अब भारत में अलग राज्यों की नहीं बल्कि सुशासन की है जरूरत: प्रोफेसर प्रवीण कुमार
अलग राज्य निर्माण से बेहतर है सुशासन स्थापित करना। अलग राज्य की मांग सांस्कृतिक, भाषाइ तथा राजनीतिक उपेक्षा से जन्म लेती है। यदि सुशासन से यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी की ऊपेक्षा नहीं होगी तो अलग राज्य निर्माण करने से बचा जा सकता है। इससे बहुत खर्च और ऊर्जा की बचत होगी जिसको रचनात्मक उपयोग में लाया जा सकता है। उक्त बातें सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ बिहार, गया के राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक, प्रोफेसर प्रवीण कुमार ने कही। वह 27 जून को विनोबा भावे विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में व्याख्यान दे रहे थे।
उन्होंने आगे कहा कि यद्यपि अलग राज्य का निर्माण सांस्कृतिक और भाषाई आधार पर किए जाते हैं। इसका लाभ मुख्य रूप से राजनेताओं और नौकरशाहों को ही मिलता है। आम जनता तक इसके लाभ नहीं पहुंच पाते हैं।
प्रोफेसर प्रवीण कुमार ने कहा कि कभी-कभी प्रशासनिक दृष्टिकोण से बड़े राज्यों का पुनर्गठन किया जाता है। वहां तक तो ठीक है। लेकिन कहीं ना कहीं इस पर विराम लगनी चाहिए। अन्यथा यह बहुत ही महंगा सौदा बनता चला जाएगा और हमारे ढेर सारे संसाधन नौकरशाहों और राजनेताओं के पीछे खर्च होते रहेंगे।
भावनाओं और शुद्ध राजनीति के आधार पर अलग राज्यों के निर्माण को प्रोफेसर कुमार ने गैर जरूरी बताया। उन्होंने कहां की इसके पीछे व्यवहारिकता होनी चाहिए।
अलग राज्य के निर्माण को लोग किसी खास उपेक्षित वर्ग के सशक्तिकरण एवं पहचान के संदर्भ में देखते हैं। परंतु सुशासन से भी हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं। सुशासन से ही हम सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व भी उपलब्ध करवा सकते हैं। इसको समझाने के लिए उन्होंने संयुक्त परिवार और एकल परिवार के विषय का भी विश्लेषण किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष डॉ सुकल्याण मोइत्रा ने किया। इस अवसर पर विभागीय प्राध्यापक डॉ बीपी सिंह, डॉ प्रमोद कुमार, डॉ, अजय बहादुर सिंह, संत कोलंबा महाविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष, डॉ अशोक राम के अलावे विभाग के शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
न्यूज़ – विजय चौधरी