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Tuesday, September 17, 2024
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सुनील तिवारी की पाती सुप्रियो के नाम…! जानिए आखिर क्या है उसका मजमून?

सुनील तिवारी ने सुप्रियो भट्टाचार्या को लंबा-चौड़ा पत्र लिखा है. पत्र में सुनील तिवारी ने कहा है कि उनपर लगाए गए आरोपों के आधार पर सुप्रियो के खिलाफ मानहानि का मुकदमा तो बनता है, पर वे ऐसा करेंगे नहीं। सुनील तिवारी ने इस मैसेज को व्हाट्सएप के माध्यम से भेजने के बाद इसे ट्वीट भी किया. इस पत्र के बाद राजनीतिक मौहाल में गरमा गया है,अब देखना है कि सुप्रियो इस पत्र का कैसे और किस तरह से जवाब देते हैं…! 

रांची : झामुमो केन्द्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने प्रेस कांफ्रेंस कर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के राजनीतिक सलाहकार सुनील तिवारी के ऊपर लगाए आरोप के बाद मामला गरमा गया है। सुप्रियो भट्टाचार्य को भेजे गये व्हाटसएप मैसेज में सुनील तिवारी ने अपना पक्ष रखते हुए एक तरह से सुप्रियो को धमकाया और पुचकारा भी है। सुनील तिवारी ने लिखा है कि लगाए गए आरोपों के आधार पर मानहानि का मुकदमा तो बनता है, पर वे ऐसा करेंगे नहीं। सुनील तिवारी ने इस मैसेज को व्हाट्सएप के माध्यम से भेजने के बाद इसे ट्वीट भी किया है। मैसेज के जरिए से सुनील तिवारी ने लिखा है कि आज तक आपने मेरे खिलाफ अनेक प्रेस कांफ्रेस किए, जिस पर मैंने अपनी शालीनता को बनाये रखा। परंतु ऐसा लगता है कि जैसे आपने मेरी खामोशी को मेरी कमजोरी समझ ली है। अतः आपके सभी सवालों के जवाब इस पत्र के माध्यम से दे रहा हूं। इसकी कॉपी आपके निजी व्हाट्सएप पर भी मैने भेज दिया है।

मैसेज के मजमून पर जरा गौर फरमाएं…

आदरणीय सुप्रियो दादा जी,

सप्रेम जोहार!

पिछले कुछ दिनों से एक के बाद एक आपका हमसे एवं हमारे परिवार से संबंधित आरोपों की बौछार वाला धुंआधार प्रेस कॉन्फ्रेंस समाचारों की सुर्खियों में देखने को मिला। आधी-अधूरी एकतरफा जानकारी के आधार पर आप जितना कह चुकें हैं, वह आप पर मानहानि का मुकदमा करने के लिये पर्याप्त एवं यथेष्ट है। लेकिन मैं वो काम नहीं करूंगा जो, गुजरे काल में राजनैतिक विरोधियों से निपटने के लिये आपलोगों ने सत्ता के पावर को टूल किट की तरह इस्तेमाल कर किया है। हमारे जीवन में साठ साल की उम्र तक कभी भी 107 का मामला झेलने का भी मौका नहीं आया। लेकिन आप महानुभावों की असीम कृपा एवं आशीर्वाद से मुझे डराने, चुप कराने एवं मुंबई कांड में मेरे द्वारा मुंबई हाईकोर्ट में दायर हस्तक्षेप याचिका से हटाने के लिये पहले मुझे धमकी मिली। फिर अगस्त 2021 में मुझ पर ताबड़तोड़ दो-दो मुकदमे करवाये गये, जेल भेजा गया, जान मरवाने तक की साजिश रची गई।

JHC ने मुझे न सिर्फ जमानत दे दी, बल्कि पुलिस की कार्यशैली पर प्रतिकूल टिप्पणी भी की

