नारायण विश्वकर्मा
झारखंड में सही और निष्पक्ष ढंग से काम करनेवाले अधिकारियों का टोटा है, पर जो करे… उसे हटाना गुड गवर्नेंस की पहचान नहीं है. गैरआदिवासी अधिकारी अगर आदिवासी रैयतों के साथ न्याय करे तो, उन्हें सरकार की ओर से प्रोत्साहन मिलना चाहिए. आदिवासियों के दम पर यहां के शासक शासन करे… उसकी भलाई का दंभ भरे… पर उसके अनुकूल आचरण नहीं करे तो, ये आदिवासी बहुल राज्य के माथे पर एक कलंक है. राज्य सरकार द्वारा अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग एक सामान्य प्रक्रिया है. उसी के तहत दक्षिणी छोटानागपुर के आयुक्त नितिन मदन कुलकर्णी को अब राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंपी गई है. लेकिन आयुक्त के रूप में नितिन मदन कुलकर्णी के पिछले डेढ़ साल के कार्यकाल को सैकड़ों आदिवासी रैयतों को जीवन भर याद रहेगा, जिन्हें वे अब अपना मसीहा मानने लगे हैं.
कुलकर्णी के तबादले से राजभवन नाराज
हालांकि मिली जानकारी के अनुसार राज्यपाल के प्रधान सचिव नितिन मदन कुलकर्णी के तबादले से राजभवन नाराज है. उनके तबादले की खबर पर राजभवन ने प्रभारी अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह से जवाब-तलब किया है. प्रदेश के राज्यपाल रमेश बैस बगैर उनकी सलाह के प्रधान सचिव को बदले जाने पर हेमंत सरकार की कार्यशैली पर बेहद खफा बताए जाते हैं. राजभवन ने जानना चाहा है कि आखिर उन्हें बताए बिना राजभवन से जुड़े अधिकारी को एक झटके में कैसे हटा दिया गया? दरअसल, 9 जुलाई को झारखंड कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग की जारी अधिसूचना में गवर्नर रमेश बैस के प्रधान सचिव नितिन मदन कुलकर्णी को हटाकर उनकी जगह राहुल शर्मा को राज्यपाल का प्रधान सचिव बनाया गया है। वैसे खबर है कि देवघर में अनौपचारिक तौर पर राज्यपाल ने सीएम को इस बात से अवगत करा दिया है. समझा जाता है सीएम इस मामले पर जल्द विचार करेंगे. संभावना जतायी गई है कि एक-दो दिन में आयुक्त के तबादले पर भी सरकार फिर से विचार करेगी. अगर ऐसा हुआ तो, ये आदिवासी रैयतों के हक में होगा.
कमिश्नर ऑफिस बाहर से ही नहीं, अंदर से भी बदला
बता दें कि जनवरी 2021 में नितिन मदन कुलकर्णी स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव के पद से हटाकर दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के पद पर पदस्थापित किया गया था. उस समच चर्चा थी कि सरकार ने कुलकर्णी को आयुक्त के पद पर भेजकर उन्हें संटिंग में डाल दिया है. लेकिन करीब डेढ़ साल के कार्यकाल में आदिवासी समाज के साथ न्याय करनेवाले पहले आयुक्त के रूप में नितिन मदन कुलकर्णी का नाम झारखंड के इतिहास में दर्ज हो गया है. तेज-तर्रार अधिकारी के रूप में जाने-पहचाने जानेवाले आईएएस नितिन मदन कुलकर्णी को सरकार में शामिल स्वास्थ्य मंत्री ने भले हटवा दिया, पर काम करनेवाले अधिकारी कहीं भी रहें, वे काम को ही प्राथमिकता देंगे. यही कारण है कि आज का आयुक्त कार्यालय बाहर से ही नहीं, अंदर भी बदला हुआ नजर आता है. आयुक्त न्यायालय द्वारा निष्पादित पुनरीक्षण वादों की संख्या आज चौंकानेवाले हैं.
900 वादों में से अबतक 424 से अधिक वादों का निष्पादन
आदिवासियों की हड़पी गई जमीन को वापस दिलाने में और उसके साथ न्याय करने में आयुक्त न्यायालय ने महज डेढ़ साल में ऐतिहासिक रिकार्ड बनाया. यहां यह बताते चलें कि शिड्यूल एरिया रेगुलेशन 1969 के अधीन दायर वादों के पुनरीक्षण प्राधिकार आयुक्त होते हैं. इसके तहत आदिवासी रैयतों की जमीन से संबंधित मामलों में सीएनटी एक्ट-1908 के प्रावधानों का उल्लंघन कर जमीनों के लेन-देन के मामलों में उपायुक्त न्यायालय के आदेश को चुनौती दी जाती है. इसमें पीड़ित आदिवासी रैयत कई दशकों से केस के चक्कर में भाग-दौड़ करते रहते हैं. इसके बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिलता है. आयुक्त न्यायालय में 1980, 1990, 2000 और 2010 के दशक से लंबित करीब 900 वादों में से श्री कुलकर्णी ने अबतक 424 से अधिक वादों का निष्पादन कर आदिवासी रैयतों का उद्धार किया है. यह रिकार्ड उनके नाम दर्ज हो गया है. इस रिकार्ड को शायद ही कोई दूसरा कमिश्नर तोड़ पाए.
