गुमला – हंसी ठिठोली और रंगों का त्योहार होली में हुल्लड़ और हुड़दंग बाजी का बहुत ही गहरा नाता है। हुल्लड़ और हुड़दंग बाजी का बिगड़ा स्वरूप आपके सामने है। वैसे तो हुल्लड़ और हुड़दंग बाजी का रिश्ता ऐसा है जैसे चोली और दमन का। होली का गीत – भर फागुन बुढ़वा देवरा लागेला – से अंदाजा लगाया जा सकता है कि होली के त्योहार में हंसी और ठिठोली करने की कितनी छूट दी गई है। इस होली के त्योहार में आप कुछ भी अपने शब्दों और अशब्दों का किसी भी आकार प्रकार और व्यवहार कर निकल जाते हैं। पुराने से पुराने गीले शिकवे भूल कर लोग एक दूसरे को गले से लगाते और बुरा ना मानो होली का दर्जा देते हुए नई शुरुआत करते हैं।पर धीरे-धीरे होली त्यौहार का स्वरूप भी बदला है, समय-समय पर अच्छे बुरे बदलाव भी आए हैं। दशकों पूर्व होली 15 दिन पूर्व से ही खेले जाते थे, परंतु अब ऐसा नहीं है। सनातनी हिन्दू धर्मलंम्बियों द्वारा डफ़ली बजाते हुए , होरी (होली) गीत , बिरज में होरी (होली) खेले नन्दलाला आदि फाग ( फगुआ – होली )गीतों और रंगों से सराबोर हो कर वृंदावन, गोकुल आदि स्थानों पर आज भी 15 दिन पूर्व से ही लठमार होली , बरसाने की होली , पुष्प होली,खेली जा रही है। आज पूरे विश्व में प्रसिद्ध है श्री राधा कृष्ण की होरी (होली) लठमार होली ( महिलाओं द्वारा पुरुषों पर लठ ( लाठी ) बरसाती है और पुरुष अपना बचाव करते हैं)। वृंदावन धाम , गोकुलधाम आदि क्षेत्रों में लठमार होली , बरसाने की होली , पुष्प की होली आज भी खेली जा रही है। वही कुछ प्रदेशों में इसका रंग रूप और स्वरूप बिगाड़ कर लोग आज होली त्योहार को मात्र और मात्र हुड़दंग की होली में परिवर्तीत कर दिए हैं। रंग की जगह मोबिल, गंदे नालों और गटर के नालों में दुर्गंध युक्त पानी में डाल डालकर लोगों को नहलाया जाता है। कुछ तथाकथित नशेड़ियों द्वारा नशे से धुत होकर , कपड़ा फाड़ होली में सनातनी हिन्दू धर्मलंम्बियों के पवित्र त्योहार को बदनाम कर होली जैसे पवन त्यौहार को एक षड्यंत्र के तहत होली के त्यौहार का अस्तित्व को मिटाने में तुले हुए हैं। अपने ही कुछ तथाकथित लोगों द्वारा होली के त्यौहार को दूसरा ही स्वरूप परिवर्तित कर दिया गया है। इससे पूर्व भी कुछ तथाकथित लोगों द्वारा रंगों का त्योहार होली को, दशकों पूर्व की स्थिति तो और भी बाद से बदतर कर दिया गया थी। उस समय भी कुछ लोगों द्वारा होली के पूर्व रात्रि में सभी लोगों को अपने अपने घरों के बाहर रात भर जाग जाग कर अपने घरों की पहरेदारी करनी पड़ती थी। नहीं तो मोहल्ले के दो चार छंंटे बदमाश मिट्टी के घड़े में गंदगी अंबर भरकर घर के वैसे घरों में फोड़ दिया जाता था जो अपने घरों की रखवाली नहीं कर रहे होते थे, उनके घर के दरवाजे में गंदा को फोड़ दिया करते थे। फिर दो – चार सौ: रुपए खर्च कर लोग अपने अपने घरों की सफाई करायें जातें थें। खैर उस जंजाल से लोगों को अब जाकर छुटकारा मिला है, पर गांव देहात में अब भी ऐसा होता है। त्योहार के दिन भी मारपीट तक की नौबत आ जाती है। कभी-कभी मामला थाने में भी पहुंच जाती है। फिर बड़े बुजुर्गों के बीच यह बोलकर मामला समाप्त कर लिया जाता था कि बुरा ना मानो होली है। फलस्वरूप अब स्थिति यह है कि अधिकांश लोग होली के पवन त्यौहार के दिन होने के बावजूद भी लोग अपने अपने घरों में दुबके रहते हैं और अपने अपने घरों से नहीं निकलते है। पहले संध्या के वक्त लोग अपने परिजनों के यहां जाकर अपने बड़े बूढ़े बुजुर्गों के पैर पर अबीर गुलाल डालकर बड़े बूढ़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया करते थे। पर अब ऐसा नहीं है। धीरे-धीरे परंपरागत सौहार्द और अपनापन सब कुछ अब लगभग समाप्त हो चुका है, क्योंकि आधुनिक युग के बच्चे बच्चियों को सनातन हिंदू धर्मावलम्बीयों द्वारा अपने-अपने बच्चे बच्चियों को संस्कार नहीं दे पा रहे हैं।
News – गनपत लाल चौरसिया