नारायण विश्वकर्मा
आखिरकार चार्जशीटेड आईएएस अफसर को राजधानी रांची का डीसी पद छोड़ना पड़ा. नाम है छविरंजन. इनके नाम में छवि शब्द जुड़ा हुआ है. डीसी की छवि के रूप में तो इनकी छवि कभी अच्छी नहीं रही. कहते हैं दागदार दामन वाले अफसरों को कभी अच्छी नजर से नहीं देखा जाता. पर ये दाग भी अच्छे होते हैं बशर्ते, गहरे दाग भी बेदाग की तरह दिखे. ऐसा हुआ तभी तो, एक दागदार आईएएस को राजधानी का डीसी बना दिया गया. दो साल के कार्यकाल में छविरंजन ने जो अपनी छवियां बिखेरी हैं, उसे रांची में लंबे समय तक याद किया जाएगा. आईएएस लॉबी में और सत्ता के गलियारे में छविरंजन की खराब छवि की खूब चर्चा रही. इनकी छवि के बारे में झारखंड हाईकोर्ट में लगातार हो रही फजीहत के बाद सरकार को इन्हें हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
डीसी को हटाना सरकार की मजबूरी थी
आईएएस छविरंजन को आगे अभी कई मामलों में हाईकोर्ट में सुनवाई का सामना करना पड़ेगा. लेकिन एक चार्जशीटेड आईएएस को रांची का डीसी किस मजूबरी के तहत बनाया गया, यह सवाल न कोई पूछेगा और न कभी इसका जवाब मिलनेवाला है. कोडरमा में डीसी के रूप में अपनी पहली पोस्टिंग में ही जिला परिषद की लकड़ी कटाई में ये आरोपी बन गए. इनके खिलाफ वहां के डीडीसी ने एफआईआर दर्ज करायी थी, तो इन्हें बहुत बुरा लगा था. उन्होंने डी़डीसी को ऐसा करने के लिए मना भी किया था. इस मामले में पिछले पांच साल से वे अभी भी हाईकोर्ट से बेल पर हैं. यह जानते हुए भी हेमंत सरकार ने इन्हें राजधानी की कमान थमा दी. इसी बीच हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खदान लीज मामले में शपथ पत्र दाखिल करने पर छविरंजन पर दर्ज केस की पूरी जानकारी मांगी, तब लोगों को पता चला कि रांची के डीसी पर आपराधिक मामला दर्ज है. रांची डीसी को लेकर हाईकोर्ट में भारी फजीहत हुई थी.
कपिल सिब्बल कोर्ट में डीसी के बने हिमायती
दरअसल चार्जशीटेड डीसी के खिलाफ हाईकोर्ट के कड़े रुख के कारण हेमंत सरकार की किरकिरी हो रही थी. कांग्रेस की ओर से इन्हें हटान का प्रेशर था तो, उधर हाईकोर्टका छविरंजन पर कसता शिकंजा. इधर गत 1 जुलाई को सीएम हेमंत सोरेन के खनन लीज आवंटन मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार के वकील कपिल सिब्बल से कहा कि रांची डीसी को महात्मा गांधी साबित करने की कोशिश न करें. उनपर पहले से भ्रष्टाचार का मामला चल रहा है. हेमंत सोरेन के खान लीज मामले में रांची डीसी द्वारा शपथ पत्र दिए जाने पर कोर्ट ने कहा था कि जिस पर आपराधिक मामला चल रहा है, उसने अदालत में शपथ पत्र कैसे दाखिल कर दिया. तब रांची डीसी को पूरे झारखंड के खनन लीज संबंधी गोपनीय जानकारी होने पर भी कोर्ट ने सवाल खड़े किए थे. कोर्ट ने इस मामले में प्रार्थी शिवशंकर शर्मा को डीसी द्वारा फोन पर धमकी दिए जाने पर भी कड़ी नाराजगी जताई है. रांची डीसी की कॉल रिकार्डिंग कोर्ट में पेश किए जाने का हवाला देते हुए कोर्ट ने सरकारी वकील कपिल सिब्बल से कहा कि आप इस संगीन आरोप से इंकार नहीं कर सकते. उनके खिलाफ पहले से ही भ्रष्टाचार का मामला एसीबी कोर्ट में चल रहा है.
