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Saturday, November 23, 2024
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केंद्रीय नेतृत्व ने राज्यपाल बनाकर रघुवर दास को कई मुश्किलों से उबारा…जानिए कैसे…?

  • रघुवर दास के राज्यपाल बनने के बाद अब उनके खिलाफ हाईकोर्ट में दर्ज मुकदमों का क्या होगा, ये बड़ा सवाल है. संवैधानिक पद पर पहुंचने के बाद जांच एजेंसियों या कोर्ट के बंध जाते हैं हाथ.

  •  क्या झाऱखंड में अब बाबूलाल मरांडी को मिल गया है खुला मैदान…?

  • झारखंड गठन के बाद पहली बार झारखंड से किसी राजनेता को राज्यपाल बनने का अवसर मिला

  • नारायण विश्वकर्मा

रांची : भाजपा के शीर्ष केंद्रीय नेतृत्व ने जिस तरह से कुछ महीनों के अंदर झारखंड में सांगठनिक स्तर पर जो ऑपरेशन शुरू किया था, उसकी अंतिम कड़ी के रूप में रघुवर दास को झारखंड की राजनीति से बेदखल करना अबतक का सबसे बड़ा उलटफेर माना जाना चाहिए. रघुवर दास के उड़ीसा के राज्यपाल बनने से उनके समर्थकों के लिए यह सबसे बड़ा झटका है. राज्य की राजनीति के कई मुकाम बदलेंगे और कुछ जुड़ेंगे भी. वैसे अचानक रघुवर दास को हाशिये पर डाल देना, लोगों को अचंभे में जरूर डाल दिया है. राज्य की राजनीति को करीब से जानने-समझने वाले यह मान रहे हैं कि झारखंड में अब बाबूलाल मरांडी को खुला मैदान मिल गया है. वहीं भाजपा में चल रही अंदरूनी गुटबाजी का दौर फिलहाल थम गया है. केंद्रीय नेतृत्व इससे वाकिफ था. वहीं संवैधानिक पद पर पहुंचने के बाद रघुवर दास को जांच एजेंसियों या कोर्ट के चक्कर से भी छूट मिल गयी है. रघुवर दास के खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट में लंबित मुकदमे भी शायद लंबित ही रह जाएंगे. उधर, ईडी की संभावित पूछताछ से भी उन्हें छुटकारा मिल गया है. इस तरह केंद्रीय नेतृत्व ने एक रणनीति के तहत रघुवर दास को राज्यपाल बनाकर उन्हें कई मुश्किलों से उबार दिया है. एक खास बात ये हुई कि झारखंड गठन के बाद पहली बार झारखंड से किसी राजनेता को राज्यपाल बनने का गौरव प्राप्त हुआ है. इसे ऐतिहासिक माना जाएगा.

सूबे की राजनीति से रघुवर के बेदखल होने के मायने…!  

केंद्रीय नेतृत्व झारखंड में इस बार आदिवासी कार्ड के सहारे झारखंड में सत्ता पाना चाहती है. यहां के राजनीतिक दांव-पेंच से निबटने के लिए रघुवर दास को बाबूलाल मरांडी के रास्ते से हटाना जरूरी था. भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहते रघुवर दास का झारखंड में राजनीतिक दखल जारी था. लोग कहते हैं कि जब भी किसी मंच पर रघुवर-मरांडी का सामना होता था, तो दोनों ओर से वहां असहजता की स्थिति उत्पन्न हो जाया करती थी. रघुवर दास और बाबूलाल मरांडी के समर्थकों के बीच भी एक खिंचाव का अनुभव किया जाता था. रघुवर दास के समर्थकों को लगता था कि केंद्रीय नेतृत्व का रघुवर दास के प्रति सॉफ्ट कार्नर है. बाबूलाल मरांडी गुट को भी शायद इसका अहसास था. इसके अलावा झारखंड के जनमानस भी असमंजस की स्थिति थी. ये कहते सुना जाता था कि अगर आदिवासी सीएम ही बनाना है तो केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के नाम पर भी विचार किया जा सकता है. पहले अर्जुन मुंडा और अब रघुवर दास को झारखंड की राजनीति से दूर कर देने से अब सभी गुट झक मार कर बाबूलाल मरांडी के पाले में आ जाएंगे और जनमानस में भी भ्रम की स्थिति खत्म हो जाएगी.

