गुमला : – प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 2.0 एवं झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वाटरशेड यात्रा का आज गुमला जिले के विशुनपुर प्रखंड के चिंगरी गाँव में मुख्य कार्यक्रम के साथ सफल समापन हुआ। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य जल संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना एवं जल संचयन को बढ़ावा देना था।
इस अवसर पर गुमला जिले के उप विकास आयुक्त दिलेश्वर महतो, भूमि संरक्षण पदाधिकारी आशीष प्रताप, जिला परिषद उपाध्यक्ष संयुक्ता देवी, जलछाजन विभाग के अधिकारी एवं कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। कार्यक्रम के दौरान वाटरशेड तकनीक, ड्रिप सिंचाई, जल संग्रहण एवं व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया गया।
गुमला जिले के खास कर विशुनपुर के पाट क्षेत्र के भौगोलिक संरचना को देखते हुए जल संरक्षण की आवश्यकता को प्राथमिकता दी गई। इस क्षेत्र में जल संचयन एक बड़ी चुनौती रही है, जिससे खेती, पशुपालन और ग्रामीण आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जल संकट के कारण कई स्थानीय लोग रोजगार की तलाश में पलायन कर जाते हैं। इस समस्या को देखते हुए प्रशासन ने जलछाजन को एक जन आंदोलन के रूप में विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है। जल संचयन तकनीकों को अपनाने और जल प्रबंधन के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए जल संरक्षण को ग्राम स्तर तक पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है। इस आंदोलन के अंतर्गत वर्षा जल संग्रहण, वाटरशेड तकनीक के उपयोग, छोटे जलाशयों के निर्माण, चेक डैम और ड्रिप सिंचाई प्रणाली को प्रोत्साहित किया गया, ताकि जल संरक्षण को मजबूत किया जा सके और कृषि उत्पादन में वृद्धि हो।
कार्यक्रम के दौरान जल संरक्षण एवं कृषि को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं का उद्घाटन किया गया। जल संचयन को बढ़ावा देने के लिए 2.5 एकड़ भूमि पर तालाब, ड्रैगन फ्रूट की खेती और पौधारोपण कार्यक्रम की शुरुआत की गई। यह तालाब जल संचयन के लिए निर्मित किया गया है, जिससे आसपास के किसानों को सिंचाई की सुविधा मिलेगी और वर्षा जल का संचय किया जा सकेगा। इसी भूमि पर ड्रैगन फ्रूट की खेती भी शुरू की गई है, जो आधुनिक तकनीकों के माध्यम से की जाएगी और जिसमें ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, जलवायु संरक्षण एवं बागवानी को बढ़ावा देने के लिए आम, अमरूद एवं अन्य फलदार पौधों का रोपण किया गया, जिससे पर्यावरण सुधार के साथ-साथ स्थानीय लोगों को दीर्घकालिक लाभ मिल सके।
इस अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी में विभिन्न विभागों द्वारा स्टॉल लगाए गए, जिनमें कृषि विभाग, मत्स्य विभाग, पशुपालन विभाग, हॉर्टिकल्चर विभाग एवं गैर-सरकारी संगठनों द्वारा जल संरक्षण एवं कृषि से जुड़ी योजनाओं की जानकारी दी गई।
उप विकास आयुक्त दिलेश्वर महतो ने जल संकट के समाधान के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि जल संचयन एवं वाटरशेड परियोजना इस क्षेत्र में जल संकट को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। उन्होंने कहा कि इस परियोजना से किसानों को दीर्घकालिक लाभ मिलेगा और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
भूमि संरक्षण पदाधिकारी आशीष प्रताप ने बताया कि जल संरक्षण न केवल कृषि क्षेत्र में बदलाव लाएगा, बल्कि यह स्थानीय लोगों की आर्थिक समृद्धि में भी सहायक सिद्ध होगा। उन्होंने यह भी कहा कि जल की उपलब्धता से इस क्षेत्र के पलायन को रोका जा सकता है, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
जिला परिषद उपाध्यक्ष संयुक्ता देवी ने कहा कि यह पहल किसानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “जल है तो कल है। जल संरक्षण के बिना सतत कृषि एवं जीवन संभव नहीं है। इस परियोजना से जल की उपलब्धता सुनिश्चित होगी, जिससे स्थानीय ग्रामीणों को खेती करने में सहायता मिलेगी।”
वाटरशेड स्टेट टेक्निकल एक्सपर्ट एन.के. मिश्रा ने बताया कि यह परियोजना जल संचयन को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्थानीय किसानों को आत्मनिर्भर बनाएगी। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण से सिंचाई सुविधाओं में सुधार होगा और क्षेत्र के किसान ड्रिप सिंचाई जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर बेहतर फसल उत्पादन कर सकेंगे।
स्थानीय ग्रामीणों ने भी इस पहल को लेकर उत्साह जताया। उन्होंने कहा कि जल की कमी के कारण रोजगार की समस्याएँ उत्पन्न होती थीं, जिससे वे मजबूर होकर अन्य राज्यों में पलायन करते थे। लेकिन अब जल संचयन से उन्हें अपने ही गाँव में खेती करने का अवसर मिलेगा, जिससे वे आर्थिक रूप से सशक्त बनेंगे।
न्यूज़ – गणपत लाल चौरसिया