23.1 C
Ranchi
Sunday, November 24, 2024
Advertisement
HomeLocal NewsGiridihकई दशकों बाद लाल आतंकियों के गढ़ में ग्रामीण वोट देने के...

कई दशकों बाद लाल आतंकियों के गढ़ में ग्रामीण वोट देने के लिए प्रेरित हुए, अतिउग्रवाद से ग्रस्त क्षेत्र चिलखारी-भेलवाघाटी के बाद अब पीरटांड़ में भी उत्साह बढ़ा

लाल आतंक के नाम से कुख्यात गिरिडीह जिले के पीरटांड़ में अब बूूूूलेट की जगह बैलेट पर लोगों का भरोसा कायम हुआ है. पूर्व में नक्सली परिवार अब गांव-ग्रामीणों को वोट देने के प्रोत्साहित कर रहे हैं. इसके लिए गिरिडीह जिला प्रशासन ने ग्रामीणों के बीच जाकर वोट के अधिकार के प्रति अलख जगाने का काम किया है. पिछले दो साल से गिरिडीह डीसी नमन प्रियेश लकड़ा ने पीरटांड़ इलाके का कई बार दौरा कर लोगों के बीच विश्वास कायम किया है. सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का भी लोगों को लाभ मिल रहा है. सड़कों के निर्माण पर ध्यान दिया जा रहा है. यही कारण है कि कल तक वोट का बहिष्कार करनेवाले अब सजग हो गए हैं. इसमें सम्मेेद शिखर (पार्श्वनाथ) प्रबंधन ने भी कई ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ने में अपनी भूमिका निभाई है. इसके कारण पारसनाथ पर्वत पर नक्सली गतिविधियों पर अंकुश लगा है.

कमलनयन

गिरिडीह जिले के पीरटाड़ का इलाका जो कभी लाल आतंकियों की शरणस्थली के रूप में सुर्खियों में रहा करता था और वोट देने के नाम पर लोग मौन हो जाते थे। पोलिंग पार्टियां पीरटाड़ में जाने से कतराती थी। संगीनों के साये पोलिंग पार्टियां भेजी जाती थीं और मतदान की प्रक्रिया पूरी कर शाम से पहले ही मुख्यालय का रुख कर लेती थी. चुनाव प्रचार करने में भय खाते थे। लेकिन समय के साथ बदलाव आ रहा है।  आज लोकतंत्र के उत्सव में शामिल होने के लिए इलाके के लोग उत्सहित हैं। अति उग्रवाद प्रभावित पीरटांड़ के खरपोका, सिमरकोढी, हरलाडीह, मंडरो, खुखरा, तुहीओ, बंदगांवा व कुड़को सहित दर्जनों गांवों के लोगों में 25 मई को छठे चरण में गिरिडीह लोस के लिए होने वाले मतदान को लेकर में भारी उत्साह है।

जिला प्रशासन ने ग्रामीण क्षेत्रों पर फोकस किया

भाकपा माओवादियों के लिए सुरक्षित क्षेत्र के रूप में चर्चित इस क्षेत्र में अब लोकतंत्र की हवा साफ बहती दिखाई दे रही है। लोग निर्भीक होकर शासन-प्रशासन पर विश्वास व्यक्त करते हुए मतदान करने को लेकर आतुर हैं। हालांकि इन सबके पीछे हाल के वर्षो में शासन-प्रशासन द्वारा नक्सलियों के खिलाफ लगातार जारी सर्च ऑपरेशन कार्रवाई के साथ-साथ ग्रामीणों के बीच भरोसा उत्पन्न करनेवाले कार्यक्रम की अहम भूमिका है। जिसके फलस्वरूप नक्सली गतिविधियां अब हाशिए पर है। जनमानस के बीच भरोसा बड़ा है. माहौल बदला और बूलेट पर बैलेट भारी पड़ता दिखायी दे रहा है। आलम यह है कि इससे पहले जो लोग वोट बहिष्कार का नारा देकर इलाके में दहशत पैदा कर वोट देनेवालों के हाथ काटने का फरमान जारी करते थे. वैसे लोग ग्रामीणों को वोट देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इनमें जिला प्रशासन भी अपनी महती भूमिका का निर्वाह कर रहा है. जिले के डीसी नमन प्रियेश लकड़ा ने समय-समय पर ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा कर लोगों को मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया है. इसके अलावा सड़क और पुल-पुलिया निर्मित किये जा रहे हैं. जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी लोगों को मिल रहा है.