रघुवर-मरांडी के एंगल में सरयू राय फैक्टर

जानकार मानते हैं कि रघुवर दास और बाबूलाल मरांडी के एंगल में  निर्दलीय विधायक सरयू राय भी एक फैक्टर हैं. केंद्रीय नेतृत्व यह मानता है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में रघुवर दास का अहंकार और उनकी हठधर्मिता के कारण ही सरयू राय को भाजपा छोड़नी पड़ी थी. इसके अलावा उस समय केंद्रीय नेतृत्व ने भी रघुवर दास पर आंख मूंद कर भरोसा किया. सरयू राय की कोई दलील नहीं चली. नतीजतन भाजपा के हाथ से झारखंड की सत्ता निकल गई और रघुवर दास को विलेन माना गया. रघुवर दास के समर्थकों को भी यह गंवारा नहीं था. उनके समर्थक कहते हैं कि उस वक्त रघुवर दास अगर अपना अंहकार छोड़कर सरयू राय के प्रति नरम रुख अपनाते तो, कम से कम मौजूदा सरकार में प्रतिपक्ष के नेता जरूर रहते. यूं झारखंड की राजनीति से बेदखल नहीं होते. झारखंड की मौजूदा राजनीति में रघुवर दास पर सरयू राय उनके कथित भ्रष्टाचार को लेकर हमला करने से नहीं चूक रहे हैं. खासकर मैहहर्ट के मामले में सरयू राय ने तो बाकायदा एक किताब ही लिख डाली है. यह मामला अभी झारखंड हाईकोर्ट में लंबित है.

सरयू राय के ‘मैनहर्ट’ मामले का क्या होगा?

राजनीतिक पंडित अब यह मान रहे हैं कि बहुत जल्द सरयू राय की भाजपा में इंट्री हो जाएगी. इसके पीछे उनका तर्क है कि सरयू राय की भाजपा में वापसी के लिए रघुवर दास को झारखंड से वनवास मिला है. क्योंकि रघुवर के पार्टी में रहते हुए सरयू राय भाजपा में आने के बारे शायद ही मन बना पाते. यहां सवाल उठता है कि बदले राजनीतिक हालात में अगर सरयू राय की भाजपा में वापसी होती है तो, सरयू राय के मैनहर्ट का क्या होगा? क्या वे पूर्व की भांति रघुवर पर हमलावर होंगे, या उनकी धार कुंद पड़ जाएगी? ये आनेवाला समय बताएगा. दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के मामले में रघुवर दास को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी घेरा है. खासकर पूछताछ के क्रम में ईडी के समक्ष सीएम ने यह सवाल भी उठाया था कि खनन घोटाले के मामले तो पूर्व की सरकार के समय से चला आ रहा है, फिर सिर्फ उन्हीं से पूछताछ क्यों? इससे ईडी के अधिकारी असहज हो गए थे. उधर, रघुवर दास के भ्रष्टाचार के मामले में भाजपा भी बैकफुट पर आ गई थी.

सरयू राय ने रघुवर पर लगे भ्रष्टाचार के मामलों में ईडी पर भी उठा चुके हैं सवाल

बता दें कि ईडी जब अवैध खनन घोटाले पर हेमंत सोरेन से नवंबर 2022 में पूछताछ करनेवाला था तो, सरयू राय ने ईडी से पूछा था कि हेमंत सोरेन को अगर ईडी समन जारी कर एक हजार करोड़ के अवैध माइनिंग में पूछताछ करेगा तो, बगैर पूर्व सीएम रघुवर दास के इस पूरे प्रकरण में इंसाफ नहीं होगा. दरअसल, 2015-20 के बीच हुए खनन घोटाले में रघुवर दास के कार्यकाल का जिक्र होना लाजिमी है. सूत्र बताते हैं कि रघुवर दास के राज्यपाल बनने से अब ईडी उनसे पूछताछ करने से बच सकता है. हेमंत सरकार की ओर से टॉफी-टीशर्ट मामले में भी रघुवर दास के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति मिल चुकी है. इसके अलावा अवैध माइनिंग मामले में हेमंत सोरेन से ज्यादा घोटाला रघुवर दास के सीएम एवं खान मंत्री रहते हुआ है। इसका प्रमाण ईडी की उसी चार्जशीट में है, जिसके आधार पर हेमंत सोरेन को उस समय पूछताछ के लिए बुलाया गया था. बहरहाल, रघुवर दास के राज्यपाल बनने के बाद अब उनके खिलाफ हाईकोर्ट में दर्ज मुकदमों का क्या होगा, ये बड़ा सवाल है.     

 

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