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Saturday, November 23, 2024
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यूसीसी का कोई ठोस प्रारूप सामने आए बिना विरोध का हौवा खड़ा करना जायज नहीं: सालखन मुर्मू

रांची : आदिवासी प्रथा,परंपरा, रूढ़िवादिया आदि की रक्षा के नाम पर रविवार को एक्सएलआरआई ऑडिटोरियम में यूसीसी का विरोध किया गया और उसके पक्ष में कई तर्क दिये गए. कहा गया कि यूसीसी का एक प्रकार से संविधान, कानून, मानव अधिकार और जनतंत्र का विरोध करना है। जब अभी तक यूसीसी का कोई ठोस प्रारूप सामने नहीं आया है, तब विरोध का हौवा खड़ा करना जायज नहीं है। आदिवासी सेंगेल अभियान ने इस संबंध में पिछले 3 जुलाई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को यूसीसी संबंधी अपना ज्ञापन प्रेषित कर मांग की है कि आदिवासी समाज को पहले लेबल प्लेयिंग फील्ड दिया जाए। यूसीसी में कोई भी फैसला आदिवासियों के ऊपर होने के पूर्व आदिवासियों को मौलिक अधिकार के रूप में सरना धर्म कोड प्रदान किया जाए। क्योंकि बाकी सभी भारतीय धार्मिक आधार पर अपने अधिकारों और यूसीसी पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं तो आदिवासी को भी धार्मिक आधार पहले मिलना जरूरी है।

‘आदिवासी सेंगेल अभियान संविधान के साथ खड़ा रहेगा’

आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि सेंगेल संविधान के साथ खड़ा रहेगा. संविधान की धारा 13,3 (क) के गलत और भ्रामक प्रचार का भी खंडन करता है। चूंकि ऐसे ही कारणों से झारखंड के अनेक जिलों में हुए पत्थलगड़ी आंदोलन जैसे देश विरोधी आंदोलन के लिए भी उपरोक्त कुछ लोग जिम्मेवार हैं। कहा कि अधिकांश अनपढ़ और संविधान कानून से अनभिज्ञ लोग आदिवासी स्वशासन के नाम से स्वशोषण चला रहे हैं। निर्दोष आदिवासियों को डंडोंम (जुर्माना), बारोन (सामाजिक बहिष्कार) और डान पनते (डायन का शिकार) जैसे अमानवीय और गैरकानूनी कार्यो में शामिल हैं। माझी परगना और मानकी मुंडा आदि अब तक अपने गांव- समाज में नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा,  महिला विरोधी मानसिकता, बहुमूल्य वोट को हंड़िया-दारू की खरीद-बिक्री जैसी बीमारियों को रोकने में बिल्कुल नाकामयाब है।

‘आदिवासी समाज के लिए सुधार की दिशा में अभी बहुत कुछ करना बाकी’

सालखन मुर्मू ने सवाल उठाया कि कोई भी प्रथा यदि संविधान, कानून, मानव अधिकार और जनतंत्र के खिलाफ होगा तो, वह मान्य कैसे होगा? जैसे कि तीन तलाक और सबरीमाला मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश में रोक आदि। अब यदि आदिवासी समाज में बहु विवाह, महिला को संपत्ति में अधिकार, महिला विरोधी मानसिकता पर रोक, शादी-श्राद्ध आदि में नशापान की अनिवार्यता को दूर कर महिलाओं के पक्ष को न्यायपूर्ण अधिकार देना कैसे गलत हो सकता है? यूसीसी विरोध में शामिल अधिकांश माझी परगना, मानकी मुंडा आदि के प्रतिनिधियों और उनको समर्थन देनेवाले कतिपय सफेदपोश आदिवासी समाज सुधार की दिशा में शायद अब तक कुछ भी नहीं किया है, इसलिए यूसीसी के लिए पूंजीपतियों को दोष देना बेतुका लगता है, बल्कि यह राजनीतिक और एक विदेशी धर्म से प्रेरित ज्यादा लगता है।

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