कमलनयन
गिरिडीह । झारखंड में सियासी टाईगरों में शुमार पूर्व मुख्यमंत्री कोल्हान के टाइगर कहे जानेवाले चंपाई सोरेन के जेएमएम छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के पश्चात भाजपा के आम कैडर काफी उत्साहित हैं। आनेवाले विधानसभा चुनावों में भाजपा को इसका कितना फायदा होगा यह तो चुनाव नतीजो से स्पष्ट होगा। लेकिन 2019 के मुकाबले इस बार कोल्हान क्षेत्र में भाजपा का खाता खुलने की प्रबल संभावना है। इस बीच भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के गृह जिले की सभी छह विस सीटों पर टिकट के दावेदारों की लॉबिंग चरम पर है। सभी छह सीटों के लिए पार्टी के लगभग दो दर्जन दावेदार बताए जा रहे हैं। इनमें पार्टी के निष्ठावान और समर्पित कैडरों के अलावा बरसाती मेढक टाइप समाजसेवी नेता, आपदा में अवसर का लाभ उठानेवाले मौकापरस्त दावेदार भी शामिल हैं।
2019 में जमुआ में सिर्फ भाजपा जीत दर्ज कर पायी थी
2019 में जिले की छह सीटों में से महज एक जमुआ (सु.) सीट पर ही कमल खिला था। एक अन्य धनवार सीट पर जेवीएम के प्रमुख रहे बाबूलाल मरांडी (अब भाजपा) की जीत हुई थी। बाद में श्री मरांडी ने अपनी पार्टी जेवीएम का विलय भाजपा में कर दिया था। इस प्रकार दो सीटें भाजपा के खाते में मानी जाएगी। धनवार सीट की बात करें तो इस बार स्थितियां बदली हुई हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व सामान्य सीटों पर सुरक्षित कोटे से आनेवाले पार्टी के नेताओ को चुनाव लड़ाने के पक्ष में नहीं है। उन्हें सुरक्षित सीटों पर ही चुनाव लड़ने का निर्देश मिल सकता है। लेकिन श्री मरांडी स्वयं पार्टी के प्रदेश प्रमुख हैं, वे कहीं से भी लड़ सकते है। पार्टी सूत्रों की मानें तो श्री मरांडी के धनवार से नहीं लड़ने की स्थिति में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. रवीन्द्र राय (पार्टी में लंबे समय से वनवास झेल रहे) प्रबल दावेदार हो सकते हैं। इससे पहले वे कई बार भाजपा के टिकट पर प्रतिकूल स्थिति में भी विधायक बने हैं। जातीय समीकरण में भी डा. राय धनवार सीट के लिए उपयुक्त माने जाते हैं। हालांकि अन्य भी कई दावेदार हैं और हर किसी के अपने-अपने दावे हैं।
उपचुनाव के नतीजे के बाद भाजपा के लिए गांडेय चुनौती
गिरिडीह जिले की अन्य पांच सीटों में गाण्डेय विस सीट पर कई दावेदार हैं। दरअसल, जेएमएम विधायक सरफराज अहमद के इस्तीफे के बाद रिक्त हुई इस सीट पर इसी साल हुए उप चुनाव में जेएमएम की शीर्ष नेत्री कल्पना सोरेन और भाजपा के दिलीप वर्मा के बीच हुए मुकाबले में भाजपा के खाते में लगभग 80 हजार वोट गए थे। तकरीबन 27 हजार मतों के अंतर से कल्पना सोरेन से दिलीप वर्मा की हार हुई लेकिन 1977 के बाद से हुए अबतक तमाम विस चुनाव में श्री वर्मा सर्वाधिक वोट हासिल करनेवाले भाजपा प्रत्याशी जरूर बने। इससे पहले 80 हजार का आंकड़ा भाजपा के किसी भी प्रत्याशी ने पार नहीं किया था। इंडिया ब्लॉक के तमाम झरखण्ड-बिहार के नेताओं के तूफानी प्रचार और भितरघात के बावजूद श्री वर्मा को 80 हजार वोट हासिल हुए. पार्टी के प्रदेश सूत्रों के मुताबिक गाण्डेय में किसी अन्य दावेदार पर प्रदेश आलाकमान विचार करेगा, इसके आसार कम है.
