रांची : झारखंड की राजनीति की आबो-हवा कुछ ऐसी है कि राजनीति के बड़े-बड़े सूरमाओं को भी दिन में तारे नजर आने लगते हैं। झारखंड के विधानसभा चुनावों में लगातार दूसरी बार चुनावी जीत दर्ज करना निवर्तमान विधायकों के लिए ‘वाटरलू’ साबित हो रहा है। चुनावी आंकड़ों पर गौर करें तो झारखंड निर्माण के बाद हुए विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने जनप्रतिनिधियों के प्रति गहरी नाराजगी जताई है। झारखंड निर्माण के बाद मतदाताओं ने चारों विधानसभा चुनाव में परिवर्तन के पक्ष में भारी मतदान किया।
सबसे बेहतर परिणाम 2019 में दिखा
हालात ये रहे कि 81 सदस्यीय विधानसभा में विधायकों का सबसे बेहतर परिणाम 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान दिखा, जब सबसे ज्यादा 36 विधायक (44 प्रतिशत) दोबारा चुनकर विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे। आंकड़े बताते हैं कि 2005 के विधानसभा चुनाव में दर्जनों मंत्रियों समेत 50 विधायकों (62 प्रतिशत) की कुर्सी जनता ने खींच ली।
अगले विधानसभा चुनाव यानी 2009 के चुनाव में तो 61 (75 प्रतिशत) विधायकों पर जनता का गुस्सा फूट पड़ा, 2014 के चुनाव में 55 (68 प्रतिशत) विधायक दोबारा विधानसभा का चेहरा नहीं देख पाए और 2019 में मुख्यमंत्री समेत 45 (56 प्रतिशत) विधायकों को जनता ने खारिज कर दिया।
इतनी बड़ी संख्या में बदलाव के बावजूद चारों चुनावों में किसी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिल पाया, क्योंकि भारी बदलाव का स्वरूप विधानसभावार और क्षेत्रवार था, राज्य स्तर पर नहीं। हां, 2014 में NDA और 2019 में UPA (अब इंडिया) गठबंधन को बहुमत मिला था।
चुनावी आंकड़ों के अनुसार 2005 के चुनाव में बीजेपी के 32 में से 13, जेएमएम के 12 में से छह, कांग्रेस के 11 में से 4 और जदयू-समता पार्टी के 8 में से 3, राजद के 9 में से 2 विधायकों की ही चुनावी नैया पार लग पाई।
इनके अलावा आजसू, यूजीडीपी और निर्दलीय 1-1 विधायक भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। वहीं 2009 के चुनाव में जेएमएम के 17 में से 5, बीजेपी के 30 में से 4, कांग्रेस के 9 में से 2, आजसू के 2 में से 2, राजद के 7 में से 1, माले के 1 में 1 और झापा के 1 में 1 विधायक अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 3 निर्दलीय विधायक भी जनता का दिल दोबारा जीतने में कामयाब रहे।
2014 में जेएमएम के 18 में से 7, बीजेपी के 18 में से 10, आजसू के 5 में से 3, राजद के 5 में से 0 और झापा के 1 में 1 विधायक अपनी सीट बचा पाए। 2019 के चुनाव में बीजेपी के 37 में से 12, जेएमएम के 19 में से 13, जेवीएम के 8 में से 1, कांग्रेस के 6 में से 3 और 7 अन्य विधायकों ने पार्टी बदलकर दोबारा चुनाव जीता।
आखिर क्या गुल खिलाएगा…2024 में आंकड़ों के ‘अतीत का भूत?’
विधानसभा चुनावों में सियासी “लंगोट”
बचानेवाले विधायकों की सूची
2005 में ‘लंगोट’ बचानेवाले 31 विधायक
लिट्टीपाड़ा-सुशीला हांसदा
पाकुड़ -आलमगीर आलम
शिकारीपाड़ा-नलिन सोरेन
दुमका-स्टीफन मरांडी
पोड़ैयाहाट-प्रदीप यादव
महगामा-अशोक कुमार
कोडरमा-अन्नपूर्णा देवी
बरही-मनोज कुमार यादव
बड़कागांव-लोकनाथ महतो
चतरा-सत्यानंद भोक्ता
धनवार-रवीन्द्र कुमार राय
गांडेय-सालखन सोरेन
चंदनक्यारी-हारू रजवार
धनबाद-पशुपति नाथ सिंह
बाघमारा-जलेश्वर महतो
बहरागोड़ा-दिनेश कुमार षाडंगी
घाटशिला-प्रदीप कुमार बलमुचू
जुगसलाई-दुलाल भुईयां
जमशेदपुर पूर्वी-रघुवर दास
जगन्नाथपुर-मधु कोड़ा
मनोहरपुर-जोबा मांझी
खरसावां-अर्जुन मुंडा
तमाड़-रमेश सिंह मुंडा
तोरपा-कोचे मुंडा
खूंटी-नीलकंठ सिंह मुंडा
सिल्ली-सुदेश कुमार महतो
रांची-सीपी सिंह
बिशुनपुर-चंद्रेश उरांव
सिमडेगा-नियेल तिर्की
डालटनगंज-इंदर सिंह नामधारी
गढ़वा-गिरिनाथ सिंह.
