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Thursday, September 19, 2024
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गिरिडीह इलाके के विभिन्न अंचलों में स्थित देवी मंडपों का गौरवशाली इतिहास जानें…आखिर क्यों सदियों से होती आ रही है पूजा-अर्चना…?

टिकेतों के परिवारों से गहरा जुडा़व है छोटानागपुर अंचल की दुर्गा पूजा 

सदियों पुराने देवी मंडप भक्तों के लिए किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं

(श्री आदि दुर्गा मंडा)
गिरिडीह (कमलनयन) : भारतीय संस्कृति में आदि काल से मातृ शक्ति के प्रति श्रद्धा-सम्मान व वंदन का भाव रहा है. आदिशक्ति ही अजर, अमर और अविनाशी है। शारदीय व बांसती नवरात्र शक्ति उपासना के महापर्व माने जाते हैं। भक्तगण इन नवरात्रो में मातृ शक्ति की आराधना अलग-अलग स्वरूपों में करते हैं। सनातन दर्शन में शक्ति का संबंध मां काली, माँ लक्ष्मी और आदिशक्ति दुर्गा से है। सनातनी मातृ शक्ति को मानव जीवन का आधार मानकर विभिन्न स्वरूपों में पूजते हैं. झारखंड के गिरिडीह इलाके में आदिशक्ति की पूजा तकरीबन दो सौ वर्षों से होती आ रही है। 18वीं शताब्दी के उतारार्ध में छोटानागपुर में  (टिकेतों) क्षेत्रीय राजाओं ने अपनी-अपनी रियासतों में शारदीय/बसंती  नवरात्रों में जगत जननी आराधना की शुरुआत की थी। टिकेतों के शाही खजाने से बड़े धुमधाम से देवी मंडपों में मां दुर्गापूजा का अनुष्ठान सम्पन्न होता था. कई जगहों पर इस दरम्यान मेला लगता था। जिसमें कई गांवों के लोग शामिल होते थे। इस दौरान भक्ति-संगीत और लोक संस्कृति के कार्यक्रम किये जाते थे। कालान्तर में लगभग दुर्गा मंडप भव्य भवनों में परिवर्तित हो गये। अब ये दुर्गा मंडप स्थानीय लोगों के दिलों में तीर्थों के समान हैं, जहां लोगों की हर मनोकामना आकार लेती  है। इन देवी स्थलों पर लोगों की अटूट आस्था जुड़ी हुई है. तभी तो हर सुख-दुःख में लोग सबसे पहले इन्हीं देवी मंडपों में आकर मत्था टेकते हैं एवं नवरात्र के पवित्र दिनों में शक्ति की अधिष्ठात्री माँ दुर्गा की वंदना कर मनचाही मुराद पाते हैं। मातारानी भी नवरात्र के दिनों में अपने भक्तों की हर सकारात्मक मनोकामना पूरी करती है. इन देवी स्थलों में नवरात्र के पावन दिनों में जगत की पालनहार माता रानी निःसंतान दम्पतियों को संतान सुख, कुंवारीं कन्याओं को मनचाहा वर, बीमार काया को स्वस्थ शरीर, बेरोजगारों के हाथों को काम, उलझे केस-मुकदमों में सफलता सहित नाना प्रकार के कष्टों से मुक्त कर भौतिक सुख व समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती है।

(श्रीश्री आदि दुर्गा प्रतिमा)

