मणिपुर हिंसा पर सीएम हेमंत सोरेन ने राष्ट्रपति को साल भर पहले भेजा था त्राहिमाम संदेश पर, अभी तक कोई संदेशा नहीं आया
राष्ट्रपति का बयान उस समय क्यों नहीं आया, जब मणिपुर को हिंसा की भट्ठी में झोंक दिया गया था
नारायण विश्वकर्मा
प. बंगाल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए जघन्य अपराध के 20 दिनों बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बड़े बयान ने देश को चौंका दिया है. देश के नागरिक और विपक्ष ने अब यह सवाल उनसे पूछ रहा है कि लंबे समय के बाद उन्हें महिलाओं की चिंता ने झकझोरा है. राष्ट्रपति ने कहा है कि निर्भया कांड के 12 सालों में अनगिनत रेपों समाज भूल चुका है. यह सामूहिक भूलने की बीमारी सही नहीं है. इतिहास का सामना करने से डरनेवाले समाज सामूहिक स्मृति लोप का सहारा लेते हैं. अब भारत के लिए इतिहास का सामना करने का समय आ गया है. ये कह रही हैं हमारी राष्ट्रपति. उनका बयान उस समय आया जब 25 अगस्त को भाजपा ने बंगाल बंद का आह्वान किया था. अब उनके बयान के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि इसी बहाने केंद्र को बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने का मौका मिल सकता है. विपक्ष और प.बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का आरोप है कि राष्ट्रपति का बयान उस समय क्यों नहीं आया जब मणिपुर को हिंसा की भट्ठी में झोंक दिया गया था. आज भी वहां की दबी राख में चिंगारी सुलग रही है. साल भर बाद भी आदिवासी बहनों की चीत्कार वहां की फिंजाओं में गूंज रही है. राष्ट्रपति के बंगाल पर दिए गए बयान को मणिपुर हिंसा से जोड़कर देखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि अगर बंगाल में राष्ट्रपति लगाना है तो पहले पूर्व मणिपुर में लगे,तभी इंसाफ होगा.
मणिपुर को लेकर राष्ट्रपति का अबतक बयान क्यों नहीं आया?
राष्ट्रपति के बयान के बाद विपक्ष और तमाम सोशल मीडिया में यह सवाल उठाया जा रहा है कि ये सही है कि जो कुछ भी बंगाल में हुआ, उसे मानवीय या लॉ एंड आर्डर के हिसाब कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता पर इससे पूर्व डेढ़-दो सालों में बीसियों दुष्कर्म की जघन्य घटनाएं हो चुकी हैं. लेकिन राष्ट्रपति ने खामोश रहीं. मणिपुर में मानवता को झकझोरने वाली वीभत्स घटनाओं पर उन्होंने क्यों नहीं बयान जारी किया? विपक्ष ने वहां तुरंत सीएम को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की गई. मणिपुर से कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने भी मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए केंद्र सरकार से अपील की थी. मणिपुर के सीएम का वह शर्मनाक बयान कि इस तरह की तमाम घटनाएं यहां होती रहती हैं. वहीं दूसरी ओर वहां की राज्यपाल अनुसुइया उइके राष्ट्रपति से मिलकर नम आंखों से वहां के बेकाबू हालात के बारे में बताया. मीडिया से उ्न्होंने कहा कि मैंने जिंदगी में ऐसी इतनी हिंसा नहीं देखी. ऐसी जघन्य घटनाओं पर केंद्र से मार्मिक अपील की थी कि मणिपुर के हालात बदतर है, वहां कानून-व्यवस्था बेकाबू है. सख्त कदम उठाने की जरूरत है. इसके बावजूद राष्ट्रपति के रोंगटे खड़े नहीं हुए. मणिपुर में आदिवासी समुदाय की बड़ी जमात है. कुकी बनाम मायती की लड़ाई में भीषण नरसंहार हुआ. आज भी यदा-कदा वहां से छिटपुट हिंसा की खबरें आती रहती हैं. अब भी सैकड़ों लोग शिविर में अपना जीवन गुजार रहे हैं. शिक्षा-स्वास्थ्य का बुरा हाल है.