आदिवासी रैयतों में मायूसी, नहीं हटाने की गुहार
बताया गया कि आयुक्त कोर्ट में सारे वादों का निष्पादन आदिवासी रैयतों के पक्ष में किया गया है. इस मामले में दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल मिसाल कायम कर चुका है. निकट भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति असंभव प्रतीत होता है. आदिवासी रैयत श्री कुलकर्णी को अपना मसीहा मान रहे हैं. आदिवासी रैयतों से हजारों परिवाद पत्र प्राप्त हुए. इस पर तेज गति से काम हुआ और आदिवासी रैयतों को इंसाफ मिला. एक आदिवासी रैयत ने बताया कि कुलकर्णी सर तो हम आदिवासियों के लिए किसी मसीहा से कम साबित नहीं हुए. उन्हें जब बताया गया कि अब उनका यहां से ट्रांसफर हो गया है. तो उसने मायूसी से जवाब दिया कि अच्छा काम करनेवाले अधिकारियों के साथ सभी सरकारें ऐसा ही करती हैं. उसने बताया कि वह पिछले दस साल से चक्कर लगा रहा था. लेकिन कुलकर्णी जी ने दो सुनवाई में ही उनके पक्ष में फैसला सुना दिया. उनका दरबार सबके लिए खुला हुआ है. ऐसा ही अन्य आदिवासी रैयतों के साथ भी हुआ है. उन्होंने सरकार से निवेदन किया है कि कुलकर्णी जैसे अफसर की यहां अभी बहुत जरूरत है. इसलिए आदिवासियों के हित की खातिर उन्हें यहां से नहीं हटाया जाए.
आयुक्त को नहीं मिला जिला प्रशासन का सहयोग
जिला प्रशासन के एक कर्मचारी ने बताया कि निवर्तमान रांची उपायुक्त ने अगर सकारात्मक सहयोग किया होता तो, और भी सुखद परिणाम मिलते. उन्होंने बताया कि झारखंड बनने के बाद रांची जिले में आदिवासी जमीन की बड़े पैमाने पर सरकारी तंत्र की मिलीभगत से दलालों ने चांदी काटी. आयुक्त द्वारा सिल्ली अंचल में आदिवासी भूमि के अवैध हस्तांतरण एवं नामांतरण की जांच कराई गई और दोषी पदाधिकारियों पर ठोस कार्रवाई के लिए रांची के उपायुक्त को निर्देश दिया गया था. इसके फलस्वरूप कई अंचलाधिकारियों पर प्रपत्र क
में आरोप गठित कर सरकार को भेजा गया था. वहीं आयुक्त के कड़े रुख के कारण ही रांची जिले के कई अंचल कार्यालयों में सुधार होने लगा था. पर अंचल कार्यालयों की कार्यशैली से आयुक्त कभी खुश नहीं हुए.
बेहतरीन कामकाज का सरकार ने अच्छा सिला नहीं दिया
श्री कुलकर्णी ने अपने छोटे से कार्यकाल में रांची जिले के निवर्तमान डीसी के कोर्ट से जुड़ी कई खामियों को उजागर किया और उसपर कार्रवाई के लिए सरकार को भी लिखा, पर सरकार ने अबतक इन मामलों में गंभीरता नहीं दिखाई है, न डीसी का कुछ बिगड़ा. उन्होंने हेहल अंचल के बजरा मौजा के भूमि नामांतरण और बुंडू अंचल के मौजा कोड़दा के गलत जमीन हस्तातंरण की जांच कर सरकार को प्रतिवेदन भेजा था. यह मामला काफी चर्चित हुआ. सरकार ने इसपर कोई ठोस कार्रवाई तो नहीं की, अलबत्ता उनका ट्रांसफर जरूर कर दिया. यह हेमंत सरकार की अदूरदर्शिता को दर्शाता है. आदिवासी हित में एक गैरआदिवासी अफसर के बेहतरीन कामकाज का सरकार ने अच्छा सिला नहीं दिया. इससे आदिवासियों के विकास के प्रति कथित रूप से समर्पित सरकार की नीयत का पता चलता है.