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Tuesday, September 17, 2024
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कोल्हान का कोलाहल…किसके लिए ‘हलाहल?’ झामुमो-भाजपा के टेंशन पर है सबका अटेंशन    

सितंबर के आखिरी हफ्ते में भाजपा-झामुमो में पाला बदल का खेल शुरू होने की पूरी गुंजाइश

सरायकेला में भाजपा नेता रमेश हांसदा की घर वापसी की सुगबुगाहट

सीता-गीता फिल्म फ्लॉप होने के बाद भी भाजपा की पिक्चर अभी बाकी है…!

चंपई-लोबिन प्रकरण से बाबूलाल मरांडी के चेहरे की लालिमा जरूर मद्धिम हुई

नारायण विश्वकर्मा

रांची : झारखंड मुक्ति मोर्चा के दो धुरंधर राजनेताओं ने खुद को भगवामय कर लिया है. चंपई सोरेन के बाद संथालपरगना के कथित बड़े आदिवासी नेता लोबिन हेंब्रम ने भी केसरिया पट्टा ओढ़ लिया है. हरे रंग से अब इन दोनों को परहेज होगा. वैसे हरे रंग के कारण सभी विधायकों में उनकी एक अलग पहचान थी। दरअसल, झारखंड में ऑपरेशन लोटस पिछले साढ़े चार साल में पांच बार नाकाम रहा. आधे-अधूरे ऑपरेशन से भाजपा को मन मुताबिक सफलता नहीं मिल पायी है. सीता-गीता फिल्म फ्लॉप हो गई. लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पांचों आदिवासी सीट गंवा दी. अलबत्ता ‘चंपई’ रंग भाजपा में जरूर खिल गया, पर हरे रंग पर चंपई रंग ठीक से चढ़ नहीं पाया. इसलिए कोल्हान का कोलाहल झामुमो के लिए हलाहल साबित नहीं हो पाया, इसलिए अब भाजपा को फलाफल का टेंशन का बढ़ गया है. निश्चित रूप से झामुमो के लिए दोनों दिग्गज नेताओं का भाजपा में जाना दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन इन दोनों के भाजपा में आने से भाजपा के अंदरखाने में सबकुछ ठीकठाक है या आगे भी रहेगा, इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती. चंपई-लोबिन प्रकरण से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के चेहरे की लालिमा जरूर मद्धिम पड़ गई है. ये उनके हावभाव और बॉडीलैंग्वेज से पता चलता है. हालांकि सितंबर के आखिरी हफ्ते में भाजपा और झामुमो में पाला बदल का खेल शुरू होने की पूरी गुंजाइश है. सरायकेला विधानसभा क्षेत्र के भाजपा नेता रमेश हांसदा की घर वापसी की सुगबुगाहट से पाला बदल की शुरुआत हो गई है.

1932 के खतियान की माला जपनेवाले लोबिन हेम्ब्रम 1985 के फार्मूले को मानेंगे?

झारखंड विधानसभा चुनाव में बहुमत लायक सीटें जीतने की जद्दोजहद अब दोनों ओर है. क्योंकि किसी भी राजनीतिक दल को अबतक अपने दम पर पूर्ण बहुमत (41 सीट) नहीं आ पाया है. अलग राज्य बनने के बाद से ही झारखंड का ये दुर्भाग्य भी साथ-साथ चल रहा है. झारखंड में सत्ता संग्राम की सियासत की चालें भी अब शुरू हो गई हैं. सब अपनी गोटी सेट करने में मशगूल हो गए हैं. विधानसभा क्षेत्रों के कई प्रत्याशियों को अपनी पुरानी सीट से बेदखल होना पड़ सकता है, इधर टिकट नहीं मिला तो, उधर का खेल देखने को मिलेगा. इससे तेजी से समीकरण बदलेंगे. मतदाताओं का मूड बदलेगा, क्योंकि लोबिन-चंपई की विचारधारा भी अब भाजपा में तेजी से बदलेगी. 1932 के खतियान की माला जपनेवाले लोबिन क्या 1985 के फार्मूले को मानेंगे? जबकि अमित शाह ने चाईबासा में ही कहा था कि 1932 के खतियान ने झारखंड को तबाह कर दिया. बंगलादेशी घूसपैठिये, डेमोग्राफी, सरना धर्म बिल कोड जैसे मुद्दे पर नए-नए भाजपाई बने लोबिन-चंपई अब क्या रुख अपनाएंगे? क्योंकि आदिवासी समाज की अगुवाई करनेवाले इन दोनों नेताओं से सवाल पूछा जाएगा. विधानसभा चुनाव में इनके एजेंडे में अगर ये मुद्दे शामिल नहीं होंगे तो, चुनाव प्रचार में सिर्फ भाजपा की डफली बजाने से आदिवासी समाज खुश नहीं होगा. भाजपा हेमंत सोरेन के 2019  के चुनावी घोषणा पत्र का हवाला देकर उनकी वादाखिलाफी और भ्रष्टाचार के मुद्दे को उछालेगी, इससे उन्हें आदिवासी समुदाय का कितना समर्थन मिलेगा ये तो चुनाव परिणाम बताएगा.

चंपई-रामदास कोल्हान की राजनीति की धुरी बन सकते हैं…?

