नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहली बार अपनी मातृ संस्था आरएसएस ने जो सुझाव दिया है, उसपर गौर करना भाजपा की सेहत के लिए सही रहेगा. आनेवाले सभी चुनावों में हिंदुत्व की लकीर पीटने से भाजपा के कोई विशेष सफलता अर्जित होगी, इसमें संदेह है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ‘द ऑर्गनाइजर’ ने कहा है कि क्षेत्रीय स्तर पर मजबूत नेतृत्व और प्रभावी कार्य के बिना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा और हिंदुत्व चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.
कर्नाटक में 40 प्रतिशत कमीशन मामले में पीएम की चुप्पी घातक सिद्ध हुई
एक रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा के लिए अपनी स्थिति का जायजा लेने का यह सही समय है. क्षेत्रीय स्तर पर मजबूत नेतृत्व और प्रभावी कार्य के बिना प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा और हिंदुत्व एक वैचारिक गोंद के रूप में पर्याप्त नहीं होगा. जब राज्य स्तर का शासन चालू होता है तो सकारात्मक कारक, विचारधारा और नेतृत्व, भाजपा के लिए वास्तविक संपत्ति हैं. कर्नाटक की पूर्ववर्ती बोम्मई सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की ओर इशारा करते हुए और चुनाव परिणामों को ‘आश्चर्यजनक’, लेकिन ‘चौंकाने वाला नहीं’ बताते हुए कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी के केंद्र में सत्ता संभालने के बाद पहली बार भाजपा को विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार के आरोपों का बचाव करना पड़ा. मोदी का न खाऊंगा न खाने दूंगा, वाला जुमला कर्नाटक में नहीं चला. कर्नाटक में 40 प्रतिशत कमीशन मामले में मोदी का चुप रहना घातक सिद्ध हुआ है.
भाजपा को अब हिंदू-मुसलमान करना महंगा पड़ सकता है?
रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान का नेतृत्व करने के बावजूद भाजपा ने पूरे राज्य में खराब प्रदर्शन किया. प्रधानमंत्री ने चुनाव को डबल इंजन सरकार के लिए वोट के रूप में बताते हुए अभियान को एक व्यक्तिगत स्वर दिया था. साथ ही अभियान के अंतिम दौर में बजरंग बली का आह्वान करके इसे एक ध्रुवीकरण मोड़ भी दिया था. भाजपा पहली बार भ्रष्टाचार के मसले चारों खाने चित्त हुई है. चुनावी रणनीति के लिए भाजपा को अब हिंदू-मुसलमान करना महंगा पड़ सकता है. कर्नाटक इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. बजरंग दल से पीएम द्वारा बजरंगबली से जोड़ना कहीं से भी बुद्धिमानी भरा कदम नहीं था. मोदी जी ने अगर भ्रष्टाचार पर प्रहार किया होता तो कर्नाटक ही नहीं पूरे देश में अच्छा संदेश जाता. लोगों का यह भी मानना है कि सिर्फ मोदी के भरोसे 2024 की चुनावी नैया पार नहीं हो सकती.