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Friday, September 20, 2024
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लगा दो आज जंगल में अपना क्या जाता है ,,,?? क्योंकि करवाई तो होगी नहीं , फिर डर किसका और भय किसका

गुमला – गुमला जिले में तथाकथित सामाजिक तत्वों द्वारा जंगलों में लगाई गई आग, फलस्वरूप जंगल के जीव जंतु , विभिन्न औषधीय के पौधे , नव निर्माण होने वाले जंगली पौधे 50% जलकर हुए रख और खाक, परंतु सोना , चांदी , कांसा अल्मुनियम , लोहा आदि धातुओं को गलाने के लिए लकड़ी के कोयलों की आवश्यकता पड़ती है , उक्त कोयलों को मनमानी दाम में बेचा जाता है और काफी मुनाफा भी कमाया जाता है , इसीलिए जंगल जलाने का एक मुख्य कारण लकड़ी को जलाकर कोयला बनाना है, और यह खुला खेल फर्रुखाबाद का खेल , खेला जाता हैं, कोई नहीं है देखन हारा ?? वन विभाग के सांठगांठ से ही हो रहा, खुला खेल फर्रुखाबादी , क्योंकि यह आज की बात नहीं हैं , बल्कि दशकों से प्रत्येक वर्ष होता रहता है , यह खेल , इस लिए बीना वन विभाग के सांठगांठ का मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है उक्त खेला , फिलहाल गुमला जिला के अंतर्गत स्थित गुमला सदर थाना के घटगांव जंगल, चैनपुर , डूमरी और परमवीर अल्बर्ट एक्का जारी प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों के जारी जंगल, भीखमपुर जंगल , आदि के 50% प्रतिशत जंगलों को नुकसान पहुंचा है, अधिकांश जंगली क्षेत्रों और बॉर्डर क्षेत्र के जंगल में बरसात के बाद जंगली वन क्षेत्रों में प्रवेश करने के लिए और सामाजिक तत्वों द्वारा अपने अवैध धंधों को अंजाम देने के लिए , लकड़ी काटने के लिए, जंगली जानवरों का शिकार करने के लिए, महुआ चुनने के लिए और दातुन, सखुआ का पत्ता तोड़कर , दोना – पत्तल ,आदि अन्य अनेक आकार प्रकार की जरूरतों को पूरा करने को लेकर , फागुन से पूर्व और बाद में आग लगाई जाती है, और उक्त आग में लकड़ियों के जलनें से बने, वाले लकड़ियों के – कोयलों – महुआ , पियार पिथौरा (महंगे पदार्थ , चिरौंजी पौष्टिक पदार्थ ) सहित अन्य अनेक आकार प्रकार के जंगली उत्पाद पदार्थो को बेचने वालों के अवैध धंधों के लिए और जंगल में प्रवेश करने के लिए ही , आग लगाई जाती है, इस में कोई किन्तु प्रन्तु नहीं हैं और ना – ही , इसे समझने के लिए कोई रॉकेट साइंस की जरूरत हैं , क्योंकि आम जनों से लेकर खास जनों तक और सरकार के मंत्री से लेकर संत्री तक और संबंधित वन विभाग के उच्च पदाधिकारियों से लेकर कर्मचारीयों तक , सभी को मालूम है यह दास्तान , उक्त जानकारी होते हुए भी , पूर्व में निर्भीक और निष्पक्ष रूप से कोई कार्रवाई नहीं की जाती है क्यों ,,, ?? और जब उक्त घटनाएं घट जाती है, तो मंत्री से लेकर संत्री तक और, पदाधिकारी से लेकर कर्मचारी तक अपनी राग अपनी डफली बजाने लगते हैं, सबको मालूम है की ऐसा होगा , जैसे प्रतिवर्ष फसल काटने से पहले सारंडा जंगल से हाथियों का झुंड विभिन्न जिलों के जंगली क्षेत्र और जंगली क्षेत्र के बॉर्डर क्षेत्रों में प्रवेश कर उत्पाद बचते रहते हैं , हांथियों की मेमोरी पावर काफी स्ट्रॉन्ग होती है, और वह अपने आने जाने वाले मार्गों ( रास्तों )को वह कभी नहीं भूलते हैं और प्रत्येक वर्ष उक्त रास्तों से ही , आते जाते हैं फिर भी वन विभाग के द्वारा दशकों से कोई ठोस कदम और कार्रवाई नहीं की जाती है,?? इसमें कोई किंतु परंतु नहीं , फिर भी संबंधित विभाग के लोग मूकदर्शक बनकर तमाशा देखते रहते हैं, ऐसा क्यों ,,,?? और जब घटनाएं घट जाती है तो संबंधित विभाग द्वारा जान माल की क्षतिपूर्ति का मुआवजा देने के नाम पर संबंधित कुछ तथा कथित लोगों को ही दी जाती है ऐसा क्यों ?? अपनी व्यक्तिगत स्वार्थ और फायदा के लिए ही मुआवजा की राशि बंटते फिरते हैं और फोटो खिंचवा कर वह वही लूटते हैं ,और तथाकथित नेताजी के साथ फोटो खिंचवाने में व्यस्त रहते हैं, यही है कटु शब्द,,,,,,।

News – Ganpat Lal Chaurasiya

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