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Saturday, November 23, 2024
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झारखंड का दुर्भाग्य: BJP-RSS भी कभी आदिवासियों के दिल की धड़कन नहीं बन पाए: सालखन मुर्मू

जमशेदपुर : आदिवासी समुदाय को आज अपनी अस्तित्व- पहचान और हिस्सेदारी चौतरफा पर हमला तेज हो गया है। मगर लगभग सभी आदिवासी गांव-समाज में मरांग बुरु बचाने, सरना धर्म कोड लागू करने, संताली भाषा को झारखंड की प्रथम राजभाषा बनाने और अन्य आदिवासी भाषाओं को समृद्ध करने, सीएनटी-एसपीटी एक्ट कानून लागू करने, एसटी के हिस्सेदारी को कुरमी-महतो आदि से बचाने, शिक्षित बेरोजगारों को झारखंड में रोजगार दिलाने, झारखंड को “आबोआग दिशोम-आबोआग राज” बनाने जैसे अहम मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं हो रही है। लेकिर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा कायम रखा है, ताकि 2023 में हर हाल में प्रकृति पूजक आदिवासियों को सरना धर्म कोड प्राप्त हो सके। चुनौती बड़ी है, पर असंभव नहीं है। सोमवार को आदिवासी सेंगेल अभियान के प्रमुख एवं पूर्व सांसद सालखन मुर्मू एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कही है.

JMM वोट और नोट के चक्कर में

श्री मुर्मू ने कहा कि हमारी प्रथाओं- परंपराओं को रुढ़ियों से बचाने के नाम पर हंड़िया-दारु बचाओ (नशापान), अंधविश्वास, डायन प्रथा, आदिवासी महिला विरोधी मानसिकता और वोट की खरीद बिक्री (राजनीतिक कुपोषण) बचाओ चालू है। लगभग सभी आदिवासी गांव-समाज अनपढ़, पियक्कड़, संविधान कानून से अनभिज्ञ कुछ लोगों के कब्जे में है। वोट और नोट के लालच में झारखंड मुक्ति मोर्चा इसको बढ़ावा देने का काम करता है। और उसके सहयोगी संगठन असेका, माझी परगना महाल, संताली लेखक संघ आदि समाज सुधार और आदिवासी अस्तित्व की रक्षा के बदले उसको बर्बादी और गुलामी की तरफ धकेलने का काम कर रहे हैं।

आदिवासियत से ज्यादा ईसाइयत की फिक्र क्यों?

उन्होंने कहा कि आदिवासी गांव- समाज चाहे तो आज एकजुट होकर अपनी रक्षार्थ खड़ा हो सकता है। ईसाई मिशनरी भी अपनी धार्मिक लाभ के लिए भाजपा-आरएसएस का डर दिखाकर जेएमएम-कांग्रेस को साथ देते हुए नकली आदिवासी पैदा कर रहे हैं. ये आदिवासियत से ज्यादा ईसाईयत की फिक्र करते हैं। संथाल परगना में सरना आदिवासियों की दुर्दशा इसका साक्षात प्रमाण है। मगर दुर्भाग्य से भाजपा-आरएसएस के पास भी आदिवासियों के दिल की धड़कन नहीं है।

आदिवासी सेंगल अभियान सात राज्यों में क्रियाशील

उन्होंने कहा कि आदिवासियों की अस्तित्व रक्षा में यह बेकार साबित हो रहे हैं। इसलिए आदिवासी समाज को खुद एकजुट होकर संविधान-कानून के मार्फत निर्णायक संघर्ष करना होगा। वे कहते हैं आदिवासी सेंगेल अभियान (सेंगेल) फिलहाल सात प्रदेशों- झारखंड, बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा के लगभग 300 प्रखंडों में क्रियाशील है। सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक सशक्तीकरण के काम को आगे बढ़ा रहा है।

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