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Sunday, November 24, 2024
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आखिरकार झारखंड में भाजपा का ऑपरेशन लोटस कामयाब रहा…हेमंत सोरेन पार्टी की मजबूत कड़ी थेे व सीता सोरेन पार्टी की सबसे कमजोर कड़ी

-नारायण विश्वकर्मा-

जो अब चर्चा है…दुमका से सीता सोरेन की बेटी जयश्री सोरेन को भाजपा चुनाव लड़ा सकती है.

अगर हेमंत सोरेन दुमका से चुनाव लड़ते हैं तो, चाचा-भतीजी में दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा.

गुरुजी के गढ़ संतालपरगना में झामुमो को भाजपा से मिली है बड़ी चुनौती

चंपई सोरेन सरकार को गिराने और सीता सोरेन को झारखंड की बागडोर थमाने की रणनीति पर भाजपा ने काम करना शुरू कर दिया है…!

रांची : एक पुरानी कहावत है…घर फूटे गंवार लूटे…! परिवार ने उपेक्षा की और घर की बड़ी बहू ने गैरों का दामन थाम लिया और अपने देखते रह गए. इस तरह घर में फूट पड़ गई और टकटकी लगाए बाहर के लोगों ने मौका ताड़ा और बहू को अपने पाले में कर लिया. पार्टी और परिवार से दूर हो चुकी झामुमो से जामा की तीसरी बार विधायक बनी सीता सोरेन ने अंतत: पार्टी और परिवार को अलविदा कह दिया. पूर्व मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन ने झामुमो के सभी पदों से और विधायक पद से भी मंगलवार की सुबह इस्तीफा दे दिया है। उन्‍होंने पार्टी के अध्‍यक्ष शिबू सोरेन को अपना इस्‍तीफा सौंप दिया है। इस्तीफे की खबर आने के बाद झारखंड की सियासत में अचानक भूचाल आ गया. इस्तीफे को लेकर सीता सोरेन ने अपने पत्र में किसी साजिश के रचे जाने की बात कही है। झामुमो की सबसे कमजोर कड़ी सीता सोरेन को लपकने के लिए पहले से ही भाजपा तैयार बैठी थी. भाजपा की पटकथा पहले से तैैैैयार थी. मंगलवार को पटकथा के मुुुुुुताबिक सीता सोरेन अपनी दोनों बेटियों जयश्री सोरेन और राजश्री सोरेन के साथ भाजपा में शामिल हो गईं.  सीता सोरेन लगातार दिल्ली में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में संपर्क में थी. कहा जाता है कि भाजपा के गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे की रणनीति आखिरकार काम आ गई. इस तरह राज्यसभा चुनाव में रिश्वतकांड में फंसी सीता सोरेन की आनेवाली मुसीबत भी फिलहाल टल गई है. हेमंत सोरेन पार्टी की मजबूत कड़ी थेे और सीता सोरेन पार्टी की सबसे कमजोर कड़ी थी. इस्तीफे के बाद झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने माना है कि राज्यसभा चुनाव में रिश्वत कांड को लेकर सीता सोरेन पर भाजपा का दबाव था. इसी कारण सीता सोरेन को भाजपा के आगे समर्पण करना पड़ा है. अगर वह ऐसा नहीं करती तो उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू हो जाती. वहीं हेमंत सोरेन ने ऑपरेशन लोटस के आगे झुकना मंजूर नहीं किया और अंतत: उन्हें जेल जाना पड़ा. सीता सोरेन ने ऐसा करने की हिम्मत नहीं दिखाई. 

सीता के इस्तीफे के साइड इफेक्ट्स से चंपई सरकार की आनेवाली है शामत !

झारखंड में अब भाजपा की पटकथा के मुताबिक राजनीतिक परिदृश्य बदलेगा. सीता सोरेन के इस्तीफे के चंद दिनों के बाद इसका साइड इफेक्ट भी देखने को मिलेगा. इसका सबसे बड़ा साइड इफेक्ट चंपई सोरेन सरकार को बुरी तरह से प्रभावित करेगा. सूत्र बताते हैं कि सीता सोरेन की बड़ी बेटी जयश्री सोरेन जो दुर्गा सोरेन सेना की अध्यक्ष हैं, को भाजपा दुमका से लोकसभा का टिकट दे सकती है. अगर ऐसा हुआ तो, जोड़तोड़ की राजनीति कर भाजपा सीता सोरेन को झारखंड की बागडोर सौंपने की रणनीति पर काम करेगी. कहा जाता है कि झामुमो लगभग 8 विधायक सीता सोरेन के संपर्क में हैं. वे सभी झामुमो से अपना पल्ला झाड़ सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो फिर चंपई सोरेन सरकार अल्पमत में आ सकती है. वहीं हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ लगातार सदन से सड़क तक के मुखर विरोधी रहे  बोरियो से झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम पहले से खार खाए बैठे हैं. वे निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान करते हैं. इसके अलावा झामुमो के तमाम वरिष्ठ विधायकों के अंदर भी नाराजगी की आग सुलग रही है. दो साल पूर्व तो झामुमो के 12 विधायक पाले बदलने की फिराक में थे. इनमें बसंत सोरेन का नाम भी शुमार था.