जमुआ को छोड़कर बगोदर-डुमरी में भाजपा कमजोर
जमुआ (सु) सीट की बात करें तो जमुआ भाजपा का गढ़ माना जाता है. गिरिडीह जिले में जनसंघ काल का पहला खाता स्व. रीतलाल वर्मा ने जमुआ में दीपक जलाकर खोला था। 2019 में केदार हाजरा तीसरी बार जीते जरूर, लेकिन वोट का प्रतिशत कम रहा. जमुआ में इस बार कई दावेदार हैं लेकिन प्रदेश आलाकमान केदार हाजरा जैसे कद्दावर नेता की तलाश में है जो, क्षेत्र में और संगठन में साफ-सुथरी छवि वाला हो और चुनाव में कमल खिला सके। जहां तक बगोदर विस सीट का सवाल है तो यहां पर गाण्डेय जैसी स्थिति है। 1977 से 2009 तक कभी भी भाजपा का यहां कमल नहीं खिला। 2014 में नगेन्द्र महतो ने भाकपा माले में सेंधमारी कर भाजपा की झोली में यह सीट डालने का काम किया था। 2019 में फिर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पार्टी का एक वर्ग इस बार फिर नगेन्द्र महतो को टिकट देने के पक्ष में है। लेकिन निर्णय प्रदेश आलाकमान को करना है। वहीं गिरिडीह जिले की डुमरी विस एक मात्र ऐसी सीट है जिसपर अबतक कभी कमल खिला हीं नहीं। हालांकि 2019 तक पार्टी अपना उम्मीदवार देती रही है। किन्तु इस बार स्थिति बदली हुई है। जेएमएम टाईगर जगरनाथ महतो के असामयिक निधन के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा-आजसू गठबंधन प्रत्याशी यशोदा देवी और स्व. महतो की पत्नी बेबी देवी के बीच हुए चुनावी मुकाबले में बेबी देवी विजयी हुई. वे अभी मौजूदा हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री हैं। माना जा रहा है कि इस बार फिर डुमरी सीट आजसू के खाते में जा सकती है। इसकी पूरी संभावना है।
गिरिडीह सदर में भाजपा के कई दावेदार
जिले की गिरिडीह सदर विस सीट को भाजपा अपनी परम्परागत सीट मानती है. यही कारण है कि टिकट के सबसे अधिक दावेदार इस सीट के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। दो बार चन्द्रमोहन प्रसाद, दो बार निर्भय शाहावादी विधायक बने। 2019 के चुनाव में जेएमएम के सुदिव्य कुमार सोनू से भाजपा के श्री शाहाबादी को पराजित कर वे पहली बार विधायक बन पाए. हालांकि 2014 के मुकाबले 2019 में भाजपा के वोटों का ग्राफ काफी बढ़ा, लेकिन समीक्षा के दौरान हार के कारण जो सामने आए उनमें एंटीइंकबेंसी, विधायक और उनके कई समर्थकों से लोगों की नाराजगी एवं भाजपा के कोर वोटरों का मतदान के प्रति उदासीन रवैया प्रमुख कारण माने गये। इस बार पुनः टिकट की दौड में ऐसे तो कई हैं लेकिन सूत्रों के मुताबिक निर्भय शाहाबादी, पार्टी के कद्दावर नेता दिनेश यादव और सुरेश साव के नाम की चर्चा है। पार्टी सूत्रों की मानें तो सक्रिय तीन दावेदारों पर पार्टी की निगाहें हैं। इस बीच पार्टी के प्रदेश स्तर के एक नेता ने बताया कि इस बार प्रदेश की सभी 81 सीटों पर पार्टी के अनुभवी नेता विधानसभा क्षेत्रों के जानकार सभी पहलुओं पर गहन चिंतन-मनन करने में जुटे हैं। भाजपा के तीनों चुनाव प्रभारियों को हर सीट के फीडबैक दिए जा रहे हैं.
गिरिडीह में जेबीकेएसएस भाजपा के लिए चुनौती बना
दरअसल, गिरिडीह की छह विधानसभा सीटों पर भाजपा के मुकाबले जेएमएम-कांग्रेस के प्रत्याशियों के चयन के बाद भाजपा सीटों पर समीकरण के हिसाब उम्मीदवारों के नाम में कुछ फेरबदल कर सकती है, लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में गिरिडीह लोकसभा में जयराम महतो के जेबीकेएसएस ने जिस तरह से कई सीटों पर अपनी दमदार और चौंकानेवाली उपस्थिति दर्ज करायी है उससे सभी स्थापित राजनीतिक पार्टियों के होश फाख्ता हैं. सभी पार्टियों के लिए जेबीकेएसएस चुनौती बना हुआ है. कहा जा रहा है कि जयराम महतो को भाजपा के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर है. यह भी चर्चा है कि जेएलकेएम भाजपा की बी टीम है. जयराम महतो से भाजपा की नजदीकियों को लेकर राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि गिरिडीह की कई विधानसभा सीटों पर समीकरण के हिसाब से भाजपा के साथ हिडेन एजेंडा तय हो रहा है. हालांकि टाइगर जयराम महतो की पार्टी ने इसका खंडन किया हैै. जेबीकेएसएस ने कहा है कि भाजपा से नजदीकियों की बात महज अफवाह सिवा और कुछ नहीं है। गिरिडीह की कई सीटों पर जेबीकेएसएस भाजपा के उम्मीदवारों को परेशानी में डाल सकता है. क्योंकि जेबीकेएसएस ने जिस तरह से गिरिडीह लोकसभा चुनाव बढ़त बनायी है उसके कारण विधानसभा की भी कई सीटों पर उसके जीतने की संभावना को नजरअंदाज करना मुश्किल है.