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Tuesday, September 17, 2024
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गिरिडीह डीसी ने अबुआ वीर अबुआ दिशोम अभियान की बैठक में अधिकारियों से कहा-वन पट्टा वितरण कार्य को अब सेचुरेशन मोड में करना सुनिश्चित करें

गिरिडीह : जिले के उपायुक्त नमन प्रियेश लकड़ा ने अपने कार्यालय प्रकोष्ठ में अबुआ वीर अबुआ दिशोम अभियान 2023 (वनाधिकार अभियान 2006) से संबंधित बैठक की। बैठक में उपायुक्त ने कहा कि राज्य सरकार भूमिहीनों को वन पट्टा उपलब्ध कराने को लेकर काफी संवेदनशील है। लोगों को आवश्यकतानुरूप वन पट्टा में भूमि मिले, इसका प्रखंड के पदाधिकारी विशेष ध्यान रखेंगे। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिया कि सामुदायिक एवं व्यक्तिगत वन पट्टा वितरण कार्य को अब सेचुरेशन मोड में करना सुनिश्चित करें। उन्होंने बताया कि इस अभियान में वीर बंधुओं का काम सिर्फ वन अधिकार समिति को सहयोग करना है और अंचल और अनुमंडल के साथ समन्वय बनाना है। उन्होंने बताया कि अबुआ बीर अबुआ दिशोम अभियान, वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अनुसार 13.12.2005 से पहले वन भूमि पर आश्रित उन समुदायों और गांवों के दावों के अनुरूप व्यक्तिगत, सामुदायिक और सामुदायिक वन संसाधन पर वनाधिकार पट्टा मुहैया दिलाने का अभियान है। केवल अधिकार ही नहीं, वन पट्टा धारकों की आजीविका और खुशहाली के लिए वन क्षेत्र के संसाधनों और अन्य योजनाओं के समन्वय के लिए भी यह अभियान संकल्पित है। बैठक में वन प्रमंडल पदाधिकारी, पूर्वी/पश्चिमी, सभी अनुमंडल पदाधिकारी, जिला कल्याण पदाधिकारी, प्रखंड विकास पदाधिकारी, बेंगाबाद/गांडेय/डुमरी, सभी अंचलाधिकारी समेत अन्य संबंधित अधिकारी उपस्थित थे।

वन अधिकार अधिनियम के तहत 13 प्रकार के प्रमाण दिए गए हैं

2006 का वन अधिकार अधिनियम (FRA) (2005 नहीं), जिसे औपचारिक रूप से अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम के रूप में जाना जाता है. भारत में कानून का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो, वन में रहनेवाले समुदायों के भूमि और संसाधनों के अधिकारों को मान्यता देता है। यहाँ 13 प्रकार के प्रमाण दिए गए हैं. इनमें  निवास प्रमाण, जनगणना रिकॉर्ड, सरकारी रिकॉर्ड, सामुदायिक अधिकार दस्तावेज, शपथ पत्र, वंशावली रिकॉर्ड,  फोटोग्राफिक साक्ष्य, मानचित्र और रेखाचित्र, सामुदायिक साक्ष्य, भूमि राजस्व रिकॉर्ड,  वन उपज रिकॉर्ड,  पारंपरिक ज्ञान और  पुरातात्विक साक्ष्य शामिल हैं. इस प्रकार के साक्ष्य दावेदार समुदाय या व्यक्ति द्वारा वन भूमि के ऐतिहासिक और निरंतर उपयोग या निवास को प्रदर्शित करके वन अधिकार अधिनियम के तहत दावों को पुष्ट करने में मदद करते हैं। प्रत्येक साक्ष्य एफआरए के तहत अधिकारों की मान्यता के मामले को मजबूत करता है।

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