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Thursday, September 19, 2024
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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा: एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र उत्सव है, जो न केवल ओडिशा बल्कि पूरे भारत और विश्व में मनाया जाता है। यह पर्व मुख्यतः ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर से प्रारंभ होता है और विश्वभर के लाखों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

इतिहास और धार्मिक महत्त्व

भगवान जगन्नाथ, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, की रथ यात्रा का इतिहास अत्यंत पुराना है। पुराणों और वेदों में उल्लेख मिलता है कि भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा पर निकाला जाता है।

इस रथ यात्रा के पीछे एक प्राचीन कथा भी है। मान्यता है कि द्वारका में श्रीकृष्ण के अवतार के रूप में भगवान जगन्नाथ ने अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए रथ पर यात्रा की थी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।

आयोजन और विधि-विधान

रथ यात्रा के दिन, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को तीन विशाल और भव्य रथों में सजाकर यात्रा निकाली जाती है। ये रथ क्रमशः ‘नंदीघोष‘, ‘तालध्वज‘ और ‘दर्पदलन‘ कहलाते हैं। इन रथों को हजारों भक्त मिलकर खींचते हैं, जो एक बहुत ही भव्य दृश्य प्रस्तुत करता है।

“वयं रथयात्रां कर्तुं समागता:” (हम रथ यात्रा करने के लिए इकट्ठा हुए हैं) – यह मंत्र रथ यात्रा के आरंभ में उच्चारित किया जाता है, जिसका भावार्थ है कि सभी भक्त भगवान की यात्रा में शामिल होने के लिए एकत्र हुए हैं।

परंपराएं

इस  के दौरान कई धार्मिक अनुष्ठान और परंपराएं निभाई जाती हैं। पुरी में रथ यात्रा से पहले ‘स्नान यात्रा’ का आयोजन होता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ को 108 कलशों से स्नान कराया जाता है। इसके बाद, ‘अन्हारा’ (अंधकार) या ‘अनवसर’ की अवधि आती है, जिसमें भगवान जगन्नाथ को बीमारी से उबरने के लिए 15 दिन तक विश्राम दिया जाता है।

इस पावन  दिन, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने मंदिर से मौसी बाड़ी (गुंडिचा मंदिर) की ओर प्रस्थान करते हैं। वहां 9 दिन ठहरने के बाद, ‘बहुड़ा यात्रा’ के माध्यम से वे अपने मूल स्थान पर लौटते हैं।

विश्वभर में आयोजन

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा केवल पुरी में ही नहीं, बल्कि भारत के विभिन्न हिस्सों और विश्व के कई देशों में भी मनाई जाती है। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे देशों में भी भारतीय समुदाय इस पर्व को बड़े धूमधाम से मनाता है।

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव है बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक भी है। इस उत्सव में सम्मिलित होकर भक्तों को भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम व्यक्त करने का अवसर मिलता है। इस प्रकार, रथ यात्रा भारतीय संस्कृति की धरोहर को विश्वभर में फैलाने का एक माध्यम बन गई है।

“सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।” (सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों।) – इस भावना के साथ भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का समापन होता है, जो सभी के लिए मंगलमय हो।

संजना कुमारी

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