झारखंड की 81 में से 28 आदिवासी विधानसभा सीटों में कोल्हान की 14 सीटों भाजपा की पकड़ शुरू से ही ढीली है. कोल्हान में 14 सीटों में से भाजपा को सत्ता सुख पाने के लिए कम से कम अनिवार्य रूप से 7-8 सीट सीट हासिल करनी होगी. कोल्हान क्षेत्र में खासकर चाईबासा (प.सिंहभूम) की सभी 6 सीटों पर भाजपा को सेंधमारी करनी होगी. ये तब संभव था, जब चंपई सोरेन के अलावा झामुमो के अन्य 5 विधायक भाजपा में शामिल हो जाते. हालांकि चर्चा है कि 12 सितंबर तक झामुमो के कुछ अन्य विधायक भाजपा का दामन थाम सकते हैं. लोबिन हेम्ब्रम ने झारखंड के एक न्यूज चैनल को काफी दबाव देने पर अपने इंटरव्यू में बताया था कि 12 झामुमो विधायक भाजपा के पाले में आनेवाले हैं. चंपई सोरेन और रामदास सोरेन दोनों कोल्हान की राजनीति की धुरी बन सकते हैं। बेशक रामदास सोरेन भी पार्टी के पुराने नेता हैं, पर चंपई सोरेन के सामने उनका कद छोटा है। वह चुनाव हारते व जीतते रहे हैं। चंपई सोरेन को यदि कोल्हान टाइगर कहा जाता है तो इसके पीछे उनके संघर्ष की लंबी दास्तान है। इसलिए चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने के बाद कोल्हान की राजनीति में बदलाव के आसार से इंकार नहीं किया जा सकता. चंपई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन पर भी सभी की निगाहें टिकी हैं. कहा जा रहा है कि अगर वे भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ते हैं तो जिस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे, उसमें बड़ा पेंच है. अभी सभी सीटों पर झामुमो के विधायक विराजमान हैं. सूत्र बताते हैं कि घाटशिला या पोटका विधानसभा सीट से बाबूलाल सोरेन चुनाव लड़ना चाहते हैं. घाटशिला से रामदास सोरेन और पोटका विधानसभा सीट से संजीव सरदार से उन्हें टकराना होगा. बाबूलाल सोरेन को जमीनी नेता नहीं माना जाता. उन्हें अपने पिता और भाजपा के प्रभाव के सहारे चुनावी वैतरणी पार करनी होगी. यह भी चर्चा है कि हेमंत सोरेन कोल्हान की किसी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. झामुमो की यह रणनीति है कि कोल्हान से सभी विधायकों को इंटैक्ट रखा जाए. झामुमो के रणनीतिकारों का संतालपरगना से अधिक कोल्हान पर फोकस रहेगा.

भाजपा की चंपई क्या हुई डील…? अडाणी को चाहिए सारंडा जंगल का लौह-अयस्क…!

आदिवासी समाज से जुड़े एक पुराने सामाजिक कार्यकर्ता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कुछ चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं. उन्होंने बताया कि दरअसल, चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही कुर्सी का मोह हो चुका था और बेटा को खनन माफिया के साथ खजाने में हिस्सेदारी चाहिए थी। चंपाई सोरेन को पता था कि झामुमो में रहते हुए उन्हें फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी नसीब नहीं होगी। यदि हेमंत सोरेन विधानसभा चुनाव से पहले जेल से बाहर आते हैं तब अगले मुख्यमंत्री वहीं होंगे और यदि वे जेल ही रहते हैं तब विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा कल्पना सोरेन होगी। इसलिए उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता को लेकर उड़ने की योजना बनायी। यदि वे मुख्यमंत्री रहते भाजपा में जाते तब यह आरोप लगाते कि असल में हेमंत सोरेन जेल से सब निर्णय ले रहे थे. असम के सीएम ने खुद खुलासा किया कि वे चंपई सोरेन से पांच-छह महीने से संपर्क में थे. इसी आधार पर उधर भाजपा की पटकथा लिखी जा रही थी। उन्होंने इस बात का भी खुलासा किया कि दरअसल, अडाणी ग्रुप को हर हाल में झारखंड चाहिए और चाईबासा का सारंडा वन पर अडाणी की बहुत पहले से नजर है. सारंडा जंगल का लौह-अयस्क पाने के लिए झारखंड में भाजपा का सरकार होना जरूरी है। चंपई सोरेन पर आरोप है कि सारंडा को लुटाने के लिए ही उन्होंने भाजपा का दामन थामा है। इससे उनके बेटे को भी फायदा होगा. उनका निजी स्वार्थ और पुत्र मोह जल, जंगल और जमीन पर भारी पड़ा है. उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनी और अडाणी को हंसदेव का कोयला खदान और बैलाडिला का लौह-अयस्क मिला। इस बार ओड़िशा में भाजपा की सरकार बनी है और अडाणी ब़ॉक्साइट में पूंजी निवेश शुरू कर दिया है। मुककिन है चंद महीनों बाद भाजपा सरकार आदिवासियों से नियमगिरि पहाड़ छीनकर अडाणी को दे दे। 2014 में झारखंड में भाजपा की सरकार बनी थी तब, गोड्डा में आदिवासियों के धान की लहलहाती फसल पर बुलडोजर चलाकर अडाणी के लिए कब्जा किया गया. रघुवर सरकार में गोड्डा में अडाणी को पावर प्लांट लगाने मौका मिला. करार के मुताबिक बंगलादेश को आज 75 प्रतिशत बिजली सप्लाई की जा रही है.

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