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Thursday, November 21, 2024
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झारखंड चुनाव में बरस रही भाजपा के “वाराह अवतार” की कृपा…डिजिटल मीडिया पर हो रही धनवर्षा, चल रहा हराने-जिताने का खेल

‘वाराहे’ नाम की एक राजनीतिक सलाहकार फर्म के हाथ में है. सूचना है कि इस फर्म ने सोशल मीडिया पर माहौल बनाने के लिए यूट्यूब चैनलों, ब्लॉगरों और सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स को मोटे पैकेज में हायर कर रखा है.

आनंद कुमार
झारखंड विधानसभा चुनावों में इस बार खुलेआम पैसा बह रहा है. सोशल मीडिया इंफ़्लूएंसर नये चुनाव प्रचारक हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों पार्टियां डिजिटल और ऑल्टरनेटिव मीडिया पर जमकर निवेश कर रही हैं. खास बात यह है कि भाजपा के प्रचार की जिम्मेदारी ‘वाराहे’ नाम की एक राजनीतिक सलाहकार फर्म के हाथ में है. सूचना है कि इस फर्म ने सोशल मीडिया पर माहौल बनाने के लिए यूट्यूब चैनलों, ब्लॉगरों और सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स को मोटे पैकेज में हायर कर रखा है.
झारखंड विधानसभा के इस चुनाव में आप दर्जनों ऐसे चेहरों को चुनाव में देख रहे होंगे जो, पहली बार दिख रहे हैं. ये वाराहे की कृपा पाकर आये हैं. मोटे पैकेज पर आये हैं. इनका काम ऐसे वीडियो बनाना है जिससे लगे कि फलां जगह पर इंडिया अलायंस के उम्मीदवार बेकार हैं या भाजपा के उम्मीदवार देवता के अवतार हैं.
ये लोग मैनेज किये हुए लोगों से ही बात करते हैं और माहौल बनाने का काम कर रहे हैं. और ऐसा नहीं है कि सिर्फ बाहर के यूट्यूब चैनलों को ही मैनेज किया गय़ा है. झारखंड के भी कई यूट्यूब चैनल, ब्लॉगर और सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स का वाराहे के साथ कांट्रैक्ट है.
चुनाव के दो-तीन महीने पहले से ही वाराहे ने ऐसे चैनलों और इन्फ्लूएसर्स से डील करना शुरू किया और बाकायदा कांट्रैक्ट बनवाया गया कि कितने वीडियो के लिए कितनी रकम मिलेगी.

वाराहे की कृपा से कई नए चेहरों को मिला है मौका

हालांकि सभी चैनल इसमें शामिल नहीं हैं, लेकिन काफी सारे हैं. और सबको उनकी पहुंच के हिसाब से पैकेज दिये गये हैं. चार-पांच लाख से लेकर 25 लाख महीने तक के ये पैकेज हैं, जो आपलोग अपने यूट्यूब पर डेटा खर्च करके जो देख रहे हैं, उनमें ज्यादातर प्रायोजित हैं. मैंने कुछ दिन पहले एक वीडियो में बताया था कि कैसे जेएमएम और हेमंत सोरेन आत्ममुग्धता के शिकार हैं.
कल्पना सोरेन दिल्ली, नोएडा और लखनऊ के पत्रकारों को इंटरव्यू दे रही हैं तो, एक तरफ जेएमएम है, जो लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम के पत्रकारों को इस्तेमाल कर रहा है, जिसका कोई खास फायदा नहीं मिल रहा है, लेकिन भाजपा ने झारखंड में वाराहे को इस काम में लगाया है औऱ यह फायदेमंद साबित हो रहा है. गढ़वा जैसी सीटों पर आप देखते हैं कि वहां खासतौर पर शोर मचाया जा रहा है कि जेएमएम के उम्मीदवार मिथिलेश ठाकुर की हालत वहां खराब है.
भाजपा जीत रही है. लेकिन असल में जमीन पर ऐसा नहीं है. ये सब वाराहे से मिले धन का प्रताप है. जहां भी भाजपा नजदीकी मुकाबले में है, कमजोर है,  वहां ये ट्यूबर और इंफ्लूएसर्स ऐसा माहौल बनाते हैं कि फ्लोटिंग वोटर कन्फ्यूज हो जाते हैं और उसे लगता है कि जब फलां उम्मीदवार जीत रहा है तो उसे ही वोट दे दिया जाये.
दरअसल, वोटरों का एक बड़ा तबका ऐसा होता है जो आखिरी वक्त में तय करता है कि किसे वोट करना है. इस वर्ग की कोई खास राजनीतिक पसंद या नापसंद नहीं होती. यह तबका प्रत्याशी की छवि और उसका काम देखकर वोट करता है. ऐसे में जब प्रत्याशी को काम पर नहीं घेरा जा सकता, तो उसकी छवि पर दाग लगाने की कोशिश होती है और फिर पब्लिक ओपिनियन के सहारे जीत-हार का माहौल बनाया जाता है. गढ़वा सीट इसका परफेक्ट उदाहरण है.
मिथिलेश ठाकुर ने इतना विकास गढ़वा में किया है कि उन्हें काम के आधार पर घेरा नहीं जा सकता तो, उनकी छवि खराब करने की कोशिश हो रही है. चुनाव के समय उन्हें भ्रष्ट बताया जा रहा है. हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की कोशिश हो रही है. इस काम में भाजपा और आरएसएस का पूरा तंत्र लगा हुआ है.
ऐसा माहौल बना दिया गया है जैसे मिथिलेश ठाकुर वहां से चुनाव हार रहे हैं, लेकिन ऐसा है नहीं. मैं गढ़वा घूम कर आया हूं. वहां ज्यादातर लोग मिथिलेश ठाकुर के काम से खुश दिखे. जो भाजपा के समर्थक थे, वे स्वाभाविक रूप से पार्टी लाइन के साथ थे लेकिन उनका भी कहना था कि सत्येंद्र तिवारी दस साल विधायक रहे, लेकिन कोई काम नहीं किया. बड़बोले हैं, भाजपा के नेता भी उन्हें पसंद नहीं करते. उनके नाम की घोषणा के बाद भाजपा में विरोध के स्वर उठे,
लेकिन अब माहौल ऐसा है जैसे तिवारी जी एकतरफा जीत रहे हैं. जबकि वहां मुकाबला कड़ा है. जीत-हार का अंतर ज्यादा नहीं रहनेवाला है. और जब सवा चार लाख वोटरों वाली सीट पर जीत हार का अंतर पांच हजार के आसपास हो तो भविष्यवाणी कैसे की जा सकती है, लेकिन वाराहे की कृपा ने माहौल को बदल दिया है.

