउंटर, अहमदाबाद और सूरत सीरियल ब्लास्ट का जिक्र किया। उन्होंने कांग्रेस और दूसरे दलों पर आतंकवाद पर चुप्पी साधने का आरोप भी चस्पां कर दिया है.
क्या भाजपा के लिए आप बन रही है रोड़ा…?
इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर वोटबैंक की राजनीति और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, अयोध्या में राम मंदिर और समान नागरिक संहिता लागू करने का आह्वान किया था। एक रैली में उन्होंने 2002 गुजरात दंगों का भी जिक्र कर कह दिया कि कैसे दंगाइयों को उस वक्त सबक सिखाया गया था। दरअसल, भाजपा का गेम प्लान मुस्लिम वोटों के बंटवारे और हिंदू वोटरों को रिझाने पर टिका है। अरविंद केजरीवाल रोड़ा बनकर भाजपा का खेल बिगाड़ने में काफी आगे नजर आ रहे हैं. चुनाव में सभी प्रमुख पार्टियां सरकार बनाने दावा कर रही हैं. गुजरात के सभी चुनावों में भाजपा-कांग्रेस के बीच ही टक्कर रही है. कांग्रेस ने पिछली बार 77 सीट से प्रमुख विपक्षी पार्टी बनी थी. इस बार के चुनाव को अरविंद केजरीवाल ने तिकोना कर दिया है. बुनियादी जरूरतों को फोकस कर गुजरातियों की दुखती रग पर हाथ रख दिया है. यही भाजपा और कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन गया है. आप पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में नहीं अपनी पूरी ताकत गुजरात में झोंकी है और उन्हें जनसमर्थन भी मिल रहा है. हालांकि भाजपा इसे सिरे से नकार रही है. लेकिन सच्चाई इसके विपरीत नजर आती है.
गुजरात मॉडल भी सवालों के घेरे में
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए हर चुनाव की तरह इस बार भी जनमुद्दों को दरकिनार कर फिर वही काठ की हांडी…लेकिन कितनी बार चढ़ाएंगे…ये अहम सवाल है. सवाल उठता है कि भाजपा आखिर अपने शासनकाल के 27 साल के सफर की उपलब्धियां क्यों नहीं गिना रही है? यह सवाल गुजरातियों का भी है. इसलिए गुजरात इस बार बदलाव के मूड में दिख रहा है. अधिकतर गुजराती सोशल मीडिया पर शासन के खिलाफ आग उगल रहे हैं. खबरिया चैनलों में भी भाजपा शासन पर कई सवाल उठे हैं, खासकर नोरोबी कांड. इसके अलावा सोशल मीडिया में लोग 27 साल के गुजरात शासन और मोदी-शाह के कारनामों पर अधिक बयानबाजी कर रहे हैं. गुजरात मॉडल पर सवाल उठा रहे हैं. लोग मानते है कि गुजरात मॉडल सिर्फ हवा-हवाई था. गुजरात की शासन-स्वच्छता की कलई उतार रहे हैं. दरअसल, अगर आप सोशल मीडिया की कई क्लिपिंगों और जनसंवाद को लेकर गुजराती मोदी-शाह पर बरस रहे हैं.
भाजपा ज्वलंत मुद्दे पर पिछड़ी
गुजरात चुनाव में आम आदमी पार्टी ने भाजपा स्टार प्रचारकों को सकते में डाल दिया है. मोदी-शाह की जोड़ी आप का नाम लिए बगैर उसे चुनावी रेस से बाहर बता रही है, जबकि सोशल मीडिया की खबरों के मुताबिक आप ने तिकोना संघर्ष बना दिया है. अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह, भगवंत मान अपने भाषणों में जिस तरह से नागरिकों के बेसिक नीड को प्रमुखता से उठा रहे हैं, उसका जवाब देने में मोदी-शाह की जोड़ी कमजोर दिखाई दे रही है. भाजपा के चुनावी भाषणों में नोरोबी कांड, बिलकिस बानो प्रकरण, अवैध शराब कांड, पेपर लीक प्रकरण और महंगाई-बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मुद्दे गायब है. हालांकि इन सभी वजहों से भाजपा की तिलमिलाहट देखी जा सकती है. प्रधानमंत्री की लगातार रैलियों में वही घिसी-पिटी बयानबाजी हो रही है. कई रैलियों में तो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की रैलियों में भीड़ भी कम देखी-सुनी गई. इसके उलट अरविंद केजरीवाल की रैलियों पहली बार इतनी भीड़ देखी जा रही है. कहीं-कहीं तो कांग्रेस की सभाओं में भीड़ उमड़ रही है. कई विधानसभा क्षेत्रों में तो आप और कांग्रेस को लोगों का जबर्दस्त समर्थन मिल रहा है.
बहरहाल, पहले चरण के चुनाव में अधिकतर लोगों ने सोशल मीडिया में कहा है कि इस बार गुजरात में बदलाव होना तय है. क्या आप मानते हैं कि इसबार के चुनाव में भारी उलटफेर होगा…? कहीं मोदी-शाह का गुजरात मॉडल ढह तो नहीं रहा है…या फिर सबकुछ हवा-हवाई हो जाएगा…?