गिरिडीह: (कमलनयन) देश अभी आजादी का गौरवमय अमृत महोसत्व मना रहा है. 75 वर्षों के कालखंड में देशवासी बेलगाड़ी युग से अत्याधुनिक वंदेभारत ट्रेनों से सफर कर रहे हैं. देशभर में रेल सुविधाओं के लगातार जारी विकास के बीच खनिजों के प्रदेश झारखंड का ऐतिहासिक शहर गिरिडीह, जो विश्व के मानचित्र में विश्वस्तरीय किस्म के अबरख उद्योग के लिए जाना-माना जाता रहा है. गिरिडीह वर्तमान में देश के पूर्वी क्षेत्र की सबसे बड़ी स्टील मंडी में शुमार है. अगर हम रेल सेवा की बात करें, तो अंग्रेजों के जमाने में गिरिडीह रेलवे स्टेशन से गिरिडीह-मधुपुर लोकल ट्रेन की शुरुआत रोजाना तीन फेरों से हुई थी। वही तीन फेरों का क्रम आज भी जारी है. इससे आगे कोई अन्य ट्रेन का परिचालन नहीं हुआ।
अस्सी के दशक में थोड़ी सरकी थी रेल सेवा
अगर हम अस्सी के दशक में कांग्रेस शासन में गिरिडीह के नागरिकों की व्यापक मांग पर गिरिडीह-कोलकाता और गिरिडीह-पटना के लिए दो कोच सेवा शुरू होने से कोलकाता-पटना आवागमन करनेवाले लोगों को काफी राहत मिली थी। लेकिन दुर्भाग्यवश कोरोना काल में देशभर में लगभग ट्रेनों की आवाजाही स्थगित होने से गिरिडीह-मधुपुर लोकल ट्रेन में लगनेवाली दोनों बोगियों का परिचालन बंद हो गया।
कुछ जोड़ी ट्रेनों की आवाजाही शुरू होने का इंतजार है
हालांकि कोरोना महामारी की निष्क्रियता के बाद देशभर में ट्रेनों की आवाजाही पुनः शुरू हुई, पर गिरिडीह, कोलकाता, पटना की बोगी जोड़ने को लेकर किसी ने अबतक ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा. गिरिडीह औक कोडरमा की सांसद ने भी पत्र व्यवहार किया है, पर उतनी संजीदगी नहीं दिखाई, जिसकी जरूरत थी. इस संबंध में रेल विभाग के क्षेत्रीय अफसरों द्वारा भी कोई संतोषजनक बयान सुनने में कभी नहीं आया। इस समस्या को लेकर संजीदगी से पहल हुई होती तो, पुरानी सुविधा जरूर बहाल हो जाती। हालांकि 2019 में रेल विभाग द्वारा करोड़ों की राशि खर्च कर गिरिडीह रेलवे स्टेशन का आधुनिकीकरण जरूर किया गया। लोगों को उम्मीद थी कि गिरिडीह रेलवे स्टेशन से कुछ जोड़ी ट्रेनों की आवाजाही शुरू होगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
न्यू गिरिडीह रेलवे स्टेशन का हाल
बता दें कि गिरिडीह-कोडरमा रेल लाइन से जुड़ने वाले न्यू गिरिडीह रेलवे स्टेशन का भी कमोवेश यही हाल है. दरअसल गिरिडीह रेलवे स्टेशन से पटना-कोलकाता बोगियों के बंद होने से गिरिडीह के यात्रियों को रेलमार्ग से पटना, कोलकाता जाने के लिए पहले सड़क मार्ग से मधुपुर, ( 35 किलोमीटर) या पारसनाथ (30 किलोमीटर), या फिर धनबाद (55 किलो मीटर) का सफर कर रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़नी पड़ती है. इसके कारण आम लोगों को अधिक समय के अलावा कई तरह की परेशानियों के अलावा अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ता है. पर्व-त्योहारों में भीड़ के कारण लोगों को यात्रा करने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है. इस बार भी होली के समय भी रेलवे विभाग से गिरिडीहवासियों को रेल सुविधाओं से वंचित रखा गया है.
गिरिडीह में रेल सेवा का विस्तार…समय की मांग
दरअसल, बात अगर कोलकाता- पटना की करें या लगाव की बात करें तो एकीकृत बिहार से ही हजारों परिवारों, जिनका पैतृक घर भले ही बिहार-पटना रहा हो, लेकिन उनकी कर्मभूमि गिरिडीह है. बात कोलकाता की करें तो गिरिडीह से कोलकाता का अटूट संबंध रहा है. गुरुदेव ऱवीन्द्र नाथ टैगोर, सांख्यकी के जनक प्रो. महलनवीस, महान स्वतत्रंता सेनानी अरूणा आसफ अली, महान वैज्ञानिक सर जेसी बोस समेत कई अन्य महान हस्तियों का गिरिडीह से विशेष लगाव इतिहास के पन्नों में दर्ज है. सर जेसी बोस ने तो अंतिम सांस गिरिडीह में ली थी।
सांसद को जीतोड़ प्रयास करना होगा
जानकार बताते हैं कि माइका निर्यातकों, टीएमटी सरिया बनानेवाले, जंगली जड़ी-बुटियों का व्यापार करनेवाले व्यवसायियों के कमर्शियल कार्यालय कोलकाता में स्थित है। यह भी एक कारण है कि मौजूदा समय में गिरिडीह-कोलकाता रोजाना 10 से 15 हजार यात्री बसों से आवाजाही करते हैं. इसके अलावा अन्य साधनों से भी लोगों का आना-जाना लगा रहता है. रेल विभाग गिरिडीह को रेल सेवाओं से अगर उपेक्षित रखा है तो, इसके लिए यहां के सांसद को जीतोड़ प्रयास करना होगा. अगर वे चाहते तो यहां रेल का विस्तार संभव है. बहरहाल, अमृतकाल में भी गिरिडीह की रेल सुविधा अंग्रेजों के काल की है. रेल सेवा के नाम पर यहां गिरिडीह-मधुपुर से आगे नहीं बढ़ पाई है लोकल ट्रेन.