जयपुर : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवन ने कहा कि दुनियाभर में मिशनरी समाज के लोग अस्पताल, स्कूल चलाने के साथ सेवा का काम कर रहे हैं। जब हमने देश घूमकर देखा संत समाज क्या कर रहा है तो, हमें पता चला जो काम मिशनरी कर रहे हैं, संत उनसे अच्छा काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सेवा के साथ ही करुणा का ग्लोबलाइजेशन होना चाहिए। उनका कहना है कि जैसे देश की रक्षा ज़रूरी है वैसे ही देश की सेवा भी ज़रूरी है। सेवा जितनी गुप्त रहे, उतना ही अच्छा है। भागवत ने ये विचार राष्ट्रीय सेवा भारती के जयपुर में जामडोली स्थित केशव विद्यापीठ में शुरू हुए तीन दिवसीय सेवा संगम को सम्बोधित करते हुए रखे। उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार जन्मशती पर संघ ने औपचारिक रूप से सेवा विभाग शुरू किया और सेवा का भाव शाखा के माध्यम से जागृत करना शुरू किया है।
‘सेवा भाव होने से अहंकार दूूर होता है’
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि सेवा कोई स्पर्धा का काम नहीं है। सेवा मनुष्य की सामान्य अभिव्यक्ति है। संवेदना तो सभी में होती है लेकिन पशु और मनुष्य में यही अंतर है कि संवेदना की कृति सिर्फ़ मनुष्य में है। अगर हम सब एक हैं तो मैं सुखी और दूसरा दुखी है, इससे काम नहीं चलेगा। मेरे पास जो है उसमें से सबको देकर जो कुछ बचता है, वही मेरा है। इस भाव में सेवा निहित है। भागवत ने कहा कि सेवा स्वस्थ समाज को बनाती है। किसी का भला होता है तो मन में भी अच्छी भावना आती है। लेकिन मैंने किया, तब और आनंद होता है, इससे अहंकार होता है। लेकिन सेवा करते रहें तो यह अहंकार समाप्त हो जाता है। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हमारे समाज का एक अंग पीछे है, तो हम सब भी पिछड़े हैं। इसको हमे दूर करना है। उनकी ताक़त आगे आने की नहीं है तो हमें उनको ताकत देनी है। इस समाज की सेवा करने के लिए ही हमें यह जीवन मिला है।