रांची: पूर्व मंत्री व झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जनजातीय समाज के साथ व्यक्तिगत और भावनात्मक रिश्ता सही हो सकता है, लेकिन जरूरत यह है कि वे उस रिश्ते की कद्र करते हुए आदिवासी समाज को उसका वह अधिकार दें, जो वे वर्षों से मांग रहे हैं. श्री तिर्की ने कहा कि, केंद्र सरकार की पिछले 9 साल की गतिविधियों को देखकर यही बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि, आदिवासी शब्द की मार्केटिंग और उन्हें शब्दों के मायाजाल में फंसाने के मामले में केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी ने कीर्तिमान बनाया है.
सरना धर्म कोड बिल पर मुहर लगाएं पीएम
उन्होंने कहा कि अपनी अलग धार्मिक पहचान के लिए वर्षो से संघर्ष कर रहे और लड़ रहे आदिवासियों के हित में झारखण्ड विधानसभा ने सरना धर्म कोड बिल पारित कर उसे केन्द्र सरकार को इस आग्रह के साथ भेजा था कि वह उसे संसद में पारित कराकर पूरे देश में लागू करे. लेकिन अभी तक इस मामले में कोई भी सकारात्मक पहल नहीं की गयी है और ऐसा लगता है जैसे केन्द्र ने इस समूचे मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. उन्होंने कहा कि यदि आदिवासी समुदाय की इतनी ही चिन्ता है और इतना ही भावनात्मक लगाव है, तो केन्द्र सरकार ने जिस प्रकार जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को हटाने के लिए अपनी इच्छाशक्ति का परिचय दिया था, उसी तरीके से वह झारखण्ड समेत अनेक राज्यों में पांचवी अनुसूची को लागू करने और त्रिपुरा सहित अनेक राज्यों में छठी अनुसूची को लागू करने की दिशा में पहल क्यों नहीं करती?
भाजपा के लिये आदिवासी केवल चुनावी मुद्दा
श्री तिर्की ने कहा कि अपनी अलग धर्म, संस्कृति, परंपरा, रहन-सहन और अपने विशिष्ट इतिहास के बलबूते देश के सभी राज्यों में आदिवासियों की बिल्कुल अलग पहचान है. लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण जनजातीय समाज का हित सीधे-सीधे प्रभावित हो रहा है और इसके कारण वे आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से अबतक पिछड़े हैं. उन्होंने कहा कि झारखण्ड से सैकड़ों साल पहले असम गये आदिवासी, वहां के चाय बागान में मजदूर के रुप में अब भी काम कर रहे हैं पर, आजतक उन्हें आदिवासी का दर्जा भी नहीं दिया गया और वे विस्थापित होने का दंश झेलते हुए माइग्रेटेड अदर बैकवर्ड क्लासेस (एमओबीसी) के रूप में जाने जाते हैं. श्री तिर्की ने कहा कि भाजपा के लिये आदिवासी केवल चुनावी मुद्दा है और इसे बीजेपी ही साबित कर रही है. 2014 में असम के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने न केवल अपने घोषणापत्र में बल्कि भाजपा के अनेक बड़े नेताओं ने खुले मंच से यह वादा किया था कि वह झारखण्ड के उन मूल आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देगी. लेकिन 9 साल के बाद भी वह मामला जस का तस बरकरार है.
मोदी सरकार वन संरक्षण नियमावली 2022 पर जोर लगाये
कांग्रेस नेता ने जोर देकर कहा कि 2006 में यूपीए सरकार के शासनकाल में पारित वनाधिकार कानून को केन्द्र सख़्ती से लागू करे सिवाय इसके कि मोदी सरकार वन संरक्षण नियमावली 2022 पर अपना जोर लगाये. उन्होंने कहा कि आदिवासियों की भावना वन संरक्षण नियमावली 2022 के विरुद्ध है और वे किसी भी स्थिति में इसके खिलाफ खड़े रहेंगे. इसके साथ ही श्री तिर्की ने पुनः दोहराया कि, आदिवासियों को उनके वन उपज का सही मूल्य मिलना चाहिये साथ ही इसके लिए केन्द्र सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करनी चाहिये. श्री तिर्की ने कहा कि आदिवासियों के बीच बेरोजगारी को समाप्त करने के साथ ही, उनकी पृथक पहचान को कायम रखने में सरकार के द्वारा की गयी प्रभावी पहल का सीधा-सीधा फायदा देश को होगा और प्रधानमंत्री मोदी को इस बात को समझना चाहिये.