गुमला, सिसई प्रखंड मुख्यालय में रविवार को भूतपूर्व सैनिक कल्याण संघ के बैनर तले शहीद लोहरा उरांव की 53वीं पुण्यतिथि मनाई गई। कार्यक्रम में भूतपूर्व सैनिक, वीर नारियां, और शहीद के परिवारजनों ने शामिल होकर शहीद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस दौरान जिला सैनिक कल्याण पदाधिकारी कमांडर पी. रामाराव ने शहीद की वीरता और बलिदान की सराहना करते हुए देश सेवा के महत्व पर जोर दिया।
शहीद लोहरा उरांव: एक वीर सैनिक की गाथा
1. शहादत की कहानी:
शहीद लोहरा उरांव ने 1 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अदम्य साहस दिखाते हुए देश की रक्षा में अपना जीवन बलिदान कर दिया।
- उनके इस बलिदान ने उन्हें इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया।
- उनकी वीरता और समर्पण का जिक्र करते हुए कमांडर पी. रामाराव ने कहा:
“एक सैनिक के लिए देश सेवा में शहादत देना गर्व की बात है।”
2. प्रेरणा स्रोत:
शहीद लोहरा उरांव आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।
- उनकी शहादत इस बात का प्रतीक है कि देश की सुरक्षा के लिए हर भारतीय जिम्मेदार है।
- कैप्टन लोहरा उरांव ने कहा कि उनकी वीरता को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण
1. माल्यार्पण और श्रद्धांजलि:
कार्यक्रम के दौरान शहीद की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।
- शहीद की धर्मपत्नी बंधैन देवी, पुत्र मंगल उरांव, और पोते-पोतियों ने अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
- अन्य भूतपूर्व सैनिकों और वीर नारियों ने भी उनकी स्मृति को सम्मानित किया।
2. देशभक्ति का संदेश:
कमांडर पी. रामाराव ने युवाओं से देशभक्ति और समर्पण की भावना को अपनाने का आह्वान किया।
- उन्होंने कहा कि देश सेवा केवल सैनिकों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है।
- कार्यक्रम ने देशभक्ति के जज्बे को मजबूत करने का कार्य किया।
विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति
इस कार्यक्रम में कारगिल शहीद विश्राम मुंडा की धर्मपत्नी रीना देवी, भूतपूर्व सैनिक छबीनाथ भगत, धरमा उरांव, और अन्य कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
- सभी ने शहीद लोहरा उरांव की वीरता का स्मरण किया और उनके बलिदान को सलाम किया।
- उपस्थित लोगों ने देशभक्ति और सैनिकों के त्याग को सराहा।
युवाओं के लिए एक प्रेरणा
1. देश सेवा के प्रति जागरूकता:
शहीद लोहरा उरांव की कहानी ने युवाओं को यह संदेश दिया कि देश सेवा में योगदान देना हर भारतीय का कर्तव्य है।
- ऐसे आयोजनों से देशभक्ति और सामूहिक जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा मिलता है।
2. समाज और सैनिकों के बीच जुड़ाव:
कार्यक्रम ने समाज और भूतपूर्व सैनिकों के बीच जुड़ाव को मजबूत किया।
- यह मंच शहीदों की वीरता का सम्मान करने और उनके परिवारों को प्रोत्साहन देने का अवसर था।
शहीदों का सम्मान: एक नैतिक कर्तव्य
1. शहीदों की स्मृति को जीवित रखना:
शहीद लोहरा उरांव की पुण्यतिथि जैसे कार्यक्रम हमें उनके बलिदान की याद दिलाते हैं।
- यह समाज के लिए एक मौका है कि वे अपने नायकों के प्रति आभार व्यक्त करें।
2. समाज के लिए प्रेरणा:
शहीदों की कहानियां केवल इतिहास नहीं हैं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं।
बलिदान की अमर गाथा
शहीद लोहरा उरांव की 53वीं पुण्यतिथि ने न केवल उनके बलिदान को सम्मानित किया, बल्कि युवाओं को देश सेवा और देशभक्ति के लिए प्रेरित किया। ऐसे आयोजन हमें यह याद दिलाते हैं कि शहीदों का त्याग हमारी स्वतंत्रता और सुरक्षा का आधार है।
क्या आप मानते हैं कि शहीदों की स्मृतियों को और अधिक प्रचारित किया जाना चाहिए? अपनी राय साझा करें।
न्यूज़ – गणपत लाल चौरसिया