मैंने जून 2021 में ही मुंबई कांड के बदले स्वरूप पर मुकदमा कराने का षड्यंत्र की जानकारी मैंने पत्र लिखकर मुख्य सचिव समेत अन्य अफसरों को भी दे दिया था और ठीक तीन महीने बाद वैसा ही सबकुछ मेरे साथ हुआ। झारखंड हाईकोर्ट ने मुझे न सिर्फ जमानत दे दी, बल्कि मेरे मामले में पुलिस की कार्यशैली पर प्रतिकूल गंभीर टिप्पणी की। छह महीने मुझे तड़ीपार रहना पड़ा। मुझे जेल में ही सड़ाने के लिये इतनी “तत्परता और जरूरत” थी कि मेरी जमानत रद्द कराने के लिये भारी-भरकम वकीलों की टीम रखकर झारखंड सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी।सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा दी गयी जमानत को सही मानकर पहली तारीख में झारखंड सरकार की जमानत रद्द करने के अनुरोध वाले एसएलपी को सिरे से खारिज कर दिया। मेरे पर दर्ज मामलों की सीबीआई जांच की याचिकाओं की झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही है। अगर हाईकोर्ट से अनुमति मिली तो जांच देर-सबेर जरूर होगी। तब मैं सप्रमाण बताऊंगा कि किन-किन महानुभावों ने किस-किस तरीके से कब-कब मुझे मुंबई केस से हटाने के लिये किस हद तक जाकर प्रलोभन देने एवं दबाव में लेने का अथक प्रयास किया था।

बेहतर होता कि आप आरोप लगाने से पहले जांच-परख कर लेते…!

श्री तिवारी ने कहा कि आप पर मुकदमा इसलिये भी नहीं करूंगा कि मेरी नजर में आप उस तानाशाह जमात के एक सज्जन, गंभीर एवं निर्विवादित (एकाध मामलों को छोड़कर) व्यक्ति रहे हैं। मुझे पता है कि इसके पीछे वो कौन शातिर दिमाग के लोग हैं जो, आपका इस्तेमाल एक भोंपू के रूप में करते हैं। लेकिन आपका यह दायित्व है कि कुछ भी बोलने से पहले अपनी जानकारी को जांच-परख लें। अगर हमारे बारे में आप बिना सिर-पैर की आधारहीन बात भी करेंगे तो चलेगा। लेकिन जब कभी मर्यादा की लक्ष्मण रेखा लांघ कर मेरे परिवार-बच्चों के बारे में कुछ कहें, आरोप लगायें तो पहले उसे जांचे-परखे। आप उस जमात के समझदार और विनम्र व्यक्ति माने जाते हैं। आप तो अगस्त 2021 से प्रेस कान्फ्रेंस कर मेरे नाम की माला कई बार जप चुके हैं. मेरे बारे में पता लगाने में दो साल तीन महीने लग गये। मैं पत्रकार रहा हूं, लिखना-पढ़ना मेरी दिनचर्या है। सो, किताब के रूप में आपसबों से वैसी जानकारी भी साझा करने का प्रयास करूंगा जो आजतक अनकही-अनछपी हैं। प्रेस में चटखारे लेकर छपवाने के लिये ये भी कहा जा सकता है कि “ जोहार साथियों, जब इस सरकार में जेपीएससी का गठन हुआ तो कुछ नाम ऐसे दिखे जिनके बारे में पता ही नहीं चल रहा था। बड़ी मेहनत से पता किया कि तो पता चला कि उनका झारखंड में योगदान इतना भर है कि वो फलां महानुभाव का परिवार हैं। उनको जो सरकारी वेतन-भत्ता मिलता है वो, किसी दल के नेता के पास जाता है कि नहीं, उस पैसे का भोजन वो नेता जी करते हैं या नहीं, श्वेत पत्र जारी कर बताया जाये…! वैसे इसका फैसला करने का अधिकार हम आपके विवेक पर भी छोड़ते हैं। मैं तो ये काम कभी नहीं करूंगा। इसलिये नहीं करूंगा कि मेरा जमीर न तो मुझे ऐसा करने देगा और न ही मैं जिनके लिये काम करता हूं वो मुझे ऐसा करने के लिये भोंपू बनने की इजाजत देंगे। सुनील तिवारी ने आगे लिखा कि योगेन्द्र तिवारी कौन है? क्या है? किसके माध्यम किसको कितने पैसे दिये। अगर इसमें कुछ मुझसे या मेरे परिवार से संबंधित कोई वक्तव्य देना हो तो जरूर दीजिये। एक नहीं सौ बार दीजिये। लेकिन एक बार हमसे सीधे ही पूछ लीजिये तो वादा है हम तथ्यपरक सही जानकारी आपको जरूर देंगे, ताकि आपका कोई तथ्यहीन एकपक्षीय गलत बयान हंसी-मजाक का विषय नहीं बने।

योगेन्द्र तिवारी के मेरे परिवार से पुराना संबंध है, पर अगर हमारी संलिप्तता है तो, मुकदमा करवाइए…!