2009 में ‘लंगोट’ बचानेवाले 20 विधायक
शिकारीपाड़ा-नलिन सोरेन
जामताड़ा-विष्णु प्रसाद भैया
जरमुंडी-हरिनारायण राय
पोड़ैयाहाट-प्रदीप यादव
कोडरमा-अन्नपूर्णा देवी
रामगढ़-चंद्रप्रकाश चौधरी
हजारीबाग-सौरभ नारायण सिंह
बगोदर-विनोद कुमार सिंह
डुमरी-जगन्नाथ महतो
झरिया-कुंती देवी
टुंडी-मथुरा प्रसाद महतो
जमशेदपुर पूर्वी-रघुवर दास
सरायकेला-चंपई सोरेन
खूंटी-नीलकंठ सिंह मुंडा
सिल्ली-सुदेश कुमार महतो
रांची-सीपी सिंह
हटिया-गोपाल शरण नाथ शाहदेव
मांडर-बंधु तिर्की
कोलेबिरा-एनोस एक्का
पांकी-विदेश सिंह
2014 में ‘लंगोट’ बचानेवाले 26 विधायक
शिकारीपाड़ा-नलिन सोरेन
जामा- सीता सोरेन
पोड़ैयाहाट-प्रदीप यादव
रामगढ़-चंद्रप्रकाश चौधरी
डुमरी-जगन्नाथ महतो
गिरिडीह-निर्भय शाहाबादी
सिंदरी-फूलचंद मंडल
निरसा-अरूप चटर्जी
बाघमारा-ढुल्लू महतो
पोटका-मेनका सरदार
जुगसलाई-रामचंद्र सहिस
जमशेदपुर पूर्वी-रघुवर दास
सरायकेला-चंपई सोरेन
चाईबासा-दीपक बिरुआ
जगन्नाथपुर-गीता कोड़ा
तोरपा-पौलुस सुरीन
खूंटी-नीलकंठ सिंह मुंडा
रांची-सीपी सिंह
बिशुनपुर-चमरा लिंडा
सिमडेगा-विमला प्रधान
कोलेबिरा-एनोस एक्का
लोहरदगा-कमल किशोर भगत
मनिका-हरिकृष्ण सिंह
पांकी-विदेश सिंह
गढ़वा-सत्येंद्र नाथ तिवारी
2019 में ‘लंगोट’ बचानेवाले 36 विधायक
राजमहल : अनंत ओझा
बरहेट : हेमंत सोरेन
पाकुड़ : आलमगीर आलम
महेशपुर : स्टीफन मरांडी
शिकारीपाड़ा-नलिन सोरेन
जामा- सीता सोरेन
नाला : रवींद्र नाथ महतो
जामताड़ा : इरफान अंसारी
जरमुंडी : बादल पत्रलेख
सारठ : रणधीर सिंह
देवघर : नारायण दास
गोड्डा : अमित कुमार मंडल
पोड़ैयाहाट-प्रदीप यादव
कोडरमा : डॉ नीरा यादव
मांडू : जयप्रकाश भाई पटेल
हजारीबाग : मनीष जयसवाल
जमुआ : केदार हाजरा
डुमरी-जगन्नाथ महतो
बोकारो-बिरंची नारायण
चांदनकियारी-अमर कुमार बाउरी
धनबाद-राज सिन्हा
टुंडी-मथुरा प्रसाद महतो
बाघमारा-ढुल्लू महतो
सरायकेला-चंपई सोरेन
चाईबासा-दीपक बिरुआ
मंझगांव-निरल पूर्ति
मनोहरपुर-जोबा मांझी
खरसावां-दशरथ गगराई
तमाड़-विकास कुमार मुंडा
खूंटी-नीलकंठ सिंह मुंडा
रांची-सीपी सिंह
हटिया-नवीन जायसवाल
बिशुनपुर-चमरा लिंडा
डालटनगंज-आलोक चौरसिया
बिश्रामपुर-रामचंद्र चंद्रवंशी
भवनाथपुर-भानु प्रताप शाही
विस क्षेत्र बदलकर ‘लंगोट’ बचानेवाले विधायक
दुमका से बरहेठ-हेमंत सोरेन (2014)
सिमरिया से चतरा-जयप्रकाश सिंह भोक्ता (2014)
जमशेदपुर पश्चिम से जमशेदपुर पूर्वी-सरयू राय (2019)
नोट : निर्वाचन के दौरान जयप्रकाश सिंह भोक्ता
और सरयू राय की पार्टी भी बदल गई थी.
(नोट : आंकड़ों में उपचुनाव के नतीजे शामिल नहीं हैं)