गुमला : – गुमला झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद एवं कोल इंडिया लिमिटेड के तत्वावधान में जिला प्रशासन गुमला द्वारा आयोजित द्वितीय गुमला साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन का कार्यक्रम आज प्रातः 10 बजे से अपराह्न 6 बजे तक संपन्न हुआ। इस अवसर पर साहित्य, शिक्षा, भाषा, आदिवासी संस्कृति एवं सामाजिक सरोकारों से जुड़े विभिन्न सत्र आयोजित किए गए, जिनमें प्रख्यात लेखकों, कवियों, शिक्षाविदों, युवाओं एवं बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।
प्रथम सत्र: “किताबें करती हैं बात”
इस सत्र में लेखक एवं प्रकाशक अक्षय बहिबाला, शताब्दी मिश्रा, अनुकृति उपाध्याय, चंद्रहास चौधरी एवं विक्रम कुमार ने पुस्तक संस्कृति और इसके प्रचार-प्रसार पर विचार-विमर्श किया। शताब्दी मिश्रा एवं अक्षय बहिबाल ने “वॉकिंग बुक फेयर” की अवधारणा प्रस्तुत की और बताया कि किस प्रकार वे ओडिशा समेत 20 राज्यों में पुस्तक जागरूकता अभियान चला चुके हैं।
अक्षय बहिबाला ने कहा कि पुस्तकें केवल शहरी नहीं, बल्कि ग्रामीण समाज के लिए भी सहज उपलब्ध होनी चाहिए। चंद्रहास चौधरी ने घर में पुस्तकालय स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। अनुकृति उपाध्याय ने भाषा और साहित्य के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि “हम असीमित हैं, यदि कोई सीमा है तो वह केवल जानकारी के अभाव के कारण है।” विक्रम कुमार ने पुस्तकों को सबसे सुलभ एवं किफायती शौक बताया।
द्वितीय सत्र: तेलोंग सिक्की स्क्रिप्ट पर चर्चा
इस सत्र में डॉ. नारायण उरांव ने तेलोंग सिक्की लिपि की ऐतिहासिकता एवं वैज्ञानिक पद्धति से इसके विकास पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने इस लिपि को यूनिकोड मान्यता दिलाने के लिए केंद्र सरकार से मंच के माध्यम से आग्रह किया।
तृतीय सत्र: आदिवासी साहित्य एवं कविता
इस सत्र में चर्चित कवि एवं पत्रकार जशांता केरकेट्टा ने आदिवासी समाज, पहचान, विस्थापन एवं लिंग आधारित हिंसा पर केंद्रित अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज को अपनी पहचान बनाए रखने और वैश्विक विमर्श में केंद्र में आने की आवश्यकता है।
अनुज लुगुन ने “इंडियन लिटरेचर: द हार्टबीट ऑफ इंडियन लिटरेचर” पर चर्चा करते हुए कहा कि आदिवासी साहित्य गीत, नृत्य और सामुदायिकता से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।
स्पॉटलाइट गुमला यूथ्स: युवा प्रतिभाओं की आवाज
इस सत्र का संचालन चंद्रहास चौधरी ने किया, जिसमें 13 से 26 वर्ष के युवाओं ने अपने विचार साझा किए। दीपशिखा कुमारी ने सरकारी और निजी स्कूलों के बीच शिक्षा स्तर की असमानता पर प्रकाश डाला। बीरेंद्र कुमार ने अपने मोहल्ला क्लास अभियान के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा को सुदृढ़ करने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को साझा किया। ताशा झा ने अपनी लेखन यात्रा और प्रकाशित पुस्तकों पर चर्चा की। सृष्टि कुमारी ने इसरो यात्रा के अपने अनुभव साझा किए और कहा कि विज्ञान एवं तकनीक में ग्रामीण छात्राओं की भागीदारी बढ़नी चाहिए।
पांचवे सत्र: ट्राइबल हिस्ट्रीग्राफी इन कंटेम्पररी टाइम्स
इस सत्र में रणेंद्र कुमार ने आदिवासी इतिहास एवं उसकी समकालीन प्रासंगिकता पर विचार साझा किए। उन्होंने आदिवासी समुदाय की ऐतिहासिकता, सामाजिक संरचना और उनकी परंपराओं के संरक्षण पर जोर दिया।
छठे सत्र: बिटवीन टू वर्ल्ड्स – द्विभाषी लेखन की यात्रा
इस सत्र में अनुकृति उपाध्याय एवं चंद्रहास चौधरी ने द्विभाषी लेखन की चुनौतियों एवं संभावनाओं पर चर्चा की। अनुकृति उपाध्याय ने कहा कि “कहानियां पढ़ने और सुनने की परंपरा कमजोर हो रही है, जो समाज के लिए चिंता का विषय है।” उन्होंने कहा कि भाषा का संरक्षण जरूरी है और इसे केवल सरकार पर निर्भर नहीं छोड़ना चाहिए।
अंतिम सत्र: आदिवासी संस्कृति पर पपेट शो
महोत्सव के अंतिम सत्र में बिरसा मुंडा के जीवन पर आधारित एक पपेट शो का आयोजन किया गया, जिसमें उनके संघर्ष और योगदान को प्रदर्शित किया गया.
द्वितीय गुमला साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन के सत्रों ने साहित्य, भाषा, शिक्षा और आदिवासी संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर व्यापक संवाद स्थापित किया।
न्यूज़ – गणपत लाल चौरसिया