रांची : एचईसीकर्मियों को पिछले सात महीने से वेतन नहीं मिलने हड़ताल पर हैं. इससे एचईसी प्रबंधन पसोपेश की स्थिति में है, वहीं दूसरी ओर इस धरने को लेकर सीआईएसएफ और कर्मचारियों में ठन गई है. शुक्रवार की सुबह 9 बजे दोनों ओर से झड़प हुई है. बकाया वेतन की मांग को लेकर विरोध कर रहे एचईसी कर्मचारियों और सीआईएसएफ के बीच अप्रिय स्थिति अभी भी कायम है. कहा जा रहा है कि सीआईएसएफ एचईसी कर्मचारियों के बैनर-पोस्टर पर आपत्ति दर्ज कर रहा है। लेकिन विरोध कर रहे कर्मचारियों का आरोप है कि ये प्रबंधन की साजिश है, क्योंकि प्रबंधन नहीं चाहता कि विरोध-प्रदर्शन जारी रहे। सीआईएसएफ का कहना है कि बैनर-पोस्टर की वजह से उन्हें ड्यूटी करने में परेशानी आ रही है। विरोध कर रहे कर्मचारियों को घटनास्थल से हटा दिया गया है। लेकिन दोनों ओर तनातनी कायम है. अभी तक कोई बात नहीं बनी है. पिछले 90 दिनों से एचईसी के अधिकारी-कर्मचारी विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।
हड़तालियों के विरोध को दबाने का प्रयास
सीआईएसएफ की ओर से कहा गया है कि कर्मचारियों के विरोध पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन तामझाम के साथ विरोध-प्रदर्शन से उन्हें परेशानी हो रही है। इससे उनकी ड्यूटी में बाधा आ रही है। इस तरह से धरना-प्रदर्शन करना सरासर गलत है. यह जो रास्ता है, वह एक्सेस कंट्रोल है जो कि सीआईएसएफ के अंडर आता है, गेट पर धरना करना गलत है। हालांकि गेट पर धरना देना कोई नई बात नहीं है. सीआईएसएफ की आपत्ति पर एचईसी के कर्मचारियों का कहना है कि बैनर सीआईएसएफ को 90 दिनों के बाद नजर आया है। जिस बैनर-पोस्टर से इन्हें परेशानी हो रही है, इसे हमें आज या कल से लेकर नहीं आ रहे हैं. दरअसल, प्रबंधन के इशारे पर सीआईएसएफ ने हड़तालियों के विरोध को दबाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन हमारी मांगें पूरी होने तक इसी तरह से धरना-प्रदर्शन जारी रहेगा.
सुबोधकांत कल दिल्ली में गौबा से मिलेंगे
इधर, पूर्व केंद्रीय मंत्री और रांची के सांसद रहे सुबोधकांत सहाय ने कहा है कि केंद्र सरकार की गलत नीतियों के कारण एचईसी आर्थिक संकट से जूझ रहा है. वे दिल्ली में शनिवार को केंद्रीय कैबिनेट सचिव राजीव गौबा से मिलकर सारी बातों से उन्हें अवगत कराएंगे. उन्होंने कहा कि एचईसीकर्मियों सैलरी के लिए 37 दिन से कर्मचारी लगातार विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन अभी तक एचईसी प्रबंधन कर्मचारियों की सुध नहीं ली है. कर्मचारियों को इस बात पर घोर आपत्ति है कि एचईसी में स्थाई सीएमडी की नियुक्ति में क्यों देरी हो रही है? इसका जवाब देने के लिए कोई तैयार नहीं है.
सात माह बाद भी सीएमडी की स्थाई नियुक्ति नहीं
सवाल उठता है कि इतने बड़े संस्थान को लंबे समय से स्थाई सीएमडी नहीं मिला है. भेल के सीएमडी के पास इस संस्थान का अतिरिक्त प्रभार है. इस बीच एचईसी को उत्पादन में करोड़ों रुपए का नुकसान हो चुका है. अगर यही स्थिति बनी रही तो 1800 करोड़ रुपए का वर्क ऑर्डर पूरा करना मुश्किल होगा. इस हालात में कई कंपनियां अपना वर्क वापस ले सकती है. इसके अलावा फैक्टरी की मशीनें काफी पुरानी हो गई हैं. नयी एवं आधुनिक मशीनें वहां लगाने के लिए सुबोधकांत कैबिनेट सचिव से मांग करेंगे. बेशक एचईसी वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं. वर्क ऑर्डर के लिए वर्किंग कैपिटल की दिक्कत के साथ-साथ कर्मचारियों के वेतन में परेशानी आ रही है. एचईसी के प्रबंधक पूर्णेंदु दत्त मिश्रा का मानना है कि एचईसी की दुर्दशा के पीछे कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और गलत नीतियां जिम्मेवार है. निजी संगठनों के विपरीत, कंपनी लाभ के लिए काम नहीं करती, बल्कि वे देश के लिए काम करते हैं. कंपनी ने बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा बचाई है.
प्रबंधन ने केंद्र से 870 करोड़ की मदद मांगी
हालांकि प्रबंधन की ओर बताया गया है कि केंद्र को पत्र लिखकर 870 करोड़ रुपए की मदद मांगी गई है. भारी मशीनरी का निर्माण के क्षेत्र में एचईसी एशिया का सबसे बड़ा उपक्रम एक समय रहा है. इस्पात, खनन, रेलवे, बिजली, रक्षा, अंतरिक्ष, अनुसंधान, परमाणु क्षेत्र में देश के लिए पूंजीगत उपकरणों की आपूर्ति में एचईसी का बड़ा योगदान रहा है. वहीं दूसरी तरफ एचईसी आवासीय परिसर की खाली पड़ी जमीन की लूट मची है. अतिक्रमणकारी एचईसी की जमीन पर कब्जा कर लोकेशन के हिसाब से पांच से लेकर पचास हजार रुपए कट्ठा बेच रहे हैं. अवैध जमीन खरीदनेवाले लोगों को रातों-रात आशियाना बनाने में भी सहयोग कर रहे हैं. वहीं प्रबंधन ने अतिक्रमणकारी और जमीन पर अवैध कब्जे उतनी सख्ती नहीं दिखाता. इसके अलावा झारखंड सरकार का नगर विकास विभाग में भी शिकायत हुई है. लेकिन कार्रवाई नहीं हो पा रही है. एचईसी में अवैध निर्माण पर कभी प्रबंधन और राज्य सरकार का रवैया समझ से परे है. एचईसी में हड़ताल की वजह से काम ठप है, इस पर केंद्र सरकार को तुरंत ध्यान देना चाहिए.