गिरिडीह (कमलनयन) जैन मुनियों की तपो भूमि सम्मेद शिखर मधुबन में सोमवार को भौतिक सुखों से लैस माया नगरी मुंबई की दो चचेरी बहनों ने सांसारिक जीवन का परित्याग कर शेष जीवन साध्वी बनकर बिताने का संकल्प लिया है. दोनों बहनों ने विधि-विधान के बीच केशलोचन का विधान पूरा कर, स्वेत वस्त्र धारण कर साध्वी बन गई। जैन मुनि आचार्य भगवंत मुक्ति प्रभु जी महाराज के सानिध्य में मुंबई की दर्शी बेन और देशना बेन ने दीक्षा लेकर खुद की मेहनत से अर्जित की गई लाखों की धनराशि भी सम्मेद शिखर मधुबन के कई गांवों के गरीब और जरूरतमंदों के बीच झूमते-गाते हुए बांटी।
दोनों चचेरी बहनों ने ग्रामीणों के बीच लाखों रुपए बांटे
आयोजकों की मानें तो दोनों चचेरी बहनों ने इस दौरान कई गांव के ग्रामीणों के बीच लाखों रुपए बांटे। दोनों बहनों के साथ उनके माता-पिता समेत हजारों की संख्या में अलग-अलग राज्यों से आए जैन समाज के श्रद्धालु भव्य धार्मिक आयोजनों के गवाह बने। बताया गया कि जैन साध्वी बनने का विधान पूर्ण होने के पश्चात बेटियों के अभिभावक अमित शाह और मनीष शाह ने कहा कि उनके परिवार के सदस्यों ने कुछ महत्वपूर्ण पुण्य के काम किये होंगे, जो उनकी बेटियां सांसारिक मोहमाया त्याग कर दीक्षा लेते हुए जैन साध्वी बनी। आगे उनकी बेटियां पूरे देश भर में जैनधर्म के तहत अंहिसा परमोधर्म के सिद्धांतों को अपनाने का आह्रवान करेगी।

दोनों बहनों का हुआ नया नामकरण
बताया गया कि जैन साध्वी का दीक्षा लेने के बाद आचार्य मुक्ति प्रभु जी महाराज ने दोनों बहनों का नया नामकरण करते हुए दर्शी बेन का नया नाम पूज्य देवारण्य पुण्य और देशना बेन का नाम पूज्य चित्य पुण्य श्री नाम दिया। दोनों का नया नामांकरण होते ही आयोजन स्थल में श्रद्धालुओं ने दोनों के खूब जयकारे भी लगाएं।
जैन साध्वी से प्रभावित होकर सांसारिक जीवन त्यागने का बहनों ने लिया फैसला
उल्लेखनीय है कि मुंबई निवासी अमित शाह का कोई बेटा नहीं है. ईश्वर ने एक बेटी के रुप में दर्शी बेन दिया। वह मुंबई में रहकर सीए बनी। तीन साल पहले 16 साल की उम्र में सम्मेद शिखर आयी थी. फिर यहीं की होकर रह गई। जबकि अमित के भाई मनीष शाह के बेटे नहीं है. बेटी के रुप में देशना बेन का जन्म हुआ। मनीष शाह की बेटी देशना भी माया नगरी मुंबई में रहते हुए पढ़ाई पूरी की। 12वीं की पढ़ाई करते हुए मधुबन पहुंची। दोनों बहनों ने सम्मेद शिखर मधुबन में जैन समाज के मुनियों के बीच रहकर पिछले साल जैन साध्वी रत्ना सूरी जी महाराज के मंगल चार्तुमास काल में उनके संस्कारों और उद्बोधन से प्रेरित होकर सांसारिक जीवन त्यागने और जैन साध्वी बनने का संकल्प लिया।