1.
उनकी गहरी नींदों में हसीन सपने होते हैं।
जिनको देखते हुए, वह बारम्बार नींदों से जगते हैं।
यह सपने, सुख-दुःख से भरे होते हैं।
जिन्हें वह अपने बच्चों की आस में जीते हैं।
हर माँ बाप अभिभावकों की यही कहानी होती है।
बस उन सपनों को वास्तविक दिखाने वाले
इस धरा कितने होते हैं।
यह विडम्बना नहीं है।
यह वास्तविक हैं।
2.
उस दिन को याद करोगी,
जिस दिन दिल से किसी ने चाहा था।
उस पल को याद करोगी,
जिस पल नयनों से नयन मिलाये थे।
उस गुफ़्तगू को याद करोगी,
जिससे वह राह शुरू हुई थी।
उस शाम को याद करोगी,
जहां रूबरू हुई थी।
उस दरम्यान को याद करोगी,
जहां उसकी अहमियत का हौसला बढ़ा था।
यह सोचते हुए अपने आपसे ज़रूर कहोगी कि
हाय तौबा, मैं यह क्या कर बैठी
कि कारवाँ भी नहीं चली उसके साथ आजतक।
जिसने अपनी धड़कने कर दी मेरी धड़कनों के साथ।
यही सोचते हुए अपने आप से सिर्फ़ यही कहोगी।
हे मेरे कृष्णा,
मैं तो सिर्फ़ तेरी ही राधा हूँ।
मैं तो सिर्फ़ तेरी ही पूजा हूँ ।
मैं तो सिर्फ़ तेरी ही समर्पण हूँ।
3.
मैं उनको कभी दग़ाबाज़ नहीं कहता।
मैं उनको कभी एहसान फ़रामोश नहीं कहता।
मैं उनको कभी चोर नहीं कहता।
मैं उनको दर्द देने वाला नहीं कहता।
मैं उस समय को नहीं कहता।
मैं उनको हमेशा अपना आचार्य कहता हूँ।
मैं उनके द्वारा दिये गए अपवादों का अनुसरण करता हूँ।
मैं स्वर्णिम भविष्य के पथ पर चलने की कोशिश यूँ करता हूँ कि
पुनः ऐसे व्यक्तित्वों से भरी मैली चादरों को नहीं ओढ़ता हूँ
जो आसपास की हवाओं मे ख़ुशबू नहीं बिखेर सकते हैं।
जो जीवन में ख़ुशी के फूल अंकुरित नहीं कर सकते हैं।
4.
न मैं ग़ालिब, न मैं गुलज़ार।
न मैं ग़ालिब को, न मैं गुलज़ार को लिखता हूँ।
बस मैं सुमित हूँ अपनी ही भाषा को लिखता हूँ।
जिसमें जीवन के हर पहलुओं को लेकर लिखता हूँ।
कुछ उसे पीठ थपथपा के प्रशंसा करते हैं।
कुछ उसे भौहें बनाकर निन्दा करते हैं।
कुछ उसे प्रासंगिक कहते हैं।
कुछ उसे असंगत कहते हैं।
कुछ जीवन की सत्यता का बोध कहते हैं।
कुछ जीवन का असत्य कहते हैं।
या तो ताना मारने का प्रसंग कहते हैं। परन्तु जो कुछ भी लिखता हूँ,
वह जीवन में गुजरे पलों की कथा लिखता हूँ ।
लेखक, सुमित कुमार कस्टम डिपार्टमेन्ट मे बड़े अधिकारी के तौर पर मुंबई मे पदस्थ हैं , लेखन के अलावा अभिनय और चित्र कला में भी निपुण हैं