मणिपुर में अबतक राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगा?
नैतिकता का तकाजा था कि वहां साल भर पहले ही मणिपुर के सीएम को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए था. मणिपुर तो राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर केंद्रीय स्तर इसकी समीक्षा तक नहीं की गई. मणिपुर प्रदेश अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसा हुआ है. वहां रोहिंग्या का मामला देश के सामने मुंह बाये खड़ा है. मणिपुर के लोगों के त्राहिमाम संदेश और संसद में वहां के सांसदों द्वारा की गई मार्मिक अपील को केंद्र ने अभी तक नजरअंदाज क्यों किया है, ये यक्ष प्रश्न है. क्या इतना कुछ होने बावजूद देश के प्रधानमंत्री को वहां नहीं जाना चाहिए था? मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया में मणिपुर में महिलाओं के साथ जो नंगा नाच हुआ, उसकी क्लिपिंग बार-बार दिखने के बावजूद हिंसा रूकी नहीं और न ही राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री का दिल पसीजा. हाथरस,उन्नाव और अंकिता भंडारी जैसे जघन्य दुष्कर्म हत्याकांंड पर विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने लगातार आलोचना की. मणिपुर हिंसा को लेकर राष्ट्रपति से चुप्पी तोड़ने की अपील की गई,सब बेकार साबित हुआ.
सीएम हेमंत सोरेन ने राष्ट्रपति को पत्र भेज कर आदिवासी बहनों की सुरक्षा की लगाई थी गुहार
मणिपुर हिंसा से व्यथित झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने 22 जुलाई 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम मार्मिक चिट्ठी लिखी. बंगाल के संदर्भ में राष्ट्रपति के बयान आने के बाद हेमंत सोरेन के उस पत्र के मार्मिक पहलुओं पर हमें गौर करना चाहिए. हेमंत सोरेन ने मणिपुर हिंसा पर राष्ट्रपति को चुप्पी तोड़ने का आग्रह किया था. पत्र में उन्होंने कहा था कि क्रूरता के सामने चुप्पी साधना भी भयानक अपराध है. झारखंड के मुख्यमंत्री और देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मणिपुर घटना को लेकर काफी व्यथित और चिंतित हूं. सीएम ने लिखा कि दो दिन पहले मणिपुर का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ, जिसमें महिलाओं के साथ ऐसी बर्बरता दिखी है, जिसके बारे में जिक्र भी नहीं किया जा सकता. इस वीडियो ने हम सभी को व्याकुल कर दिया है. इस घटना की निंदा करते हुए सीएम हेमंत सोरेन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से आगे का रास्ता ढूंढने और न्याय सुनिश्चित करने और मणिपुर की शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की अपील की थी.
मणिपुर में आदिवासी महिलाओं के साथ हुुई बर्बरता पर चुप्पी मानवता के नाम पर कलंक
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि मणिपुर में आदिवासी महिलाओं के साथ जिस तरह से बर्बरतापूर्ण व्यवहार हुआ, वह अत्यंत चिंतनीय और निंदनीय है. इस घटना ने पूरे देश को अंदर तक झकझोर कर रख दिया है. भारत के संविधान में देशवासियों को प्राप्त सम्मान के अधिकार को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है. एक समाज को कभी भी उस हद तक नहीं जाना चाहिए, जहां लोगों को उस तरह की शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक क्रूरता का सामना करना पड़े, जैसा हमने मणिपुर में देखा है. ऐसा प्रतीत होता है कि मणिपुर में शांति, एकता और न्याय समाप्त होने के कगार पर है. राष्ट्रपति से मुख्यमंत्री ने पत्र में आग्रह किया है कि मणिपुर और देश के सामने संकट की इस घड़ी में हम आपको आशा और प्रेरणा के अंतिम स्रोत के रूप में देखते हैं जो इस कठिन समय में मणिपुर के लोगों को रोशनी दिखा सकतीं हैं. हमें अपने साथी आदिवासी भाइयों और बहनों के साथ हो रहे बर्बर व्यवहार को रोकना होगा.