ऊपर की गाइडलाइन को फोलो करते थे डीसी
हाईकोर्ट के कड़े रुख के बाद छवि रंजन ने स्वीकार किया है कि उन पर आपराधिक मामला दर्ज है और एसीबी कोर्ट में इसकी सुनवाई लंबित है। हाईकोर्ट में शपथपत्र दाखिल करते हुए उपायुक्त ने जानकारी दी है कि एसीबी कोर्ट में अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज करने के लिए उन्होंने याचिका भी दायर की है। अदालत में इस मामले में अभी ट्रायल शुरू नहीं हुआ है। दरअसल हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री को अनगड़ा में खनन लीज देने के मामले में सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। सरकार की ओर से छवि रंजन ने शपथपत्र दाखिल किया था। इस पर अदालत ने नाराजगी जाहिर की थी और कहा था कि रांची के डीसी को खान विभाग और मुख्यमंत्री के बारे में सभी बातों की जानकारी कैसे हो सकती है। 19 मई को मामले की सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया गया कि रांची डीसी पर आपराधिक मामला है और यह मामला निचली अदालत में लंबित हैं। इस मामले में वह हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत पर हैं। इतना ही नहीं इस आईएएस की हठधर्मिता देखिए कि हाईकोर्ट के जाने-माने वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव कुमार को आवास बुलाकर धमकी दी. सच कहा जाए तो डीसी ऊपर के आदेश के बिना ऐसी हिमाकत नहीं कर सकते थे. कहा जाता है कि वे ऊपरी आदेश की गाइडलाइन को ही फोलो करते थे.
और…कोर्ट में साफ झूठ बोल कर निकल गए
हाईकोर्ट ने गत 7 जुलाई को रातू अंचल में जमीन से जुड़े एक मामले में दायर याचिका पर सीओ को लताड़ लगाई थी. सुनवाई के दौरान रांची डीसी छविरंजन भी मौजूद थे. कोर्ट अधिकारियों से यह जानना चाह रहा था कि अंचल के कर्मचारी कितने वर्षों से एक ही जगह जमे हुए हैं और उनका तबादला क्यों नहीं किया जाता. इसपर डीसी ने कोर्ट को बताया कि तबादले के लिए विभाग की मंजूरी जरूरी है. हाईकोर्ट ने नियम-कायदा जानने के लिए अपर मुख्य सचिव को तलब करना चाहा, तो पता चला कि वे रांची से बाहर है. सिस्टम की थोड़ी सी भी जानकारी रखनेवाले को पता है कि छविरंजन में हाईकोर्ट में साफ झूठ कर निकल गए हैं. डीसी के पास शक्ति है कि वे खुद कर्मियों की इधर-उधर पोस्टिंग कर सकते हैं. इसके बाद उन्हें हटाने का घटनाक्रम तेजी से चला. समझा जाता है कि सीएमओ में इसकी चर्चा हुई कि आखिर डीसी ने ने यह झूठ क्यों बोला. अब यह सवाल उठना लाजिमी है कि इस मामले की अगली सुनवाई में अपर मुख्य सचिव हाईकोर्ट में क्या जवाब देंगे? इस मामले में वे खुद तो फंसे ही पर उन्होंने अपर मुख्य सचिव को भी फंसा दिया. इससे पता चलता है कि कितने काबिल आईएएस को रांची का डीसी बनाया गया था.
नोट : आईएएस छविरंजन की कारस्तानियों के फसाने अभी और भी हैं. पढ़ते रहिए.