गुमला जिले में खड़िया समाज ने 3 नवंबर 2024 को अपने सबसे बड़े पारंपरिक त्योहार, बंदोई पर्व की पूर्व संध्या का आयोजन किया। खड़िया समाज के इस पर्व का महत्व उनकी सांस्कृतिक जड़ों से गहरे जुड़ा हुआ है। कृषि आधारित इस पर्व में प्रकृति और पशुओं के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त किया जाता है। यह पर्व खड़िया समाज की एकता और पारंपरिक धरोहर को समर्पित है, जिसमें स्थानीय एवं आसपास के गांवों से लोग शामिल हुए और पारंपरिक पूजा-पाठ और सामूहिक नृत्य का आयोजन किया गया।
बंदोई पर्व का महत्व और परंपरा
खड़िया समाज का बंदोई पर्व उनके कृषि कार्य और जीवन शैली से जुड़ा है। यह पर्व हर साल एक विशेष अनुष्ठान के रूप में मनाया जाता है, जिसमें समाज के लोग पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। इस पर्व में खड़िया समाज अपने पशुधन को विशेष मान-सम्मान देते हैं क्योंकि कृषि कार्य में ये पशु मुख्य साधन होते हैं।
डॉ. चंद्र किशोर केरकेट्टा ने इस अवसर पर कहा, “खड़िया भाषा, संस्कृति और परंपरा समाज की पहचान है। इसे बचाकर रखना हमारा कर्तव्य है।” उनका यह विचार समाज को अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने की ओर प्रेरित करता है।
पारंपरिक पूजा-पाठ और समाज का संगठन
पर्व का शुभारंभ खड़िया समाज के महान पुजार द्वारा पारंपरिक पूजा-पाठ से किया गया। अतिथियों का स्वागत छात्रों और समाज के अन्य सदस्य द्वारा पारंपरिक रीति से किया गया। उर्मिला कुमारी ने स्वागत भाषण के माध्यम से पर्व की विशेषताओं और खड़िया संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डाला।
प्रोफेसर बंधु भगत ने समाज को शिक्षित और संगठित बनने का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि “शिक्षा ही समाज को विकसित कर सकती है।” उनकी यह बात समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता लाने का संदेश देती है और समाज को मजबूती प्रदान करने के लिए संगठन और शिक्षा का महत्व रेखांकित करती है।
खड़िया जनजाति का सांस्कृतिक आयोजन
बंदोई पर्व के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। छत्तीसगढ़, उड़ीसा, रांची, और गुमला के विभिन्न गाँवों से कुल 196 नृत्य मंडलियों ने इस आयोजन में भाग लिया। इन मंडलियों ने पारंपरिक नृत्य और गीतों के माध्यम से खड़िया समाज की सांस्कृतिक विविधता और पारंपरिक धरोहर का अद्भुत प्रदर्शन किया। इस दौरान करम गीत, लोक नृत्य और अन्य सांस्कृतिक प्रदर्शनों ने माहौल को जीवंत बना दिया।
नागपुरी गीतों और पारंपरिक नृत्य ने समां बांधा, जिसमें समाज के सभी उम्र के लोग शामिल हुए। इस सांस्कृतिक आयोजन ने नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने का कार्य किया और पारंपरिक संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
खड़िया समाज की वर्तमान स्थिति पर विचार
कुलभूषण डुंगडुंग ने इस अवसर पर समाज की वर्तमान स्थिति और सामाजिक कार्यों में खड़िया समाज की भूमिका पर बात की। उन्होंने समाज के लोगों को राजनीतिक क्षेत्र में भी सक्रिय होने की सलाह दी, ताकि वे समाज के हक और अधिकारों की सुरक्षा कर सकें।
समाज की एकता को मजबूत करने के लिए इस प्रकार के आयोजन न केवल समाज में जागरूकता लाते हैं, बल्कि युवाओं को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत भी बनाते हैं।
संगठन और एकता का संदेश
बंदोई पर्व के आयोजन का सबसे महत्वपूर्ण संदेश समाज में एकता और संगठन का है। डॉ. चंद्र किशोर केरकेट्टा और अन्य वक्ताओं ने समाज को एकजुट रहने और अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने का संदेश दिया। उनका मानना है कि संगठित समाज ही मजबूती से आगे बढ़ सकता है और अपने अधिकारों के लिए लड़ सकता है।
यह आयोजन खड़िया समाज के लोगों को एकजुटता का महत्व सिखाने का एक बड़ा अवसर था। साथ ही, इस पर्व ने युवाओं को उनके सांस्कृतिक और सामाजिक जिम्मेदारियों का एहसास दिलाया।
खड़िया समाज की सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
बंदोई पर्व खड़िया समाज की एक अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है, जो उन्हें अपनी परंपराओं और जड़ों से जोड़ती है। यह पर्व न केवल उनके लिए धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि समाज को एकजुट करने और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने का भी माध्यम है।
ऐसे आयोजनों से समाज को अपनी सांस्कृतिक पहचान को संजोने और नई पीढ़ी में संस्कृति के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव विकसित करने का अवसर मिलता है। सभी समाज के सदस्यों से अपील है कि वे इस प्रकार के आयोजनों में बढ़-चढ़कर भाग लें और अपने समाज की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का संकल्प लें।