सीता सोरेन अपनी उपेक्षा से पार्टी व परिवार से काफी नाराज थी

राजनीतिक हलकों में अब यह चर्चा आम है कि भाजपा सुनील सोरेन को रिप्लेस कर अब दुमका से सीता सोरेन की बड़ी बेटी जयश्री सोरेन को चुनाव लड़ा सकती है. अगर हेमंत सोरेन यहां से चुनाव लड़ेंगे तो फिर लोगों को चाचा-भतीजी के बीच दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा. दरअसल, दिशोम गुरु शिबू सोरेन के परिवार की बड़ी बहू ने अचानक पाला बदलने का मन नहीं बनाया. पार्टी और सरकार में सीता सोरेन की लगातार उपेक्षा होने से वह बेहद खफा थी. लेकिन हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद सीता सोरेन को लगा था कि अब उन्हें बड़ी बहू होने का फर्ज निभाने का मौका मिलेगा. लेकिन हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन को प्रोजेक्शन करने का काम शुरू किया गया. जब चंपई सोरेन को सीएम बनाया गया तो सीता को उम्मीद थी कि उनकी वरीयता को देखते हुए उन्हें मंत्री जरूर बनाया जाएगा, लेकिन उनके छोटे देवर बसंत सोरेन को मंत्री बना दिया गया. इतना होने के बावजूद सीता सोरेन चाहती थी कि उनकी बेटी को झामुमो के टिकट पर दुमका से टिकट मिलना चाहिए था, लेकिन कहा गया कि जेल जाने के बाद प्रयोग के तौर पर हेमंत सोरेन को दुमका से चुनाव लड़ाए जाना चाहिए. ये भी नहीं हुआ. इसके बाद सीता सोरेन के सब्र का पैमाना छलका और वे अपनी दोनों बेटियों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया. इंडिया गठबंधन ने भी कल्पना सोरेन को अधिक तरजीह देने का काम किया. कल रात मुंबई से चंपई सोरेन के साथ कल्पना सोरेन के रांची पहुंचने के बाद सीता को लगा कि अब सबकुछ कल्पना सोरेन के हवाले है. पार्टी और परिवार में उनकी कोई औकात नहीं है. इसलिए भारी मन से अपने ससुर शिबू सोरेन को अपना इस्तीफा सौंप दिया. उन्‍होंने पार्टी और परिवार के सदस्‍यों पर आरोप लगाते हुए कहा कि सबने उन्‍हें अलग-थलग कर दिया है।

चंपई सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं

सीता सोरेन के इस्तीफे के बाद झामुमो के क्राइसिस मैनेजर अब मंथन करें कि सीता सोरेन के साथ पार्टी या परिवार ने कितना इंसाफ किया. लेकिन इस बात से पार्टी को भी सहमत होना चाहिए कि कल्पना सोरेन को प्रोजेक्शन करने में सीता सोरेन को पूरी तरह हाशिये पर धकेल दिया गया. अगर सीता सोरेन को चंपई सोरेन की सरकार में जगह मिल गई होती तो झामुमो को आज यह दिन देखना नही पड़ता. हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद बसंत सोरेन के राजनीतिक भविष्य पर अधिक ध्यान दिया गया. बसंत सोरेन को मंत्री पद मिलते ही उन्होंने सीता सोरेन के दर्द को समझने का प्रयास नहीं या फिर अपनी बड़ी भाभी और भतीजियों की उपेक्षा करने लगा. बहरहाल, संतालपरगना गुरुजी का गढ़ है. इस गढ़ में अब भाजपा की इंट्री हो गई है. झामुमो को अपने गढ़ में बड़ी चुनौती मिली है. वहीं चंपई सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं.  

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