हजारीबाग में जैन संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रथम समाधि दिवस के अवसर पर हजारीबाग यूथ विंग के संरक्षक चंद्रप्रकाश जैन ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने आचार्य श्री की तस्वीर के समक्ष नमन करते हुए उनके जीवन के आदर्शों को याद किया और कहा कि उनका जीवन त्याग, तपस्या और सत्य का प्रतीक है।
संत विद्यासागर जी के विचारों को आत्मसात करने का संकल्प
श्रद्धांजलि सभा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हुए, जिन्होंने दीप जलाकर, भजन-कीर्तन और प्रवचनों के माध्यम से अपनी श्रद्धा व्यक्त की। इस दौरान आचार्य श्री के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं और उनके प्रेरणादायक कार्यों पर चर्चा की गई। चंद्रप्रकाश जैन ने अपने संबोधन में कहा कि हमें उनके बताए मार्ग पर चलकर समाज में संयम, अहिंसा और सद्भावना का प्रसार करना चाहिए।
आचार्य श्री का योगदान और आध्यात्मिक धरोहर
आचार्य विद्यासागर जी महाराज केवल संत ही नहीं, बल्कि युगदृष्टा भी थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति और अध्यात्म को नई दिशा दी। उन्होंने हजारों मुनियों और साधुओं को दीक्षित कर जैन धर्म की परंपरा को आगे बढ़ाया। उनकी रचनाएँ, प्रवचन और आध्यात्मिक संदेश आने वाली पीढ़ियों के लिए अमूल्य धरोहर हैं।
संयम और आत्मशुद्धि का महत्व
आचार्य श्री का मानना था कि आत्मशुद्धि और नैतिक उत्थान के बिना समाज में स्थायी शांति स्थापित नहीं हो सकती। उन्होंने संयम, सदाचार और सेवा का संदेश दिया, जो आज भी लाखों लोगों के जीवन को प्रेरित कर रहा है। उनके विचारों को अपनाकर हम समाज में प्रेम, करुणा और सेवा का संदेश फैला सकते हैं।
समाज में प्रेरणा बनी आचार्य श्री की शिक्षाएं
श्रद्धांजलि सभा में जैन समाज सहित अन्य समुदायों के लोगों ने भी भाग लिया और उनके दिखाए मार्ग पर चलने की प्रेरणा ली। इस अवसर पर देशभर में विभिन्न धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जहां श्रद्धालुओं ने उनकी शिक्षाओं को आत्मसात करने का संकल्प लिया।
इस भावपूर्ण आयोजन के माध्यम से श्रद्धालुओं ने संत विद्यासागर जी महाराज को स्मरण किया और उनके बताए गए मार्ग पर चलने की प्रेरणा ग्रहण की।
न्यूज़ – Vijay Chaudhary