गिरिडीह जिले में पहले 60 शिक्षक बर्खास्त हुए…अब 225, अप्रैल से ही फर्जी शिक्षकों के वेतन पर लगी है रोक, दर्जनों शिक्षक डर से पूर्व में ही छोड़ी नौकरी,विभागीय अधिकारी भी सवालों के घेरे में, कोर्ट से भी राहत मिलने की उम्मीद नहीं, अधिकतर जाली सर्टिफिकेट राज्य के बाहर के.
नारायण विश्वकर्मा
रांची : गिरिडीह जिले में सबसे अधिक फर्जी गुरुजी मिलने से खलबली मच गई है. आखिर क्या कारण है कि इसी जिले में अब तक 285 पारा शिक्षक गलत प्रमाण पत्रों के जरिए बहाल हुए थे. वेरिफिकेशन के बाद फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर गिरिडीह में 225 पारा शिक्षक (सहायक अध्यापक) नौकरी कर रहे थे। इससे पूर्व गिरिडीह के 60 शिक्षकों के सर्टिफिकेट फर्जी पाए गए थे. जिन्हें सेवा से हटाने का निर्देश स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग ने दिया था। अब फिर 225 पारा शिक्षकों को सेवा से मुक्त करने के लिए गिरिडीह जिला शिक्षा अधीक्षक विनय कुमार ने निर्देश दे दिया है। एक अगस्त 2023 के प्रभाव से इन्हें सेवा से हटाने का निर्देश जारी किया गया है. हालांकि शिक्षकों के शैक्षणिक प्रमाण पत्र में संस्थान की मान्यता को लेकर अप्रैल से ही इनके वेतन पर रोक लगी हुई थी. दूसरी तरफ इस मामले में विभागीय अधिकारी भी सवालों के घेरे में आ गए हैं. उन पर भी उंगलियां उठायी जाने लगी हैं.
कोर्ट की शरण में जाने से भी शिक्षकों को राहत मिलने की उम्मीद नहीं
सवाल उठता है कि 20 साल बाद सहायक शिक्षकों को बर्खास्त कितना वाजिब है? शिक्षकों के सर्टिफिकेट यदि फर्जी थे, तो बहाली के वक्त जिला शिक्षा समिति, प्रखंड शिक्षा समिति और नोडल अधिकारी ने आखिर किस तरह से जांच की? बगैर सूक्ष्मता से जांच किए बिना बहाली कैसे कर ली गई? कायदे से ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं चाहिए? दूसरी तरफ सहायक अध्यापक शिक्षक संघ ने यह सवाल उठाया है कि पारा शिक्षक पिछले 20 वर्षों से सेवा दे रहे हैं. इतने दिनों के बाद एक झटके में सैकड़ों शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया जाएगा, तो उनके परिवारों के भविष्य का क्या होगा? आखिर 20 साल से विभाग गहरी निंद्रा में क्यों सोया हुआ था? संघ ने कहा है कि यदि शिक्षकों की बर्खास्तगी हुई, तो उग्र आंदोलन छेड़ा जाएगा. हालांकि इस मामले का सबसे बड़ा पेंच यह है कि कोर्ट की शरण में जाने से भी शिक्षकों को कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं है.
क्या रिश्वत लेकर ‘ओके’ करनेवाले अधिकारियों पर गाज गिरेगी…?
बता दें कि पारा शिक्षकों (अब सहायक शिक्षक) की बहाली 2002-03 में शुरू हुई थी. 40:1 के आधार पर पारा शिक्षकों की बहाली ग्राम शिक्षा समिति के अनुमोदन पर की जाती थी. अंतिम निर्णय का अधिकार संबंधित प्रखंड के बीईईओ को था, क्योंकि बहाली प्रक्रिया के नोडल अधिकारी वही हुआ करते थे. उन्हें ग्राम शिक्षा समिति के अनुमोदन को भी पलटने का अधिकार था. विभागीय सूत्रों की मानें तो बहाली प्रक्रिया में अंतिम अनुमोदन के नाम पर रिश्वत लेकर सब कुछ ‘ओके’ कर दिया जाता था. यानी जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति की गई. अहम सवाल ये कि क्या ऐसे अधिकारियों पर गाज गिरेगी? हालांकि दर्जनों शिक्षकों ने अपने फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर पहले ही नौकरी ही छोड़ दी है. लेकिन 20 साल तक सैलरी उठाने के बाद अपने मन से नौकरी छोड़ देने के बाद भी उनपर कार्रवाई नहीं होगी, यह कहना अभी मुश्किल है. ऐसे शिक्षक भी डरे-सहमे हैं.
झारखंड से बाहर के अधिकतर जाली सर्टिफिकेट पाए गए
बता दें कि गिरिडीह जिले के 225 पारा शिक्षकों के प्रमाण पत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद, प्रयाग महिला विद्यापीठ इलाहाबाद, भारतीय शिक्षा परिषद लखनऊ, गुरुकुल विश्वविद्यालय वृंदावन, मथुरा से निर्गत हैं। इसकी जांच की जा रही थी। वेरिफिकेशन के बाद उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने स्पष्ट किया कि इन संस्थानों से जारी सर्टिफिकेट वैध नहीं हैं। उसके आधार पर जिला शिक्षा अधीक्षक ने कार्रवाई शुरू कर दी है। फर्जी पाए गए शिक्षकों के मैट्रिक, इंटरमीडिएट, स्नातक या फिर प्रशिक्षण (बीएड-डीएलएड) का सर्टिफिकेट फर्जी है। वहीं, सर्टिफिकेट जांच के दौरान ही 30 पारा शिक्षकों ने इस्तीफा दे दिया। इनके अलावा 59 पारा शिक्षा अनैतिक रूप से बहाल थे और उनमें 12 पर तो क्रिमिनल केस दर्ज थे। गिरिडीह में फर्जी कागजात पर शिक्षक बनने सबसे अधिक 285 गिरिडीह टॉप पर है. इसके अलावा गिरिडीह से सटे कोडरमा जिले का दूसरा नंबर है. यहां 51 फर्जी कागजात के आधार पर नौकरी में बहाल हुए थे. इसके बाद रांची में 26, रामगढ़, हजारीबाग में 20-20, साहिबगंज में 18, देवघर-पाकुड़ में 17-17, बोकारो में 14, पूर्वी सिंहभूम में 13, गढ़वा-लोहरदगा में 11-11 और सरायकेला-खरसावां में 10 पारा शिक्षकों का स्थान है. वहीं लातेहार में 9, पलामू में 8, धनबाद में 7, चतरा-खूंटी में 6-6, दुमका-गुमला-पश्चिमी सिंहभूम में 4-4 पारा शिक्षक फर्जी पाए गए हैं.