वाराहे भाजपा के एक बड़े राष्ट्रीय नेता से जुड़ी कंपनी

खैर, गढ़वा एक उदाहरण है. लेकिन जहां-जहां भाजपा मुकाबले में है, वहां वहां वाराहे की सेना लगी है. वाराहे भाजपा के एक बड़े राष्ट्रीय नेता से जुड़ी कंपनी है. झारखंड में घूम रहे कई यूट्यूब पत्रकारों ने मुझे बताया कि वाराहे ने उन्हें मोटा पैकेज दिया है. अच्छा ही है चुनाव वैसे भी पांच साल बाद आते हैं, तो एक तरह से यह मेला है. जहां सब अपना-अपना माल बेचने आते हैं. ऐसे में वाराहे और बीजेपी की तरह का अच्छा खरीदार मिल जाये, तो कौन मना करेगा. आखिर रेवेन्यू तो सबको चाहिए.

चुनाव में पेड पत्रकारिता को मिला नया आयाम 

प्रिंट मीडिया में नैरेटिव नहीं गढ़ा जा सकता. अखबारों में एक तो विज्ञापन से हिसाब से महंगे होते हैं. बड़े अखबारों में एक दिन का जैकेट एड ही 15 से 20 लाख का पड़ता है और अखबार बैंलेंस खबर देते हैं. उनपर कई बंदिशें भी हैं. वे किसी को सीधे-सीधे जीता-हरा नहीं सकते, लेकिन ये छूट यूट्यूब और सोशल मीडिया पर है. वहां पब्लिक की आवाज के नाम पर अपना एजेंडा दिखाया जा सकता है. इसलिए पहली बार झारखंड में यूट्यूबर्स की चांदी है.
कई तो दोनों तरफ से मोटा पैसा ले चुके हैं. लेकिन वाराहे ने कई लोगों का साल भर का खर्चा पानी, गाड़ी घोड़े का खर्च निकाल दिया है. लेकिन मेरे जैसे कई पत्रकार और यूट्यूब चैनल भी हैं, जो अपनी कन्विक्शन पर खबरें देते हैं या अनालिसिस करते हैं.
कुछ कहने से पहले कई लोगों से बात करते हैं, क्रॉस चेक करते हैं. इसलिए कभी लोग मुझे और मेरे जैसे लोगों को भाजपा का एजेंट बताने लगते हैं तो, कभी जेएमएम का. लेकिन हम तो देखते-सुनते हैं और जो 28 साल का अनुभव है, उसके आधार पर आकलन करते हैं. मैं ये दावा नहीं करता कि मैं जो कह रहा हूं वही सत्य है या वैसा ही होनेवाला है, लेकिन हम तथ्य पर रहते हैं, पुराने परिणामों का आकलन करते हैं. क्षेत्रीय-जातीय समीकरणों को जानते-समझते हैं, इसलिए सत्य के करीब रहते हैं.
मैं अभी कह रहा हूं कि एनडीए सरकार बना सकता है, तो यह गहरे एनालिसिस के आधार पर और सीटों के विश्लेषण के आधार पर कह रहा हूं, गढ़वा में मिथिलेश ठाकुर चुनाव जीत सकते हैं यह बात मैं वहां की पब्लिक औऱ स्थानीय पत्रकारों, जनता की राय के साथ सामाजिकता के आधार पर कह रहा हूं, इसलिए मैं जानता हूं कि दोनों गंठबंधन चाहे इंडिया एलायंस हो या एनडीए बहुत बड़े अंतर से चुनाव नहीं जीतने जा रहा है.
बहरहाल,जिसकी भी सरकार बनेगी और जो भी विपक्ष में रहेगा, उनके बीच दो, तीन या चार सीटों का ही अंतर रहनेवाला है. लेकिन वाराहे ने इस चुनाव को पेड पत्रकारिता का एक नया आयाम दे दिया है, जिसे न तो चुनाव आयोग पकड़ सकता है और न जनता को यह चालाकी समझ में आनेवाली है.
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