गिरिडीह (कमलनयन) : विश्व के मानचित्र पर उम्दा किस्म के अभ्रख और कोयला खादानों के लिए मशहूर गिरिडीह हिन्दुस्तानी संगीत साथकों का शहर भी रहा है। गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर, सर जेसी बोस, प्रो. पीसी महलनविस जैसी महान हस्तियों का हार्दिक लगाव गिरिडीह से रहा है। सितार और सरोद वादन की युगलबंदी में केडिया बंधुओं ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाकर गिरिडीह का गौरव बढ़ाया है। इसी परम्परा को आगे बढ़ाने में जुटे हैं युवा बांसुरी वादक “राग यमन” जिनका नाम ही इनके माता-पिता ने शास्त्रीय संगीत के सुरों पर रखा है। माता पुनम देवी और पिता राम कुमार सिन्हा दोनों कला के फनकार. पिता स्वयं उम्दा बांसुरी वादक हैं। दो भाई-बहनों में रागयमन ने पिता की प्रेरणा से ही इस क्षेत्र में कदम रखा। बांसुरी की प्रारम्भिक शिक्षा भी अपने पिता से मिली। बाद में बनारसी घराने के ख्याति प्राप्त बांसुरी वादक पंडित अजय प्रसन्ना से विधिवत शिक्षा ग्रहण कर बीएएलएलबी शिक्षा के साथ-साथ बांसुरीवादन में अपना भविष्य बनाने की ओर आगे बढ़ रहे हैं। केडिया बंधुओं के सानिध्य में कई बार स्टेज शो कर कला की बारीकियों का अध्ययन करने के क्रम में अपनी कला में निखार लाने की सफल कोशिश करते रहे। फलतः कड़ी मेहनत लगन और निरन्तर रियाज करते हुए देश के विशिष्ट संगीत समारोह में मंच प्रस्तुति कर अपनी बांसुरी मनभावक प्रस्तुति कर श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर रहे हैं।
राग यमन ने श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा में बांसुरी की सुरीली आवाज़ से लोगों को मंत्रमुग्ध किया
इसी वर्ष में अयोध्या धाम में सम्पन्न हुए श्रीरामलला के भव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह के पश्चात आयोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला में प्रसिद्ध म्युजिक ग्रुप के बैनर तले दो दिवसीय स्टेज शो में उन्होंने बांसुरी की सुरीली मधुर आवाज़ से लोगों की खूब वाहवाही बटोरी। इससे पहले 2017 से 23 तक झारखंड के हजारीबाग में एसवी लाईव कशिश के सलाना कार्यक्रमों में 2018 से 2023 तक कला संगम, गिरिडीह में आयोजित वार्षिक संगीत समारोह में मंच प्रस्तुति कर शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं का ध्यान अपनी ओर खीचने का कार्य किया। युवा रागयमन का सपना अपने गुरु पं. अजय प्रसन्ना के नाम को आगे ले जाने माता-पिता के सपनों को साकार करने के अलावा झारखंड में हिन्दुस्तानी संगीत को सहेजने एवं उभरते कलाकारों को मंच देने के लिए संस्था की स्थापना करने का है। सनातन संस्कृति में भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी की ध्वनि में प्रेमरस समाहित है तभी तो, बांसुरी की आवाज सुनकर पूरा गोकुल बेसुध हो जाता था. गोपिकाएं अपनी सुध-बुध खोकर चली आती थी। कहते हैं कि बांसुरी वादन करनेवालों भक्तों पर श्री कृष्ण अपने विशेष कृपा बरसाते हैं। युवा राग यमन उन्हीं में से एक है, जो लगातार इस कला में आगे बढ़ते हुए झारखंड का मान बढ़ाने में तन-मन से जुटे हुए हैं।