टाइगर जयराम महतो के फेस्बूक वाल से – सर्वविदित है कि हमारा झारखंड अकेले देश को 40 से 45 फ़ीसदी खनिज उपलब्ध करवाता है अर्थात यहां की मिट्टी के नीचे खनिज है यानी मिट्टी का मूल्यवान हुई.. किंतु दुर्भाग्य है यहीं की मिट्टी कौड़ी के भाव बिक रही है.. और सबसे ज्यादा क्रय करने वाले व्यक्ति बाहरी अधिकारी और उद्योगपति हैं.. यहां की माटी को बेचने में यहां के रसूखदारों का भी योगदान बहुत है.. जमीनें भी हमारी छीनी गई और बेघर, विस्थापन और पलायन भी हमारा ही हुआ.. हमने विकास के नाम पर अपनी जमीनें दान दी पर हमें ही विकास में भागीदारी नहीं मिली.. हमारी जमीनों पर कल-कारखाने लगे पर हमें ही नौकरी नहीं मिली.. हमारी जमीनों पर स्कूल-कॉलेज बने, पर हमें ही वहां पर नामांकण नहीं मिला.. हमारी जमीनों पर अस्पताल बने, पर हमने ही ईलाज के आभाव में सड़कों पर ही दम तोड़ दिए.. अगर इसी को विकास कहते हैं, फिर मैं तो इस विकास से संतुष्ट नहीं हूँ.. इन्हीं अनैतिकता, धृष्टता अमानवीयता, असंवैधानिकता के कारण झारखंड में नक्सलवाद की क्रांति गूंज रही है…
हमें अपनी जमीनों से,जंगलों से खाने को अन्न चाहिए..
पर बेईमानों को व्यापार करने के लिए लकड़ी चंदन चाहिए..
एक आम व्यक्ति हथियार तब उठाता है जब वह होता बेबस और लाचार है..
और अक्सर क्रांति का नाम हो जाता है हिंसा जब घर में ही छिन जाता अधिकार है