कुछ ऐसे देवी मंडप जो, शक्ति पीठ के रूप में जाने जाते हैं

गिरिडीह इलाके के विभिन्न अंचलों में स्थित देवी मंडपों का धार्मिक दृष्टिकोण से बडा गौरवशाली इतिहास रहा है। विभिन्न इलाकों के जानकारों के मुताबिक जिले के लगभग सभी अंचलों में ऐसे देवी मंडप हैं, जहां करीब ढाई वर्षों से मातृ शक्ति की पूजा होती आ रही है। स्वाभाविक है कि जो लोग कतिपय कारणों से चारों धाम की यात्रा नहीं कर पाते हैं, वे अपने इलाके के देवी मंडपों को शक्ति पीठ के रूप में मानते हैं, जहा भक्तों को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं. हम यहां जिक्र कर रहे हैं कुछ ऐसे देवी मंडपों की जो, शक्ति पीठ के रूप में शुमार है. इनमें जमुआ अंचल के मिर्जागंज के बदडीहा बाजार में स्थित देवी मडप जहां, 220 वर्षों से नवरात्रों में दुर्गा पूजा हो रही है। सरिया के जरीडीह में 1940 से देवी की पूजा हो रही है। पीरटांड़ प्रखंड के पालगंज में तत्कालीन टिकेत परिवार ने सौ साल पूर्व दुर्गा पूजा प्रारम्भ की थी। डुमरी अनुमंडल में डुमरी थाने के समीप 1801 में पहली दफे शारदीय नवरात्र में देवी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की शुरुआत हुई थी। बेंगाबाद अंचल के खुरचट्टा में टिकेत विश्वनाथ नारायण सिंह ने दो दशक पहले शाही खर्चे से दुर्गा पूजा आरंभ की थी।

(अरगाघाट का दुर्गामंडा)

महामारी से मुक्ति के लिए 140 वर्ष पूर्व मातारानी की शुरू हुई पूजा

इसी प्रकार गांवा में 18वीं शताब्दी में टिकेत पुष्कर नारायण सिंह के परिवार द्वारा निजी कोष से भगवती देवी की भव्य पूजा शुरू की गयी थी, यह क्रम आज भी जारी है। बिरनी के जनता जरीडीह में टिकेत विचित्र नारायण सिंह ने नवरात्रों में देवी की पूजा प्रारम्भ की, यह क्रम अनवरत जारी है। देवरी के ढेंगाडीह में स्थानीय ग्रामीणों ने महामारी से मुक्ति के लिए 140 वर्ष पूर्व मातारानी की नौ दिवसीय पूजा प्रारम्भ की जो लगातार जारी है। सरिया के झंडा चौक पर सन 1925 से माता दुर्गा की पूजा शुरू हुई और अनवरत आज भी भव्य रूप से की जा रही है। जमुआ के नवडीहा बाजार में 1814 में टिकेत महापोत नारायण सिंह ने देवी दुर्गा की पूजा की शुरुआत हुई थी, यह क्रम निरन्तर जारी है। देवरी के दुर्गा मंडप में गुही हाजरा की अगुवाई में 110 वर्ष पहले ग्रामीणों ने शारदीय नवरात्रा में प्रथम देवी प्रतिमा स्थापित कर पूजा की शुरुआत की वह आज भी जारी है।

(पंचबागढ़ दुर्गामंडा)

पचंबागढ दुर्गा मंडा: 1880 में टिकेत सिद्ध नारायण सिंह ने देवी पूजा की शुरुआत की

गिरिडीह जिला मुख्यालय के पचंबागढ दुर्गा मंडा के रूप में विख्यात दुर्गा मंडा में 1880 में टिकेत सिद्ध नारायण सिंह द्वारा पहली दुर्गा पूजा आरंभ हुई। इसी प्रकार गिरिडीह शहरी क्षेत्र में श्रीश्री आदि दुर्गा मंडा बडी मां, गांधी चौक दुर्गा मंडा, बरगंडा काली मंडा, अर्गाघाट दुर्गा मंडा, मंगरोडी दुर्गा मंडा, सिहोडीह, पांडेडीह, मोहनपुर समेत राज धनवार, बगोदर और गाण्डेय  में देवी स्थानों का सौ साल पुराना गौरवशाली इतिहास रहा है।

(बरगंडा काली मंडा)

सदर क्षेत्र के सुर सुंदरी एकेडेमी, संस्कृति संघ बरगंडा, विजय इंस्टीच्यूट,  बरमसिया,  बनियाडीह, सैन्ट्रलपीठ, मोहनपुर, पचंबा-बोडो सहित अन्य देवी मंडपों का भी काफी गौरवशाली इतिहास रहा है। इन सभी देवी स्थानों में नवरात्रा में पूरे विधि विधान से मातृ शक्ति की आराधना की जाती है। यही कारण है की सुख-दुःख की घड़ी में सबसे पहले लोग देवी मंडपों में आकर मत्था टेकते हैं।
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