रांची : चालू वित्तीय वर्ष के 31 जनवरी तक मात्र 53 फीसदी ही योजना मद व्यय राशि में खर्च होना झारखंडी समाज के साथ धोखा है। महज 51 दिन में बाकी 27 हजार करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च करना एक बड़ी चुनौती होगी। तीन मार्च को अगले वित्तीय वर्ष का बजट सरकार पेश करने जा रही है. चालू वित्तीय वर्ष के बजट की बात करें तो योजना व्यय में से 31 जनवरी तक 53 फीसदी ही राशि खर्च हो पाये हैं, जबकि 47 फीसदी राशि अभी भी विभिन्न विभागों के पास पड़े हुए हैं. अगर खर्च भी किये जाने का प्रयास किया गया तो वह मार्च लूट साबित होगा। उपरोक्त बातें गुरुवार को झारखंडी सूचना अधिकार मंच के केंद्रीय अध्यक्ष विजय शंकर नायक ने कही।
कृषि विभाग का परफॉरमेंस सबसे खराब
उन्होंने कहा कि विभागवार अगर देखा जाये तो कृषि विभाग का परफॉरमेंस सबसे खराब रहा है. कृषि विभाग ने अब तक योजना मद की राशि में से मात्र 16.32 प्रतिशत ही खर्च कर पाया है. वहीं ग्रामीण विकास विभाग 35 फीसदी राशि ही खर्च की है. ग्रामीण विकास विभाग, ग्रामीण कार्य और पंचायती राज विभाग मिलाकर ग्रामीण क्षेत्रों में 11900 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान रखा गया है, जिसमें से अभी तक 4113.26 करोड़ यानी 34.57 फीसदी राशि खर्च की जा सकी है, जो कृषि कर जीवन यापन करनेवाले किसान भाइयों एवं ग्रामीण क्षेत्र में रहनेवाले झारखंडी समाज के लोंगो के विकास की बात सरकार द्वारा बात करना बेमानी है.
पूरा बजट 3600 करोड़ का है
श्री नायक ने यह भी बताया कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में झारखंड काफी पिछड़ा हुआ है. राज्य में कृषि पर 290.36 करोड़ जिसमें अभी 367.25 करोड़, पशुपालन में 140 करोड़ के बजट से 41.60 करोड़, दुग्ध में 114.14 करोड़ में से 45.65 करोड़, मत्स्य में 154.50 करोड़ में 37 करोड़ व सहकारिता में 290 करोड़ में से मात्र 95.81 करोड़ रुपये ही खर्च हुए. कृषि, पशुपालन, दुग्ध, मत्स्य व सहकारिता का पूरा बजट मिलाकर 3600 करोड़ का है, जिसमें से अब तक 587.39 करोड़ ही खर्च किए जा सके हैं, जो राज्य हित एवं ग्रामीण क्षेत्र में रहनेवाले झारखंडी समाज के हित में नहीं है और हेमंत सरकार नहीं चाहती कि झारखंड के गरीब कृषक परिवार एवं ग्रामीण क्षेत्र में रहनेवाले झारखंडी समाज का विकास हो।