सब जोनल कमांडर रहे गोविंद जी ग्रामीणों को जागृत कर वोट देने के लिए प्रेरित किया

जानकारी के मुताबिक खुखरा थाना क्षेत्र के नक्सल प्रभावित मेरोमगढ़ा गांव के तीन सहोदर भाई भाकपा माओवादियों के सक्रिय सदस्य हुआ करते थे। तीनों भाइयों पर नक्सली कांडों के कई मामले दर्ज थे। जिसके कारण इलाके के कई गांवों में इनका आतंक था। बाद में पकड़े गये और सजा हुई। धीरे-धीरे समझ बदलीं और तीनों भाइयों ने जेल से निकलने के बाद खुद के जीवन को बदल लिया। इनके अलावा कई लोगों ने भी अपने सुरक्षित भविष्य को लेकर मुख्यधारा में लौटना बेहतर समझा और आज सभी लोग मतदान को लेकर एक-दूसर को जागरूक कर रहे हैं। इनमें पूर्व माओवादी पारसनाथ क्षेत्र के सब जोनल कमांडर रहे गोविंद जी के परिवार के साथ गांव में कई अन्य लोग भी शामिल हैं, जो ग्रामीणों को जागृत कर वोट देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इलाके के लोगों का साफ कहना है कि हथियार के बल बदलाव संभव नहीं है। इसके लिए लोकतंत्र ही सबसे बड़ा हथियार है। लेकिन सरकारी मुलाजिमों पर नियंत्रण रखना जरूरी है, ताकि किसी का काम नहीं रुके. घुसखोरी की संस्कृति पर लगाम जरूरी है। सरिता कुमारी व अन्य युवा महिलाएं कहती हैं कि जंगल में हमारे पूर्वज सालों से निवास कर रहे हैं. यह हमारा है, हमें मूलभूत सुविधाएं मिले, तो कोई मुख्यधारा से क्यों भटकेगा?  सड़कें बनेंगी गांव में काम मिलेगा तो क्यों लोग हथियार उठाएंगे.

कभी पारसनाथ पर्वत पर नक्सलियों की सरकार चलती थी

दरअसल अहिंसा के संदेशवाहक जैनियों के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ पर्वत  शिखरजी की तलहटी में स्थित पीरटांड़ का इलाका अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण अस्सी के दशक के बाद से ही भाकपा माओवादियों की सुरक्षित शरणस्थली के रूप में जाना जाता रहा है। जंगल-झाड, गरीबी एवं अशिक्षा इस क्षेत्र के पिछड़ेपन की त्रासदी मानी जाती रही है। एक समय पूरे इलाके में नक्सलियों की सरकार चलती थी. नक्सली दिन-दहाड़े अपने विरोधियों को गला रेत कर घटना को अंजाम देकर आम और खास के बीच अपनी सक्रियता का एहसास कराते, चुनाव आते ही वोट बहिष्कार का फतवा जारी कर लोगों को मतदान करने से रोकते। लेकिन 2014 के बाद तेजी से समय बदला. सुरक्षा बलों द्वारा लगातार सर्च ऑपरेशन की कार्रवाई के अलावा सरकार की सरेंडर नीति और सुरक्षा बलों की और से ग्रामीणों के बीच रचनात्मक कार्य किये जाते रहे, जिससे लोगो में विश्वास की भावना जागृत हुई। भटके लोगों को अपने भविष्य को लेकर मुख्यधारा की ओर झुकाव होने लगा. परिणामस्वरूप पिछले 20 मई को पांचवे चरण में सम्पन्न कोडरमा संसदीय क्षेत्र के अति नक्सल ग्रसित रहे भेलवाघाटी  और चिलखारी इलाके में भी अपेक्षित मतदान हुआ। निर्भीक होकर लोगों ने लोकतंत्र के महापर्व में भाग लिया और यही माहौल पीरटांड़ के इलाके में देखा जा रहा है। यहां 25 मई को मतदान होना है।

 

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments