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Thursday, November 21, 2024
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देश की आजादी में वीर शहीद नीलाम्बर पीताम्बर के योगदान को भुलाया नही जा सकता

खलारी। देश की आजादी की लड़ाई की बात हो और वीर शहीद नीलाम्बर पीताम्बर का नाम ना लिया जाए यह हो नही सकता है। आजादी की लड़ाई में इन दोनों भाईयों के योगदान को भुलाया नही जा सकता है। नीलाम्बर पीताम्बर पलामू के दो महान स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होने 1857 ई की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने में अहम भूमिका निभायी थी। नीलाम्बर एव पीताम्बर शाही भोगता का जन्म 10 जनवरी 1823ई को गढ़वा जिला के भंडरिया स्थित चेमू सेनया गांव में हुआ था। नीलाम्बर पीताम्बर दोनों सहदोर भाई थे। इनके पिता का नाम चेमू सिंह भोगता था।

●भोगता-खरवार का शाक्तिशाली संगठन बनायाः

अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए दोनों भाईयों ने भोगता तथा खरवार समुदाय को मिलाकर एक शक्तिशाली संगठन बनाया। पलामू जिला में चेरो तथा खरवार जाति की प्रधानता है। नीलाम्बर पीताम्बर ने अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए चेरो के जागीरदारों से दोस्ती की। उन्हे उनका अधिकार वापस दिलाने की शर्त पर उनका समर्थन प्राप्त किया।

●अंग्रेजों के कैम्प पर किया हमलाः

21 अक्टुबर 1857 ई को दोनों भाईयों के नेतृत्व में चैनपुर, शाहपुर तथा लेस्लीगंज स्थित अंग्रेजों के कैंप पर आक्रमण किया गया। जिसमें वह काफी हद तक सफल रहे। इसी बीच अंग्रेजी सरकार को इन दोनों भाईयों के नेतृत्व की सुचना मिली। जिसके बाद उनका प्रतिरोध करने के लिए मेजर कोर्टर के नेतृत्व में इनको दबाने के लिए एक सैनिक टुकड़ी को भेजा गया। बाद में अंग्रेज सैन्य अधिकारी ग्राहम को भी सैनिक टुकड़ी के सहयोग के लिए भेजा गया। दोनों भईयों ने लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ गोलबंद किया। नीलाम्बर-पीताम्बर के विद्रोह को कुचलने के लिए डाल्टन ने एक बड़ी सेना लेकर 27 जनवरी, 1858 में पलामू किले पर आक्रमण कर दिया था।अंग्रेजी सेना ने पलामू किले को तीनों ओर से घेर कर तोपों से अंधाधुंध गोले दागे थे। इससे उसमें छिपे नीलाम्बर-पीताम्बर और उनके साथी किसी तरह घने जंगल के रास्ते भागने में सफल रहे थे। यद्यपि उन्हें भारी मात्रा में अपने हथियार और रसद छोड़ कर भागना पड़ा था।

●डाल्टन ने चेमु सनेया को घेराः

13 फरवरी,1858 को पहली बार डाल्टन अपने सैनिकों के साथ नीलाम्बर-पीताम्बर के गांव चेमु सनेया पंहुचा था। उस समय उसने चेमु और सनेया दोनों गॉवों को तीनों ओर से घेर कर मजबूत मोर्चा बना लिया था, लेकिन इस दौरान भी अंग्रेज सैनिकों को कड़ा विरोध झेलना पड़ा। पलामू गजेटियर में इस बात का उल्लेख है कि नीलाम्बर-पीताम्बर को पकड़ने के लिए डाल्टन को लगातार 23 फरवरी तक कोयल नदी के किनारे चेमो गांव में डेरा डालना पड़ा था, लेकिन इसके बाद भी वह दोनो भाइयों और उनके साथियों को पकड़ने में विफल रहा। इस बीच डाल्टन काफी थक चुका था। इसके काऱण वह हाथ मलते हुए डालटनगंज लौटने को मजबूर हो गया। इस दौरान नीलाम्बर-पीताम्बर और उनके साथियों को भी राशन-पानी खत्म हो जाने एवं लगातार लड़ाई में थक जाने की वजह से पहाड़ियों की ओर भाग कर शरण लेनी पड़ी थी। 10 दिनों से लगतार अभियान के दौरान विद्रोहियों के हमले में अंग्रेज सैनिकों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। डाल्टन के अनेक सैनिक मारे गए थे और दर्जनों सैनिक बुरी तरह से घायल हुए थे। रामगढ़ अष्वसेना का एक दफादार जैसे ही चेमू गांव को पूरी तरह से जलाने का आदेश दे दिया। 22 फरवरी को डाल्टन के लौटने के पूर्व चेमू गांव के घर में तोड़ फोड़ करते हुए उसे आग लगा कर पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया। इसके दूसरे दिन 23 फरवरी को इसी तरह सनेया गांव को भी नष्ट कर दिया गया। यहाँ तक कि ग्रामीणों के अनाज और उनके मवेशियों पर भी अंग्रेज सैनिकों ने कब्जा कर लिया।

●भोज के अवसर पर पकड़े गए दोनों भाईः

समस्त अंग्रेजी सरकार दोनों भाईयों को पकड़ने के लिए कई बार कोशिश की लेकिन हमेशा दोनों भाईयों ने अंग्रेजों के मंसुबे को कामयाब नही होने दिया। लेकिन अंत में कर्नल डाल्टन ने दोनों भाईयों को एक भोज के अवसर पर पकड़ लिया। दोनों भाईयों के खिलाफ एक संक्षिप्त मुकदमा चलाकर उन्हे फांसी पर लटका दिया। 28 मार्च 1859 को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।बाद में दोनों भाईयों की संपत्ति को भी अंग्रेजी हुकुमत द्वारा जब्त कर ली गयी। महज 35 साल की उम्र में दोनों भाईयों ने स्वतंत्रता के आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंककर अपनी प्राणों की आहुति दे दी।

News – Kumar Prakash.

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