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Thursday, September 19, 2024
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झामुमो नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा- भाजपा अब सांप्रदायिक डेमोग्राफी की बात कर रही है…क्योंकि अब उनके पास कोई मुद्दा बचा नहीं है…!

रांची : जब देश आजाद हुआ था तब भारत में 33 करोड़ की आबादी थी. आज 150 करोड़ है। ये 75 साल का आंकड़ा है। अब डेमोग्राफी को लेकर भाजपा की ओर से भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है। भाजपा अब सांप्रदायिक डेमोग्राफी की बात कर रहे है। ये कौन सा खेल चल रहा है और हाईकोर्ट में इसे क्यों लाया जा रहा है। कोर्ट में यदि कुछ चल रहा है तो, पार्टी के दफ्तरों में क्यों उसकी आलोचना हो रही है? राजनीतिक दल का दफ्तर न्यायालय नहीं है। न्यायालय की कोई भी कार्रवाई में राजनीतिक दल को यदि आना है तो उनको इंटरवेनर बनना पड़ेगा। क्या भाजपा इस केस की इंटरवेनर है जो, उनके दफ्तर में ये बात होती है। कोर्ट में शपथपत्र जमा हुआ है। कोर्ट को ये तय करना है कि उसपर सुनवाई होगी या नहीं। कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा, जो उनसे वाकिफ नहीं होंगे वो और ऊपर की अदालत में जा सकते हैं। लेकिन यहां तो ऐसा लग रहा है माना पैराशूट ड्रॉपिंग हुआ है मुसलमानों का, ईसाइयों का। ये हाल है भाजपाइयों का. ये कहना है कि मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य का.

भाजपा के शपथपत्र को लेकर सुप्रियो ने कई सवाल दागे

श्री भट्टाचार्य झामुमो कार्यालय में शुक्रवार को अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्र सरकार द्वारा घुसपैठ मामले में हाईकोर्ट में जमा किए गए शपथपत्र का जिक्र कर कई सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में घुसपैठ को लेकर केस चल रहा है। वो शपथपत्र हमने भी पढ़ा। कल शपथ पत्र दायर हुआ। और फिर उसकी सुनवाई अगले मंगलवार को होगी। लेकिन उसके पहले ही भाजपा का एक पॉलिटिकल बयान सामने आया कि डेमोग्राफी चेंज हो गयी है। संथालपरगना में बांग्लादेशी घुसपैठिया है। भारत सरकार की तरफ से या आधार की जो ऑथोरिटी है, उसकी तरफ से कहीं इस बात का जिक्र नहीं है कि बांग्लादेश से कुछ लोग संथालपरगना के इलाके में आकर रह रहे हैं। शपथ पत्र में 2011 के सेंसस को एक आधार बनाया गया। उसमें 1961 को बेसलाइन माना गया और 2011 का सेंसस दिया गया है। मतलब 50 साल का समय। सवाल उठता है कि उसमें कहीं भी संख्या का जिक्र क्यों नहीं है?

50 वर्षों में पूरे हिंदुस्तान की डेमोग्राफी बदली है, ये भला भाजपाइयों को कौन समझाए…!

उन्होंने शपथपत्र का जिक्र करते हुए कहा कि उसमें यह भी कहा गया कि तब आदिवासियों की प्रतिशत इतनी थी और मुस्लिमों की इतनी थी और ईसाइयों की इतनी थी और अब ये रह गई। संतालपरगना के छह जिले को लेकर न्यायालय में शपथपत्र दायर किया है। उन्होंने रांची के एक बहुत पुराने बाशिंदे से बात का हवाला देते हुए कहा कि उस बुजुर्ग की उम्र लगभग 97-98 साल थी। हमने उनसे पूछा कि रांची में लोग कब से आ रहे हैं। तब उन्होंने हमसे कहा कि 1952 से जब एचईसी का निर्माण होना शुरू हुआ तब से लोग आने लगे। उस वक्त रांची में पूरे जिले की आबादी 3 लाख से भी कम थी और आज रांची शहर की आबादी 35 लाख से ज्यादा है। उस वक्त मूलत: रांची में आदिवासी सबसे बड़ी कम्युनिटी थी. उसके बाद शहर के अंदर बंगाली कम्युनिटी थी। लेकिन आज की स्थिति ऐसी है कि बंगाली कम्युनिटी कई कारणों से दूसरी सबसे बड़ी कम्युनिटी नहीं है। 50 वर्षों में पूरे हिंदुस्तान की डेमोग्राफी बदली है। ये भाजपाइयों  को भला कौन समझाए. दरअसल, इस साधारण से तर्क को समझने के बजाय हिंदू-मुस्लिम जैसे विषयों को उछाल कर भाजपा वोट बैंक की राजनीति करना चाहती है, जिसमें अब वो सफल नहीं हो पाएगी.
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