मैं दूसरों की तरह न तो मुंह छिपाऊंगा न ही इस बात से इंकार करूंगा कि योगेन्द्र तिवारी को तो हम जानते ही नहीं। डंके की चोट पर कहता हूं कि योगेन्द्र ही नहीं बल्कि उनके पिताजी से पैंतीस सालों से सुख-दुख का पारिवारिक संबंध था, है, और कल भी रहेगा। उन्होंने अगर गलत किया है और उसकी गलती में मैं सहभागी हूं तो मुझे भी कानूनन सजा मिले। मैं उनलोगों जैसा नहीं हूं जो सुविधा, सहयोग और लालच के लिये ’’यूज एंड थ्रो’’ की नीति पर कपड़े की तरह आदमी बदलते रहते हैं। कहिये तो नाम गिनाऊं? मेरे परिवार के जिस बैंक ट्रांजेक्शन की एकतरफा जानकारी की ओर आप इशारा कर रहे हैं वह किसी जमीन के छोटे प्लाट की खरीद के लिये एक जमीन मालिक को …..2017 में एडवांस के रूप में ड्राफ्ट के जरिये दी गई थी। फिर वह पूरी जमीन जिन्होंने सीधे मालिक से ले ली उन्होंने …..2021 को वही सेम एमाउंट चेक से मेरे परिवार के खाते में वापस किये। याद रहे, मेरे परिवार के खाते में, मेरे खाते में नहीं। अगर आपकी नजर में यह रकम मेरे मार्फत राजनीतिक लेन-देन का है तो यह आपकी बुद्धि की बलिहारी है और इस पर मुझे कोई सफाई नहीं देनी है। मेरे परिवार के ऐसी खरीद-बिक्री में अकाउंट से लेन-देन कोई दूसरे मामले भी हो सकते हैं। मेरा परिवार तीस सालों से इनकमटैक्स पेयी हैं। वह काम कर सकती है। ठीक वैसे ही जैसे किसी राजनीति से जुड़े व्यक्ति का परिवार गैरराजनीतिक संवैधानिक पद पर बतौर मेंबर मनोनीत होकर काम कर सकता है और कर रहा है। आपने बड़े गर्व से बताया था कि ’’ जोहार साथियों, फलां कंपनी 2005 में बनी, जिसमें फलां-फलां डायरेक्टर हैं। ये देखिये प्रमाण हैं या नहीं।” लेकिन आप शायद हड़बड़ी में ये बताना भूल गये कि आपने जिन-जिन को डायरेक्टर बताया, वे लोग तो 2009 में ही उस कंपनी से इस्तीफा देकर पूरी तरह अलग हो चुके थे। इस इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के युग में कोई जानकारी जुटाना मुश्किल थोड़े न है। मिनटों में होता है ये सब। मैं तो कहूँगा कि ऐसे मामले में अगर सीधे हम पर मुकदमा कर कार्रवाई कराने का स्कोप आपसबों को नहीं मिल रहा है तो, योगेन्द्र तिवारी पर शराब सिंडिकेट बनाकर सरकार की आंखों में धूल झोंककर गलत तरीके शराब कारोबारी पर कब्जा करने का मुकदमा करवाइये। फिर एसआईटी बनाइये और 2005 से ही जांच करवाईये। अगर मैं या मेरे परिवार द्वारा कोई भी गलती होगी, घपले-घोटाले में संलिप्तता होगी तो उसकी जांच के रास्ते आपको हमारी गर्दन तक पंहुचने का मौका बैठे बिठाये मिल जायेगा। फिर डंके की चोट पर हमें बेनकाब कीजिये। सुप्रियो भाई, सरकार आपकी, पुलिस आपकी। तो देर किस बात की? फटाफट यह काम करवाईये। उम्मीद है मेरी बातों को अन्यथा नहीं लेंगे और गंभीरता से विचार करेंगे। आगे लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा चुनाव है। लगे रहिये। मेहनत करते रहिये। क्या पता किस्मत खुले और लॉटरी लग जाये आपकी? लेकिन किसी के बहकावे और दबाव में झूठ पर झूठ बोलकर अपनी सभ्य पहचान को पलीता लगाने से बचें.

इन्हीं शब्दों के साथ मैं आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।

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