हज़ारीबाग डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जी के जन्मदिन की शुभअवसर पर विनोवा भावे यूनिवर्सिटी लॉ कॉलेज के पूर्व प्राचार्य रहे डॉ जयदीप सान्याल ने रांची पटना मार्ग पर स्थित डॉ राजेन्द्र प्रसाद के प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।डॉ सन्याल ने कहा की वर्ष 1946 में राजेन्द्र प्रसाद पंडित जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में शामिल हुए। कृषि उत्पादन को अधिक से अधिक बढ़ाने और किसानों के दुःख-दर्द को दूर करने के दृढ़ पक्षधर के रूप में उन्होंने “अधिक अन्न उपजाओ” का नारा दिया था।
जुलाई 1946 में, जब भारत के संविधान को बनाने के लिए संविधान सभा की स्थापना की गई, तो वे इसके अध्यक्ष चुने गए। स्वतंत्रता के ढाई साल बाद, 26 जनवरी, 1950 को, स्वतंत्र भारत के संविधान की पुष्टि की गई और वे देश के पहले राष्ट्रपति चुने गए।डॉ सन्याल ने कहा कि डॉ. प्रसाद ने राष्ट्रपति भवन के शाही वैभव को एक सुंदर “भारतीय” घर में बदल दिया।सितम्बर 1962 में अवकाश ग्रहण करते ही उनकी पत्नी राजवंशी देवी का निधन हो गया। मृत्यु के एक महीने पहले अपने पति को सम्बोधित पत्र में राजवंशी देवी ने लिखा था – “मुझे लगता है मेरा अन्त निकट है, कुछ करने की शक्ति का अन्त, सम्पूर्ण अस्तित्व का अन्त।” राम! राम!! शब्दों के उच्चारण के साथ उनका अन्त 28 फरवरी 1963 को पटना के सदाक़त आश्रम में हुआ।
उनकी वंशावली को जीवित रखने का कार्य उनके प्रपौत्र अशोक जाहन्वी प्रसाद कर रहे हैं। वे पेशे से एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त वैज्ञानिक एवं मनोचिकित्सक हैं। उन्होंने बाई-पोलर डिसऑर्डर की चिकित्सा में लीथियम के सुरक्षित विकल्प के रूप में सोडियम वैलप्रोरेट की खोज की थी।अशोक जी प्रतिष्ठित अमेरिकन अकैडमी ऑफ आर्ट ऐण्ड साइंस के सदस्य भी हैं।
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