रांची से लेकर दिल्ली तक के सत्ता प्रतिष्ठानों में जिस उद्योगपति की चलती हो, वही खुलेआम इस तरह की बयानबाजी कर सकता है. जरा आप भी जानिए….! इलेक्ट्रो स्टील कंपनी की आपने पहुंच नहीं देखी है। सभी सरकारों में व्यापारियों की ही चलती है, चाहे वह यूपीए की हो या एनडीए की। आनेवाले दिनों में यह अवैध भूमि वैध होगी, इसकी मैं आपको गारंटी देता हूं।’…पढ़ें… इलेक्ट्रो स्टील कंपनी द्वारा जमीन लूट की विस्तृत रपट…!
शशांक शेखर
बोकारो : बोकारो में इलेक्ट्रो स्टील कंपनी जमीन के खेल में कई दिग्गजों को पछाड़ दिया है. कंपनी ने पहले सैकड़ों एकड़ वनभूमि पर कब्जा जमाया और ऐसी चाल चली कि वही हड़पी गई जमीन आज तथाकथित ‘वैध’ हो गई है. अब पता नहीं दोष किसका है, लेकिन जिस विभाग ने 15 वर्षों में 50 से अधिक केस किए, मुकदमे लड़े. ईमानदार अफसरों की फजीहत हुई. उन अधिकारियों को आज घुटने टेकने पड़े हैं। क्योंकि, इलेक्ट्रोस्टील अपनी बाजी जीत गया और वन विभाग के अधिकारी अपनी लड़ाई हार गए। अब वेदांता ग्रुप की इलेक्ट्रोस्टील ने हड़पी गई 174.39 एकड़ भूमि को अवैध से वैध बनाने के लिए उसे वैधानिक जामा पहनाकर उसे अपने नाम बंदोबस्त कराने की तैयारी लगभग पूरी करवा ली है।
वन विभाग ने इलेक्ट्रो स्टील पर 50 से अधिक केस दर्ज किए
मालूम हो कि वन विभाग ने अधिसूचित एवं सीमांकित वन भूमि के अतिक्रमण के खिलाफ इलेक्ट्रो स्टील पर 50 से अधिक केस दर्ज किए। लेकिन, इस ताकतवर कम्पनी की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। वन विभाग के तत्कालीन ईमानदार अधिकारियों ने सरकार को त्राहिमाम संदेश भेजकर वन विभाग की भूमि को लुटने से बचाने की गुहार लगाई है, पर शासन-प्रशासन पर काबिज लोगों ने ही राज्य सरकार के वन विभाग के अधिकारियों के ईमानदार प्रयासों की मिट्टी पलीद कर दी है। सरकार की जिस जमीन को अवैध कब्जे से बचाने के लिए विभाग के अधिकारी कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते रह गए, ऊपर तक पत्राचार करते रह गए, मोटी-मोटी संचिकाएं तैयार कर संबंधित अधिकारियों को भेजी गईं, ताकि वन विभाग की अतिक्रमित जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराया जा सके, लेकिन वही जमीन आज ‘अवैध’ से ‘वैध’ होने जा रही है।
कंपनी ने ब्यूरोक्रेट्स-पत्रकारों को भी उपकृत किया
गौरतलब है कि जमीन हड़पने के लिए वेदांता-इलेक्ट्रो स्टील कंपनी ने ब्यूरोक्रेट्स, बोकारो स्टील के सेवानिवृत्त अधिकारियों, नेताओं के साथ-साथ मजदूर यूनियन के नेताओं और कुछ पत्रकारों तक को कृतज्ञ किया। क्योंकि, इतने बड़े जमीन घोटाले में आईएएस, आईपीएस अफसरों, मजदूर नेताओं और कुछ पत्रकारों की भी मदद ली गई। खुद को बचाने तथा माहौल को सकारात्मक बनाने के लिए ऐसे लोगों और उनके रिश्तेदारों को नौकरी देकर या उनके वाहनों के परिचालन का ठेका देकर उन्हें कृतज्ञ किया है.
