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Tuesday, September 17, 2024
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बीसीसीएल के चेयरमैन ने कहा-बढ़ सकती है झरिया मास्टर प्लान की अवधि, पुनर्वास और पुनर्स्थापन का काम जारी

रांची : धनबाद जिले में कोयला खनन से आग लगने और जमीन धंसने की समस्या से निपटने के लिए केंद्र ने झरिया मास्टर प्लान (जेएमपी) का प्रस्ताव केंद्रीय मंत्रिमंडल के पास मौजूद है. बीसीसीएल के चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक समीरन दत्ता ने सोमवार को इसकी जानकारी दी है। श्री दत्ता ने बताया कि 33,000 आवास पहले ही बनाए जा चुके हैं, जिनमें से बीसीसीएल 18,000 घर बना रहा है, जबकि बाकी आवास झरिया पुनर्वास विकास प्राधिकरण (जेआरडीए) बना रहा है। उन्होंने कहा कि इस योजना में स्कूल, कॉलेज और अन्य स्मार्ट सिटी सुविधाओं जैसे जरूरी सामाजिक बुनियादी ढांचे का निर्माण भी शामिल है।

2009 में झरिया मास्टर प्लान को मंजूरी मिली थी

बता दें कि केंद्र सरकार ने अगस्त, 2009 में झरिया मास्टर प्लान को मंजूरी दी थी। इसमें 10 साल की कार्यान्वयन अवधि और दो साल की पूर्व-कार्यान्वयन अवधि के साथ 7,112.11 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश का प्रावधान था। इसकी अवधि 2021 में खत्म हो गई थी। इस वित्त पोषण का मूल्य करीब 7,000 करोड़ रुपये बना हुआ है, क्योंकि कोल इंडिया प्रभावित इलाके के लोगों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन में योगदान जारी रखे हुए है। इस वित्तपोषण का मूल्य करीब 7,000 करोड़ रुपये बना हुआ है, क्योंकि कोल इंडिया प्रभावित इलाके के लोगों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन में योगदान जारी रखे हुए है। उन्होंने बताया कि 33,000 आवास पहले ही बनाए जा चुके हैं, जिनमें से बीसीसीएल 18,000 घर बना रहा है, जबकि बाकी आवास झरिया पुनर्वास विकास प्राधिकरण (जेआरडीए) बना रहा है।

विस्तार के प्रस्ताव पर केंद्र से जल्द मंजूरी मिलने की उम्मीद 

उन्होंने कहा कि इस योजना में स्कूल, कॉलेज और अन्य स्मार्ट सिटी सुविधाओं जैसे जरूरी सामाजिक बुनियादी ढांचे का निर्माण भी शामिल है। अधिकारी ने बताया है कि झरिया मास्टर प्लान का पहला चरण पूरा हो चुका है, जिसमें लगभग 2,800 परिवारों को सफलतापूर्वक स्थानांतरित किया गया है और 2021-22 में आग प्रभावित क्षेत्र को 17.32 वर्ग किमी से घटाकर 1.8 वर्ग किमी कर दिया गया है। समीरन दत्ता ने कहा, जेएमपी योजना के विस्तार का प्रस्ताव केंद्रीय मंत्रिमंडल के पास है। हमें उम्मीद है कि जल्द इसकी मंजूरी मिल जाएगी। क्योंकि इसमें वित्त पोषण को लेकर कोई परेशानी नहीं है। पहले चरण में करीब 2,000 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी योजना में करीब 7,000 करोड़ रुपये बाकी हैं।

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