अदालतों ने विपक्ष के नेता के बगैर हेमंत सरकार से विकल्प निकालने को कहा है. पर सरकार ने अभी तक कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. विपक्ष ने सरकार पर कभी दबाव भी नहीं बनाया, इसके कारण सत्तापक्ष भी खामोश
नई दिल्ली: भारत में पिछले दस सालों के अंदर सूचना आयोगों को सत्तापक्ष और विपक्ष निष्क्रिय करने पर आमादा है. आयोगों के प्रदर्शन पर रिपोर्ट कार्ड-2022-23 में कहा गया है कि 2019 के आकलन में पाया गया कि उस वर्ष 31 मार्च तक 26 सूचना आयोगों में कुल 2,18,347 अपील/शिकायतें लंबित थीं, जो 30 जून, 2021 तक बढ़कर 2,86,325 हो गईं और फिर 30 जून, 2022 तक आंकड़ा तीन लाख को पार कर गया. एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, देशभर के 27 राज्य सूचना आयोगों में कुल 3,21,537 अपीलें और शिकायतें लंबित हैं और बैकलॉग लगातार बढ़ रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, लंबित अपीलों की सबसे अधिक संख्या महाराष्ट्र (1,15,524) में है, उसके बाद कर्नाटक (41,047) में है.
तमिलनाडु ने जानकारी देने से ही इंकार कर दिया
रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु ने इस बारे में जानकारी देने से इनकार कर दिया. यह रिपोर्ट देश भर के सूचना आयोगों के प्रदर्शन और शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए काम करनेवाले नागरिकों के समूह सतर्क नागरिक संगठन (एसएनएस) द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के आधार पर संकलित की गई है. रिपोर्ट बताती है कि चार सूचना आयोग-झारखंड, तेलंगाना, मिजोरम और त्रिपुरा में पूरी तरह से निष्क्रिय है, क्योंकि यहां पिछले अधिकारी के पद छोड़ने के बाद कोई नया सूचना आयुक्त नियुक्त ही नहीं किया गया है. केंद्रीय सूचना आयोग को मिलाकर छह राज्यों-मणिपुर, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार और पंजाब के सूचना आयोग वर्तमान में नेतृत्वहीन हैं.
आयोगों ने 91 प्रतिशत मामलों में कभी दंड नहीं लगाया
किसी अपील या शिकायत के निपटारे में लगनेवाले समय की गणना औसत मासिक निपटान दर और आयोगों में लंबित मामलों का उपयोग करके की गई है. आकलन से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल राज्य सूचना आयोग को एक मामले को निपटाने में अनुमानित 24 साल और एक महीने का समय लगेगा, जिससे पता चलता है कि 1 जुलाई, 2023 को दायर एक फाइल को निपटान की वर्तमान मासिक दर पर 2047 में निपटाया जाएगा. छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में अपील या शिकायत के निपटारे में एसआईसी द्वारा लिया गया अनुमानित समय चार साल से अधिक है. ओडिशा और अरुणाचल प्रदेश में यह दो साल से अधिक है. आकलन से पता चलता है कि 10 सूचना आयोगों को किसी अपील/शिकायत का निपटारा करने में एक साल या उससे अधिक का समय लगेगा. सूचना आयोगों द्वारा लगाए गए दंडों के विश्लेषण से पता चलता है कि आयोगों ने 91 प्रतिशत मामलों में दंड नहीं लगाया, जहां ऐसा किया जा सकता था.
झारखंड में विपक्ष ने सरकार पर कभी दबाव नहीं बनाया
झारखंड की बात करें तो सत्तापक्ष या विपक्ष को राज्य के सूचना आयोग के गठन की तनिक भी दिलचस्पी नहीं है.2019 के विधानसभा चुनाव में ऐसा परिदृश्य बना कि बाबूलाल मरांडी को विपक्ष का नेता माना नहीं गया है. उनका मामला स्पीकर से लेकर झारखंड हाईकोर्ट में लंबित है. इस बीच तीन साल से अधिक समय गुजर गया है. मौजूदा स्थिति में राज्य के सूचना आयोग में 25,000 से अधिक द्वितीय अपीलवाद एवं शिकायतवाद वर्षो से लंबित पड़े हुए हैं. वहीं सरकारी कार्यालयों में लाखों आवेदन पेंडिंग हैं। 9 मई 2020 से ही राज्य सूचना आयोग में सूचना आयुक्त के सभी पद रिक्त पड़े हुए हैं। सत्तापक्ष या विपक्ष के नेताओं से पूछने पर कहा जाता है कि विपक्ष के नेता के बगैर सूचना आयुक्तों की बहाली मुश्किल है. हालांकि कोर्ट ने हेमंत सरकार से विकल्प निकालने को कहा है. लेकिन सरकार ने अभी तक कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. विपक्ष ने सरकार पर कभी दबाव भी नहीं बनाया, इसके कारण सत्तापक्ष भी खामोश है. बहरहाल, माननीयों को जनहित से कितना सरोकार है, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.