नारायण विश्वकर्मा
सत्ता प्रतिष्ठान में यह बात स्थापित हो गयी है कि सत्ता के इशारे पर ब्यूरोक्रेट्स को काम करना पड़ता है. अक्सर देखा-सुना गया है कि दागी अफसर सत्ता का संरक्षण पाने में सफल भी हो जाता है. इन दिनों अपनी कार्यशैली को लेकर रांची के डीसी छवि रंजन सुर्खियों में हैं. पिछले दिन झारखंड हाईकोर्ट ने उनकी कार्यशैली के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की है. खान-खनिज के मामले में चार्जशीटेड आइएएस अफसर से राज्य सरकार द्वारा शपथ पत्र दायर करने पर कोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार कर लिया है. हाईकोर्ट अब रांची डीसी को नोटिस जारी करेगा और उनके लंबित केस का स्टेटस जानेगा.
इंद्रदेव लाल को तीन माह बाद भी नकल की कॉपी हासिल नहीं
कोर्ट के कड़े रुख के बाद आरटीआई एक्टिविस्ट इंद्रदेव लाल ने कहा है कि रांची डीसी के खिलाफ पांच साल से पेंडिंग क्रिमिनल केस का जिन्न अब बाहर निकलने के लिए मचल रहा है. वे कहते हैं कि सत्ता प्रतिष्ठान के इशारे पर काम करने का अब उन्हें परिणाम भुगतना पड़ सकता है. कोडरमा में जिला परिषद परिसर में लकड़ी कटाई के मामले में अभियुक्त छवि रंजन का हाईकोर्ट में पांच साल से केस लंबित रहने पर इंद्रदेव लाल ने केस की सुनवाई के लिए एसीबी कोर्ट से तीन माह पूर्व दस्तावेज की मांग की थी. उन्होंने बताया कि झारखंड हाईकोर्ट से पिछले 5 साल से जमानत पर चल रहे रांची डीसी के खिलाफ हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू नहीं होने पर एफआईआर और चार्जशीट की कॉपी के लिए रांची एसीबी कोर्ट में नकल निकलवाने के लिए आवेदन दिया था. कोर्ट के पेशकार ने बताया कि छविरंजन का मामला हजारीबाग एसीबी कोर्ट में है. वहीं से नकल की कॉपी पाना संभव है. इंद्रदेव लाल ने हजारीबाग जाकर पता किया तो कहा गया कि अभी एफआईआऱ और चार्जशीट की कॉपी हजारीबाग एसीबी कोर्ट में नहीं है. यहां आने पर ही आपको नकल की कॉपी मिल पाएगी.
इसे कहते हैं आ बैल मुझे मार…!
इंद्रदेव लाल ने बताया कि 15 फरवरी 2022 को उन्होंने रांची के विशेष निगरानी कोर्ट के जज ए. दुबे की अदालत में निगरानी केस नं-1, 2016, झारखंड राज्य बनाम छविरंजन के खिलाफ (निगरानी केस नंबर 76/2015) केस से संबंधित दस्तावेज की मांग की. श्री लाल ने बताया कि जब दस्तावेज लेने पहुंचे तो, उन्हें बताया गया कि छविरंजन के खिलाफ लंबित मामला हजारीबाग के एसीबी के विशेष जज के कोर्ट में 18 फरवरी 22 को भेज दिया गया है, वहीं से मिलेगा. जब यहां पता किया तो कहा गया कि अभी इसमें समय लगेगा. उन्होंने कहा कि एसीबी के टालमटोल रवैये से यह पता चल गया कि सत्ता के संरक्षण में पलनेवाले अफसर के खिलाफ कुछ नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में अब उनके लंबित केस का पिटारा खुलेगा. सत्ता का साथ देने की फिराक में अब वे खुद ही उलझ गए हैं या उन्हें उलझा दिया गया है यह तो कहना मुश्किल है पर इसे ही कहते हैं आ बैल मुझे मार.
आला अफसरों ने दुबारा वही गलती दोहरायी
सबसे हैरतअंगेज बात यह है कि सरकार के आला अफसरों से यह भूल कैसे हो गई? जबकि 13 मई 2022 को ही हाईकोर्ट ने डीसी छवि रंजन द्वारा शपथ पत्र दायर करने पर आपत्ति की थी. हाईकोर्ट ने कहा था कि खनन विभाग के किसी जिम्मेदार अफसर ने नहीं, बल्कि रांची डीसी की ओर से दायर की गई है. अदालत ने यह सवाल किया था कि यह कैसे संभव है कि डीसी को खान विभाग के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी हो. दरअसल, खान निदेशक अमित कुमार ने रांची डीसी को शपथ पत्र दायर करने का निर्देश दिया था. खान निदेशक ने चार मई को डीसी को पत्र लिखा और शिवशंकर शर्मा की याचिका पर कोर्ट में शपथ पत्र दायर करने के लिए प्राधिकृत किया. इसके बावजूद आला अफसरों ने फिर वही गलती क्यों दुहरा दी? मात्र छह दिन बाद छवि रंजन को हाईकोर्ट में शपथपत्र दायर करने फिर निर्दैश दे दिया गया. इसके बाद कोर्ट ने डीसी पर सवाल उठाते हुए कहा कि जिनके खिलाफ क्रिमिनल केस पेंडिंग है और चार्जशीटेड है उससे राज्य सरकार ने शपथ पत्र कैसे दायर कराया. अब इस मामले में रांची डीसी बुरी तरह से घिरते नजर आ रहे हैं.