ईएसएल ने कहा: सभी सरकारों में व्यापारियों की ही चलती है
12 साल पहले की बात है. विभाग के एक अधिकारी ने जब इलेक्ट्रो स्टील के एक शीर्ष अधिकारी (मालिक के करीबी रिश्तेदार) से पूछा और कहा कि– ‘आपने अवैध भूमि कब्जा कर रखी है, तो उस ईएसएल अफसर ने कहा कि आपने व्यापारी वर्ग की पहुंच नहीं देखी है। सभी सरकारों में व्यापारियों की ही चलती है, चाहे वह यूपीए की हो या एनडीए की। आनेवाले दिनों में यह अवैध भूमि वैध होगी, इसकी मैं आपको गारंटी देता हूं।’ इसे सत्यापित किया राज्य की यूपीए और एनडीए, दोनों की सरकारों ने। जब वर्तमान मंत्रिमंडल शपथ ग्रहण की स्थिति में थी, उससे 10 दिन पहले केंद्रीय विभाग ने इसकी फाइल क्लियर कर दी। न केवल 174.39 एकड़ वही हड़पी गई जमीन, बल्कि इसके अलावा भी 15 एकड़ सहित कुल 183.4 एकड़ अवैध भूमि को कम्पनी के नाम बंदोबस्त करने की सहमति दे दी गई। आश्चर्य तो इस बात की है कि कम्पनी ने बिना जमीन का मूल्यांकन किये ही वर्तमान मूल्य की लगभग 80 प्रतिशत राशि राज्य सरकार के खजाने में जमा भी कर दी है.
वन भूमि कैैसे हड़पी जाती है…ये वेदांता से सीखिए…!
लोगों का कहना है कि भारतीय स्वतंत्रता के बाद इतने बड़े पैमाने में वन विभाग की जमीन का घोटाला कभी नहीं हुआ है। यह काला अध्याय जुड़ा भी तो बोकारो से। झारखंड में दशकों से वन विभाग की जमीन पर रह रहे हजारों आदिवासी और गरीब परिवार चंद डिसमिल जमीन के क्लीयरेंस के इंतजार में हैं, वहीं वेदांता इलेक्ट्रोस्टील ने कुछ ही दिनों में सारा ‘खेल’ कर लिया। उसने रोमन कहावत – ‘आई केम, आई सॉ एंड आई कॉन्कर’ (मैं आया, मैंने देखा और मैंने कब्जा कर लिया) को भी चरितार्थ किया है। सच्चाई क्या है, लोग जानते हैं। लेकिन, इस पूरे प्रकरण ने वन भूमि हड़पने की एक नई राह खोल दी है। यह बता दिया कि वन भूमि हड़पना हो, तो इलेक्ट्रोस्टील से सीखिए।
जमीन को कई छद्म नामों से बेचा गया
जमीन संबंधी धांधली का ही नतीजा रहा है कि अपनी स्थापना के बाद से ही इलेक्ट्रो स्टील विवादों में घिरा रहा। कंपनी की स्थापना के बाद उसी के द्वारा पोषित लोगों ने जमीन को कई छद्म नामों से बेचा, जिनके पास मालिकाना हक भी नहीं था, वे भी सौदेबाजी में शामिल हुए। दुखद यह है कि वन विभाग के अधिकारी उपायुक्त से लेकर रजिस्ट्रार तक को लिखते रहे कि ये सारी रजिस्ट्रियां फर्जी हो रही हैं, इसे रोका जाय। लेकिन, सभी अधिकारी खामोश रहे। ग्रामीण-रैयतों के साथ भी खूब लड़ाई हुई। धनबाद के तत्कालीन मासस विधायक अरूप चटर्जी ने भी लंबा विरोध किया. उस समय के एक डीएसपी ने इस संवाददाता को बताया कि किसी भी हालत में अवैध जमीन पर ईएसएल का ही कब्जा होना है, क्योंकि इनकी ‘ऊपर’ की सेटिंग जबदरस्त है। उन्होंने भी अपने बेटे को इस कम्पनी में अधिकारी बनवा लिया।
ईएसएल ने जवाब देना तक मुनासिब नहीं समझा: इस सन्दर्भ में वेदांता-इलेक्ट्रो स्टील का पक्ष जानने के लिए उसके सक्षम अधिकारियों से कई बार फोन तथा ई-मेल पर सम्पर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनलोगों ने इसका कोई जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। खबर लिखे जाने तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिल सका था।
जब मंत्री ने की इलेक्ट्रो स्टील की तरफदारी
इस मामले में पूछने पर वन विभाग के एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इलेक्ट्रो स्टील ने भागाबांध में बाजाब्ता फ्लड लाइट जलाकर रात के अंधेरे में लैण्डमूवर के सहारे सुरक्षित एवं अधिसूचित वनभूमि पर जंगलों को उजाड़ा और जमीन समतल की। इलेक्ट्रो स्टील द्वारा सैकड़ों एकड़ वन भूमि की प्रकृति को चीन से लाये गये भाड़े के कर्मचारियों ने रातों-रात बदलने का काम किया। लेकिन, किसी भी उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी ने भी वन विभाग के अधिकारियों की फरियाद नहीं सुनी। बाद में सरकार के तत्कालीन भूमि सुधार व राजस्व मंत्री ने वन विभाग के अधिकारियों सहित अन्य शीर्ष पदाधिकारियों के साथ एक बैठक बुलायी, जिसमें मंत्री जी ने कर्मठ व ईमानदार अधिकारियों की पीठ थपथपाने की जगह उन्हें खरी-खोटी सुनाई और खुद को कम्पनी के पक्षकार के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने उस बैठक में संबंधित अधिकारियों को यह कहते हुए नसीहत भी दी कि ‘यदि आप लोगों का यही रवैया रहा तो झारखंड में कोई भी उद्यमी अपना उद्योग नहीं लगाना चाहेगा।’ अब सवाल उठता है कि आखिर इस नसीहत के पीछे क्या राज था? सवाल यह भी है कि वन विभाग के पास वन-भूमि के सारे साक्ष्य रहने के बावजूद सरकार ने इस कम्पनी का साथ क्यों दिया? यह जांच का एक गंभीर विषय है।
जमीन के मालिकाना हक पर सुप्रीम कोर्ट का स्टे
दरअसल, वन विभाग ने उक्त जमीन के मालिकाना हक को लेकर न्यायालय में टाइटल अपील सं.- 33/2007 दायर कर रखी है। वन विभाग की ओर से मुकदमे की पैरवी कर रहे अधिवक्ता मो. इकबाल ने इस संबंध में पूछने पर बताया कि इस मामले में फिलहाल सुप्रीम कोर्ट से स्टे लगा हुआ है। उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित रहने के कारण बोकारो के जिला न्यायालय में इस मामले की सुनवाई स्थगित है। 18 अप्रैल को जिला न्यायालय में इसकी तारीख मुकर्रर है, जबकि इसके पूर्व पिछले 20 फरवरी को भी इस मामले में तारीख मुकर्रर थी। दूसरी ओर विधि विशेषज्ञों ने इस पूरे प्रकरण में आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि जब वन विभाग और इलेक्ट्रो स्टील के बीच जमीन के मालिकाना हक को लेकर जारी मुकदमा न्यायालय में लंबित है, तो फिर इसी बीच इलेक्ट्रो स्टील को लीज पर बंदोबस्त करने की प्रक्रिया जारी रखने का क्या औचित्य है? जानकारों ने सवाल किया कि क्या इलेक्ट्रो स्टील ने यह मान लिया है कि उसके द्वारा हड़पी गई जमीन वन विभाग की ही है, जिसे वह झूठ का सहारा लेकर अपना बताता रहा है?
बोकारो डीसी का पक्ष
इस मामले में पूछे जाने पर जिले के उपायुक्त कुलदीप चौधरी ने कहा कि सरकारी निर्देश के आलोक में वेदांता इलेक्ट्रो स्टील की कुल जमीन का मूल्यांकन किया जा रहा है। यह फाइल अपर समाहर्ता को सुपुर्द कर दी गई है, जिनकी रिपोर्ट का इंतजार है। इस संबंध में फिलहाल विभागीय स्तर पर काम चल रहा है। सूत्रों के अनुसार उपायुक्त, बोकारो के पत्रांक-3206/रा., 21.12.2022 के प्रसंग में राज्य सरकार के राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग के पत्रांक-5/स.भू. बोकारो (ईएसएल)-80/16 237 (5)/रा./ 20 जनवरी द्वारा विभागीय पत्रांक-4321/रा., 07.12.2022 तथा वर्ष 2018 में विभागीय संकल्प सं.- 48/रा., 03.01.2017 के आलोक में उपायुक्त को इलेक्ट्रो स्टील लिमिटेड द्वारा अवैध रूप से धारित भूमि की लीज बंदोबस्ती के लिए अद्यतन बाजार दर पर उक्त जमीन का मूल्यांकन करवाने का निर्देश दिया गया है।बहरहाल, झारखंड या केंद्र सरकार के सामने ये यक्ष प्रश्न खड़ा है कि क्या वन विभाग इलेक्ट्रो स्टील से कभी जमीन वापस ले सकेगा…?