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Thursday, November 21, 2024
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सालखन ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र: भारत के संताल आदिवासियों को मारंग बुरू वापस करने की गुहार लगाई

रांची: आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा है कि मारंग बुरु (पारसनाथ पर्वत) पर आदिवासियों का प्रथम अधिकार है। इसकी पुष्टि इंग्लैंड में अवस्थित प्रिवी काउंसिल ने भी 1911 में जैन बनाम संताल आदिवासी के विवाद पर संताल आदिवासियों के पक्ष में फैसला देकर किया था। संताल आदिवासी अपनी सभी पूजा-अर्चनाओं में सबसे पहले  “हिरला मारंग बुरू हिरला” का उच्चारण करते हैं। पारसनाथ पहाड़ में आदिवासियों का जाहेरथान अर्थात पूजा स्थल भी है। जहां युग-युग से आदिवासी पूजा-अर्चना और धार्मिक- सांस्कृतिक सेंदरा या शिकार भी करते आ रहे हैं। इस संबंध में सालखन मुर्मू ने शनिवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम एक पत्र भेजकर अपनी आदिवासी समाज की मूल भावनाओं से अवगत कराया है. राष्ट्रपति से मारंग बुरू को अविलंब भारत के संताल आदिवासियों को वापस करने की गुहार लगाई है.

सभी पहाड़-पर्वतों में आदिवासियों के देवी-देवता वास करते हैं

राष्ट्रपति को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि मारंग बुरू हमारे लिए सर्वोच्च पूजा स्थल और तीर्थ स्थल है। उसी प्रकार लुगू बुरु जो बोकारो जिले में अवस्थित है, अयोध्या बुरु, जो पुरुलिया जिला में है, भी हमारे महान तीर्थ स्थल हैं। इसी प्रकार अनेक पहाड़-पर्वत हमारे तीर्थ स्थल हैं। जिन पर लगातार हमला जारी है। उनकी रक्षा सुनिश्चित करना सभी संबंधित सरकारों की जिम्मेवारी है। हमारी मांग है अब केवल मारंग बुरू अर्थात पारसनाथ पहाड़ ही नहीं बल्कि देश की सभी पहाड़-पर्वतों को आदिवासी समाज को सौंप दिया जाए। चूंकि सभी पहाड़-पर्वतों में आदिवासियों के देवी-देवता वास करते हैं और आदिवासी भी वास करते हैं।

पारसनाथ को जैनीकरण करने की कोशिश का विरोध जारी रहेगा

उन्होंने यूनाइटेड नेशन जनरल असेंबली के अध्यक्ष कसाबा कोरोशी के वक्तव्य दिलाते हुए कहा है कि उन्होंने 16 दिसंबर 2022 को कहा है- ” यदि प्रकृति के संरक्षण प्रयासों को सफल बनाना है, तो हमें आदिवासी आबादी को उनकी भाषा में सुनना होगा।” यानी आदिवासियों के हासा, भाषा, जाति, धर्म, रोजगार आदि और संवैधानिक अधिकारों को बचाना अब प्रकृति-पर्यावरण और मानवता को बचाने जैसा है। पत्र के हवाले से कहा गया है कि जेएमएम की सोरेन सरकार ने जहां मारंग बुरु (पारसनाथ पहाड़) को जैनियों को सौंपकर इसका जैनीकरण करने की कोशिश की है तो, लुगू बुरु को पर्यटन स्थल घोषित कर इसके हिंदूकरण करने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि हेमंत सरकार ने वोट और नोट के राजनीतिक लाभ के लिए संताल परगना का ईसाईकरण और इस्लामीकरण कर असली सरना आदिवासियों के संताल परगना हमारे लिए 22 दिसंबर 1855 को अंग्रेजों द्वारा संघर्ष के उपरांत स्थापित भूभाग मातृभूमि है। इसलिए अविलंब पारसनाथ पहाड़ का नाम सरकार द्वारा अधिकृत रूप से अविलंब “मारंग बुरू” कर दिया जाए।

पारसनाथ पहाड़ का नाम बदल कर “मारंग बुरू” कर दिया जाए।

2011 की जनगणना में सर्वाधिक (लगभग 50 लाख) आदिवासियों ने अपनी प्रकृति पूजा धर्म को ” सरना धर्म ” के नाम से अंकित किया था। अतः आदिवासी सेंगेल अभियान की मांग है हर हाल में 2023 में सरना धर्म ( प्रकृति धर्म ) कोड को मान्यता देकर प्रकृति पूजक आदिवासी और प्रकृति पर्यावरण को सम्मान दिया जाए। उन्होंने राष्ट्रपति से मांग की है कि एक उच्चस्तरीय कमीशन का गठन कर वस्तुस्थिति की जांच कर आदिवासी सेंगेल अभियान, आदिवासी समाज की तरफ से मारंग बुरु को बचाने और सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए  झारखंड, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम आदि प्रदेशों के लगभग 50 जिले मुख्यालय में 17 जनवरी, 2023 को एक दिवसीय धरना प्रदर्शन आदि के माध्यम से आपको ज्ञापन- पत्र प्रेषित कर सकारात्मक कार्रवाई के लिए राष्ट्रपित को ध्यान देने का आग्रह किया है। पत्र के अंत में कहा गया है कि मरांग बुरु को अविलंब जैनों की कब्जे से मुक्त किया जाए अन्यथा आदिवासी सेंगेल अभियान एक लाख सेंगेल सेना के साथ अपने ईश्वर- ” मारंग बुरु ” की मुक्ति के लिए मजबूर हो जाएगा।

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