सत्ता शीर्ष दागदार डीसी पर मेहरबान क्यों?
श्री लाल ने कहा कि सत्ता शीर्ष से यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि आखिर चार्जशीटेड अफसर को राजधानी में डीसी क्यों बना दिया गया? क्यों नहीं हेमंत सरकार ने उनके पूर्व की केस हिस्ट्री पर गौर किया? आखिर हाईकोर्ट से जमानत पर चल रहे आईएएस अफसर को राजधानी में डीसी बनाने की क्या मजबूरी थी? ऐसे कई सवालों से घिरने के बावजूद छवि रंजन की छवि पर अबतक कोई आंच नहीं आना यह साबित करता है कि उन्हें सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। हालांकि सत्ता प्रतिष्ठान में इसके भी मायने निकाले जा रहे हैं। पहले से दागदार छवि के अफसर को राजधानी रांची का डीसी बना देने से हेमंत सरकार पर भी उंगलियां उठ रही हैं। सूत्र बताते हैं कि सरकार के सहयोगी कांग्रेस के विधायक-मंत्री भी चाहते हैं कि मुख्यमंत्री रांची डीसी को चलता करें. कहा गया कि किसी एक आईएएस की वजह से उनकी सरकार की बदनामी हो रही हो और मुख्यमंत्री उन्हें हटाने के बदले उनसे काम ले रहे हैं, यह उचित नहीं है. श्री लाल ने कहा कि आखिर क्या वजह है कि ऐसे अफसर को सरकार पोस रही है? आखिर सरकार दागदार डीसी पर मेहरबान क्यों है?
क्या है आरोप?
छवि रंजन पर आरोप है कि उन्होंने कोडरमा के डीसी रहते हुए जिला परिषद के सरकारी परिसर से पांच बड़े सागवान के पेड़ और एक बड़े शीशम के पेड़ को अवैध रूप से कटवाया, जिसका मूल्य 20-22 लाख रुपए के आसपास बताया गया। इसके बाद छवि रंजन के खिलाफ कोडरमा के मरकच्चो थाने में पीएस केस (83/2015) दर्ज किया गया। कुछ दिनों बाद हजारीबाग के एसीबी विभाग में (केस सं 11/2016) सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत याचिकाकर्ता (छवि रंजन) को नोटिस जारी किया गया था। बाद में इस मामले को रांची स्थित भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को रेफर किया गया। इस मामले में प्रारंभिक जांच में यह पता चला कि छवि रंजन के मौखिक आदेश पर जिला परिषद परिसर से पेड़ कटवाए गए थे।
डीडीसी को एफआईआर दर्ज करने से रोका गया
बता दें कि विजिलेंस के विशेष पीपी ने कोर्ट में जवाबी हलफनामा दाखिल कर याचिकाकर्ता की जमानत अर्जी का विरोध किया था. उन्होंने जवाबी हलफनामे के पैरा 6 का हवाला देते हुए गवाह कैलाश नाथ पांडे और सुबोध कुमार यादव द्वारा धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज अपने बयानों में अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन किया गया. इस मामले में कोडरमा के तत्कालीन डीडीसी कौशल किशोर ठाकुर ने अपनी गवाही में कहा कि याचिकाकर्ता (छवि रंजन) ने उन्हें नामित प्राथमिकी दर्ज करने से रोकने की पूरी कोशिश की थी और उन पर कैलाश नाथ पांडे और सुबोध कुमार यादव के लिखित बयान को बदलने के लिए भी दबाव बनाया गया था।
बहरहाल, हाकिम के समक्ष छवि रंजन के खिलाफ लंबित मामले की पोटली खुलने की उम्मीद है. इसके बाद ही पता चलेगा कि छवि रंजन के साथ क्या सलूक होनेवाला है. भ्रष्ट अफसरों की सूची में उनका नाम पहले से शामिल है. ईडी के रडार पर भी उनका नाम आ रहा है. अब देखना है कि कोर्ट में सरकार उनका बचाव करती है या उन्हें अपने हाल पर छोड़ देती है, इसका हमें अभी इंतजार करना होगा.