गुमला, 20 मई | झारखंड के गुमला जिले में आयोजित समर कैंप ने नन्हे प्रतिभागियों में न सिर्फ रचनात्मकता और आत्मविश्वास को बढ़ावा दिया, बल्कि गंभीर बीमारी फाइलेरिया के प्रति जागरूकता फैलाने का भी सशक्त माध्यम बना। पिरामल फाउंडेशन और स्थानीय विद्यालयों की साझेदारी से आयोजित इस अभियान में शिक्षा, स्वास्थ्य और अभिव्यक्ति के पहलुओं को एक मंच पर लाया गया।
बच्चों ने सीखा खेल-खेल में, फाइलेरिया से बचाव पर मिली अहम जानकारी
राजकीयकृत प्राथमिक विद्यालय, फसिया में समर कैंप की शुरुआत बाल गीत और चेतना गीत के साथ हुई। इसके बाद विद्यार्थियों ने खेलों के माध्यम से शरीर के अंगों के बारे में जानकारी पाई और चित्रकला, नृत्य, समूह चर्चा जैसी रचनात्मक गतिविधियों में भाग लेकर अपनी प्रतिभा को उजागर किया। कैंप के एक विशेष सत्र में फाइलेरिया से बचाव की जानकारी दी गई, जिसमें बच्चों को बताया गया कि यह बीमारी मच्छर के काटने से होती है और इससे बचने के लिए स्वच्छता, मच्छरदानी का उपयोग और समय पर दवा लेना जरूरी है। पिरामल फाउंडेशन और विद्यालय टीम ने इसमें सक्रिय भागीदारी निभाई। इस आयोजन में ग्राम के मुखिया नरेश उरांव, शिक्षकगण और ग्रामीणजन भी शामिल हुए।
जैंरागी पंचायत में 86 बच्चों की भागीदारी, दिन बना उत्सवमयी
ग्राम पंचायत जैंरागी में आयोजित समर कैंप में 86 बच्चों ने भाग लिया। पिरामल फाउंडेशन की ओर से कुंतल पाल, खेमचंद चंद्राकर और शुभम भारती कार्यक्रम में शामिल हुए, जबकि ग्राम की मुखिया रेखा मिंज, विद्यालय प्रधानाध्यापक व शिक्षकों ने आयोजन को सफल बनाने में सहयोग दिया। बच्चों ने बाल गीत, चित्रांकन और खेलों से वातावरण को उल्लासपूर्ण बना दिया। फाइलेरिया उन्मूलन के लिए संवाद और चित्रों के माध्यम से बच्चों को इसके कारण, लक्षण और बचाव के उपायों की जानकारी दी गई।
कुटवन स्कूल में मुखिया बीना देवी ने बच्चों को सुनाई प्रेरक कहानियां
राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय, कुटवन में आयोजित समर कैंप में मुखिया बीना देवी ने बच्चों के साथ समय बिताया और अपने बचपन की कहानियों से उन्हें प्रेरित किया। पिरामल फाउंडेशन की टीम ने समूह गीत, पेंटिंग, प्रश्नोत्तरी और शब्द खेल जैसे गतिविधियों से बच्चों को व्यस्त रखा। फाइलेरिया के बारे में भी सरल भाषा में समझाया गया, जिससे बच्चों ने गंभीर विषय को भी सहजता से आत्मसात किया।
साझा प्रयास से मिला सार्थक परिणाम
इन समर कैंपों ने यह स्पष्ट किया कि शिक्षा केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं है, बल्कि संवाद, सामूहिक सहभागिता और रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से भी बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति को मजबूती दी जा सकती है। पिरामल फाउंडेशन, शिक्षकों, पंचायत प्रतिनिधियों और ग्रामीण समुदाय के सहयोग से इन शिविरों ने बच्चों के सर्वांगीण विकास की दिशा में एक सकारात्मक कदम बढ़ाया है।
न्यूज़ – गणपत लाल चौरसिया